होवत बिहनिया कुकरी-कुकरा, नींद ले जगावय। कांव-कांव करत चिरई-चुरगुन, नवा संदेसा सुनावय। बड़ निक लागय मोला, लईका मन के ठांव रे।…… आज घलो सुरता आथे, मोर मया के गांव रे।।…… भंवरा बांटी के खेल खेलन, डूबक-डूबक नहावन। डोकरा बबा खोजे ल जावय, गिरत हपटत भागन। आवत-जावत सुरता आवय, डबरी के पीपर छांव रे।……. आज घलो सुरता आथे, मोर मया के गांव रे।।……… सिधवा मनखे गांव के, मंदरस कस बोली। बड़ सुघ्घर लागय मोला, डोकरी दाई के ठोली। सत जेकर ईमान धरम, लछमी गाय के पांव रे।…… आज घलो सुरता आथे,…
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अपन
पहिनथन अपन कपड़ा ल, रहिथन अपन घर म, कमाथन खेत ल अपने, खाथन अपन हाथ ले, लीलथन अपने मुंह ले, सोंचथन घलो, सिरिफ अपने पेट के बारे म। अपन दाई, अपन, अपन ददा अपन, अपन भाई, अपन, अपन बहिनी, अपन अपन देस, अपन अपन तिरंगा, अपन, मरना पसंद करथन अपन धरम म। मानथन घलो अपनेच देबी देवता ल। अपन बेटा-बेटी ए बर तो कमाथन का ? अपन संतान ए ल तो दे पाथन का, हक अपन संपत्ति म ? त, फेर छेड़ना- छाड़ना काबर कोखरो बेटी माई ल? छेड़नाच हे…
Read Moreआँखी के काजर
भुला डारे मोला काबर बैरी बनाये तोर आँखी के काजर हाथ के कंगन मोला अबड़ आथे सुरता तोर गुस्सा तोर हसना तोर नखरा तोर मीठ बोली सच म गांवली गाँव मोर सुरता कराथे बर पीपर के छाँव तोर अंगना के टूटहा खटिया डर डर के तोर गली म जाना छुप छुप के मीठ बोली बोलना अब सपना होगे तोर संग बैठना बैरी रहिन तोर पारा के संगवारी सब अब संगवारी होगीन जबले तोर गवना होइस हे मोर पुछैया मन मोला भुलागींन अब तो तेही ह मोर मया ल मुरेछ देहे…
Read Moreगुंडाधूर
जल, जंगल, माटी लुटे, ओनीस सौ दस गोठ सुनावं रंज देखइया बपरा मन ला, हंटर मारत चंउड़ी धंधाय गॉंव-टोला म अंगरेज तपे, ळआदिबासी कलपत जाय मुरिया, मारिया, धुरवा बईगा, जमो घोटुल बिपत छाय भूमकाल के बिकट लड़इया, कका कलेंदर सूत्रधार बोली-बचन म ओकर जादू, एक बोली म आए हजार अंगरेजन के जुलूम देखके, जबर लगावे वो हुंकार बीरा बेटा गोंदू धुरवा ला, बाना बांध धराइस कटार बीर गुडाधूर जइसे देंवता, बस्तर के वो राबिनहुड गरीबन के मदद करइया, वो अंगरेजन ल करे लूट आमा डार म मिरी बांधके, गांव म…
Read Moreचलनी में गाय खुदे दुहत हन
चलनी में गाय खुदे दुहत हन कईसन मसमोटी छाय हे, देखव पहुना कईसे बऊराय हाबै। लोटा धरके आय रिहीस इहाँ, आज ओकरे मईनता भोगाय हाबै। परबुधिया हम तुम बनगेन, चारी चुगली में म्ररगेन। छत्तीसगढिया ल सबले बढिया कीथे, उहीं भरम में तीरथ बरथ करलेन। भाठा के खेती अड़ चेथी जानेंन, खेती बेच नऊकरी बजायेन। चिरहा फटहा हमन पहिरेन, ओनहा नवा ओकरे बर सिलवायेन। लाँघन भूखन हमन मरत हन, दांदर ओकरे मनके भरत हन। हमर दुख पीरा हरय कोन, बिन बरखा तरिया भरय कोन। सांप के मुंडी करा, हमर मन के…
Read Moreसासाबेगी
का सोंचबे अउ का हो जाथे फेर गोठ फटाक ले निकल जाथे मुह के तो धरखंद नइहे….! असकरन दास जोगी जी के ये कविता उंखर ब्लॉग www.antaskegoth.blogspot.com म छपे हे। आप येला उहां से पूरा पढ़ सकत हव।
Read Moreहमर पूंजी
दाई के मया अऊ ददा के गारी। बस अतकी हमर पूंजी संगवारी। सुवारी के रिस अऊ लईका के किलकारी। बस अतकी हमर पूंजी संगवारी। कोठी भर पीरा अउ भरपेट लचारी। बस अतकी हमर पूंजी संगवारी। हिरदे के निरमल;नी जानन लबारी। बस अतकी हमर पूंजी संगवारी। कोठा म धेनु अऊ छोटकुन कोला बारी। बस अतकी हमर पूंजी संगवारी। रीझे यादव टेंगनाबासा (छुरा)
Read Moreहमर स्कूल
हमर गॉव के गा स्कूल, सरकारी आवय झन भूल। दीदी-भैया पढ़े ल, चले आहु ना… खेल-खेल में सबो ल पढ़हाथे, अच्छा बात ल बताथे…..दीदी… रोज-रोज नवा-नवा, खेल खेलवाथे। गोटी-पथरा बिन गिन, गिनती लिखाथे।। हमर गॉव के……..दीदी…….. फल-फूल अंग्रेजी के, नाम हमन पढ़थन। दुनिया ल समझेबर, जिनगी ल गढ़थन।। हमर गॉव के……..दीदी……… दार-भात,कपड़ा के, झन चिंता करहु। सर-मैडम बने-बने, ध्यान दे के पढ़हु।। हमर गॉव के ……..दीदी……… सरपंच अउ पंच के एमा, हावै भागीदारी। जिला अधिकारी संग, सबके जिम्मेदारी।। हमर गॉव के………दीदी……….. मिलही बने शिक्षा, संगीत अउ गान के। तुंहर सम्मान…
Read Moreममा घर के अंगना
नाना – नानी घर खेलेंन कुदेंन चांकी भवरीं अउ मैना उड़ नीम के छाँव रहिस कबूतर के घर म डेरा छोटे नाना संग घूमे ल सिखेंन ममा घर के अंगना भई भई सब अलग बिलग होगे अंगना होंगे अब सुना कोनो ल कोनो से मतलब निये नीम के छाँव बुडगागे अंगना के कबूतर उड़ागे घर होगे सुना सुना पास पड़ोस के संगवारी भुलागींन तरिया के पानी सिरागिस गली खोल के बैठाया सिरागिस सुना होगे घर अंगना बछर बीत गईस अब भांचा सुने बर नाना – नानी घर ममा घर के…
Read Moreमाटी के पीरा
मोर माटी के पीरा ल जानव रे संगी, छत्तीसगढ़िया अब तो जागव रे संगी। परदेशिया ल खदेड़व इँहा ले, बघवा असन दहाड़व रे,संगी। मोर माटी के पीरा ल जानव रे संगी छत्तीसगढ़ी भाखा ल आपन मानव रे संगी। दूसर के रददा म रेंगें ल छोडव, अपन रददा ल अपने बनाव रे संगी। छोड़ के अपन महतारी ल दुख म, दूसर राज झन जवव रे संगी। मोर महतारी के पीरा ल, जानव रे संगी। अपन महतारी भाखा ल, बगराव रे संगी। मोर माटी के चिन्हारी ल, अब झन मिटाव रे संगी,…
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