कोनो तो समझ, का चीज ये पानी । जिए के एक ठन चीज, किथे ओला पानी। गांव गली सड़क नाला, झन बोहावव पानी ल। जिए पिए के काम आहि, ओ दीन मांगहू पानी ल। पानी बिना हे बन ह सुन्ना, चिरई चिरगुन उन्ना जी। पानी बचाबोन नई बोहावन, छोड़बो करनी जुन्ना जी। एक दिन अईसे आही जी, सबो परानी पछताबो जी । पानी बचबो पेड़ लगाबो, तभे जिनगी ल पबो जी। युवराज वर्मा बरगड़ा (साजा) जिला बेमेतरा 9131340315
Read MoreCategory: कविता
बारी के फूट
वाह रे बारी के फूट, फरे हस तैं चारों खूँट । बजार में आते साठ, लेथय आदमी लूट । दिखथे सुघ्घर गोल गोल, अब्बड़ येहा मिठाय । छोटे बड़े जम्मो मनखे, बड़ सऊंख से खाय । जेहा येला नइ खाय, अब्बड़ ओहा पछताय । मीठ मीठ लागथे सुघ्घर, खानेच खान भाय । बखरी मा फरे हावय, पाना मा लुकाय । कलेचुप बेंदरा आके, कूद कूद के खाय । नान नान लइका मन, चोराय बर जाय । कका ह लऊठी धर के, मारे बर कुदाय । कूदत फांदत भागे टूरा, नइ…
Read Moreससुर के नखरा
बिहाव के सीजन चलत हे, महु टुरी देखे बर गेंव, टुरी के ददा ह पूछथे, तोर में का टैलेंट हे, मैं केहेंव टैलेंट के बात मत कर, टैलेंट तो अतका हे, गाड़ी हला के बता देथव, टंकी में पेट्रोल कतका हे। रिस्ता केंसल। दूसर जघा गेंव, टुरी के ददा ह कथे का करथस? मैं केहेंव, वइसे तो पूरा बेकार हव, मैं एक साहित्यकार अव, गांव गली चौराहा में कविता सुनाथव, मनखे के मन बहलाथव, समय नई मिलय मोला बईठ के सुरताय बर, अपने मजाक बना लेथव मनखे ल हसाय बर।…
Read Moreप्रभु हनुमान जइसे भगत बनना चाही
पूरा भारत देस के कोंटा-कोंटा म भगवान श्री राम के नाव हे अउ ओखर नाव के संगे-संग श्री राम जी के सबले बड़े भक्त हनुमान के नाव सब्बो कोती लेहे जाथे, जइसे श्री राम के बड़े भक्त भगवन हनुमान हवयं, वइसने भगत अउ कोनो अब ये दुनिया म नइ हो सके, हनुमान जी ह अपन भगवान राम के सेवा म अपन पूरा जीवन ल लगा दे रहिस हे, अउ अपन भगवान के बिना ओला अउ कोनो दूसर चीज के मोह माया नइ रहिस हे, काबर के जेकर तीर ओकर भगवान…
Read Moreपछताबे गा
थोरिको मया,बाँट के तो देख, भक्कम मया तैं पाबे जी। पर बर, खनबे गड्ढा कहूँ, तहीं ओंमा बोजाबे जी।। उड़गुड़हा पथरा रद्दा के, बनके ,झन तैं घाव कर। टेंवना बन जा समाज बर, मनखे म धरहा भाव भर।। बन जा पथरा मंदीर कस, देंवता बन पुजाबे जी…. थोरको…… कोन अपन ए ,कोन बिरान, आँखी उघार के चिन्ह ले ओला। चिखला म सनागे नता ह जउन, धो निमार के बिन ले ओला।। बनके तो देख ,मया के बूँद, मया के सागर पाबे जी….. थोरको…. छल कपट के आगी ह, खुद के,…
Read Moreखिल खिलाके तोर मुस्काई
खिलखिलाके तोर मुस्काई अबड़ मोला सुहाथे मुड़ मुड़ के तोर देखना गजब भाथे हंसी हंसी म संगवारी मन तोर करथे चारी गजब हे तोर संगवारी खिलखिलाना घर के दुआरी म अंगना के कोना म सड़क के किनारे तरिया के पार म पड़ोस के कुँआ म तोर होथे चारी सबो कहिथे तोला निचट हे सुघ्घर मोर मन के भीतरी म आँखी के पुतरी म तहीं हस संगवारी तोर खिलखिलाई मोर जीव के होंगे काल निचट तोर सुघ्घराई अबड़ सताथे संझा बिहनिया गांवली बस हंसी हंसी म करथे तोर चारी खिलखिलाके तोर…
Read Moreगरमी आगे
आमा टोरे ल जाबो संगी , गरमी के दिन आये । गरम गरम हावा चलत , कइसे दिन पहाये । नान नान लइका के , होगे जी परीक्षा । मंझनिया भर घूमत हे , चड्डी पहिर के दुच्छा । ए डारा से ओ डारा मे , बेंदरा सही कूदथे । अब्बड़ मजा करथे लइका , पेड़ में अब्बड़ झूलथे । आइसक्रीम वाला आथे , अऊ पोप पोप बजाथे । लइका मन ल देख देख के अब्बड़ गाना गाथे । प्रिया देवांगन ” प्रियू “ पंडरिया
Read Moreमाटी के पीरा
मोर माटी के पीरा ल जानव जी। अपन बोली भाखा ल मानव जी। छत्तीसगढ़िया बोली भाखा ला। अपन जिनगी म उतारव जी। सब्बो छत्तीसगढ़ीया भाई, छत्तीसगढ़ी भाखा गोठियाव जी । हम अपनाबो ता सब अपनाही। अपन भाखा म गुरतुर गोठियाही। जान के माटी के मया ला। माटी के पीरा ला दुरिहा भगाही । मयारू हे मोर महतारी भाखा। ओखर मया म बोहाव जी। बन के नानकुं लइका कस। अपन महतारी के मया ल जानव जी। मोर माटी के पीरा ल जानव जी। महतारी भाखा ल गोठियाव जी। अनिल कुमार पाली…
Read Moreरोवत हे किसान
ए दे मूड़ ला धरके रोवत हे किसान। कइसे धोखा दे हे मउसम बईमान।। ए दे मूड़ ला धरके……………….. झमाझम देख तो बिजली हा चमके। कहुँ-कहुँ करा पानी बरसतहे जमके।। खेती खार नास होगे देखव भगवान। ए दे मूड़ ला धरके………………… करजा नथाय हावय दुख होवय भारी। गाँव छोड़ शहर कोती जाय सँगवारी।। कतका झेल सहय डोलत हे ईमान। ए दे मूड़ ला धरके…………………. सुन भइया सुन लव बन जावव सहाई। ढाढस बँधावौ संगी झन होय करलाई।। सपना देखय सुख के होवय गा बिहान। ए दे मूड़ ला धरके………………….. बोधन…
Read Moreझाड़ फूंक करलौ जी लोकतंत्र के
कोलिहा मन करत हे देखव सियानी, लोकतंत्र के करत हे चानी चानी। जनम के अढहा राजा बनगे, परजा के होगे हला कानी। भुकर भुकर के खात किंजरत, मेछराय गोल्लर कस ऊकर लागमानी। अंधरा बनावत हे लोकतंत्र ल, रद्दा घलो छेकावत हे। कऊवा बईठे महल के गद्दी, हँस देख बिलहरावत हे। महर महर महकय लोकतंत्र ह, अईसन बनाय रिहीस पुरखा मन। बईरी बनके आगे कलमुवा, अंधरा कनवा अऊ नकटा मन। सिरतोन केहे तै नोनी के दाई, खटिया म पचगे मिहनत के पाई। भागजनी ह राजा बनथे, करम के फुटहा चुर चुर…
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