छब्बीस जनवरी मनाबो संगी , तिरंगा हम फहराबो। तीन रंग के हमर तिरंगा, एकर मान बढाबो । ए झंडा ल पाये खातिर , कतको जान गंवाइस। कतको बीर बलिदानी होगे , तब आजादी आइस । हमर तिरंगा सबले प्यारा , लहर लहर लहराबो। छब्बीस जनवरी मनाबो संगी , तिरंगा हम फहराबो। चंद्रशेखर आजाद भगतसिंह , जनता ल जुरियाइस। वंदे मातरम के नारा ल , जगा जगा लगाइस । सुभाष चंद्र बोस ह संगी , जय हिन्द के नारा बोलाइस। आजादी ल पाये खातिर , जनता ल जगाइस । वंदे मातरम…
Read MoreCategory: कविता
जय छत्तीसगढ़ महतारी
मोर छत्तीसगढ़ महतारी के कोरा मा । बसे जम्मो परानी हे।। दाई बबा सुनाए रीहिस। मोला येखर कहानी हे।। तोर भुइया म वो दाई । खेत खार लहरावत हे।। तभे तो दाई ये भुइया ह दाई। धान कटोरा कहावत हे।। महतारी के कोरा बरोबर । सब मनखे ल राखे हस।। सबो परानी सेवा करे तोर । दया मया ल राखे हस।। छत्तीसगढ़ के माटी ल दाई। चंदन माथ मै लगाथव वो।। जय छत्तीसगढ़ महतारी। तोर चरण म माथ नवावत हाव।। छत्तीस हावय तो गड़ वो दाई। छत्तीस भोग लगवाव वो।।…
Read Moreअगुवा बनव
हुसियार बनके हुसियारी करव रे- बिजहा धान के रखवारी करव रे। करगा ल निमार फेकव, बन बदौरी ल चाली करव रे। लईका सियान मिलके बने, निस्तारी करव रे— सुमत के रद्दा म रेंगव, पिछवाव झन पूछी धरके, अगुवा बनव संगवारी चलव रे। मुहुकान ल तोपव झन, रद्दा ककरो रोकव झन। मुड़ी उपर चढ़हैईया ल, धरव पकड़व छोड़व झन। पगुरात झन बईठो भईसा कस, बघुवा कस गुरराय चलव रे। हमन किसनहा बेटा हरन, संघरही तेला संघराय चलव रे। ओरयाइस ओरवाती के धार, बांध लौ आजे तुमन पार। चिखला म गरकट्टा ल…
Read Moreदुरिहा दुरिहा के घलो,मनखे मन जुरियाय अउ सार छंद – मकर सक्रांति
दुरिहा दुरिहा के घलो,मनखे मन जुरियाय कोनो सँइकिल मा चढ़े,कोनो खाँसर फाँद। कोनो रेंगत आत हे,झोला झूले खाँद। मड़ई मा मन हा मिले,बढ़े मया अउ मीत। जतके हल्ला होय जी,लगे ओतके गीत। सब्बो रद्दा बाट मा,लाली कुधरिल छाय। मोर गाँव दैहान मा,मड़ई गजब भराय। किलबिल किलबिल हे करत,गली खोर घर बाट। मड़ई मनखे बर बने,दया मया के घाट। संगी साथी किंजरे,धरके देखव हाथ। पाछू मा लइका चले,दाई बाबू साथ। मामी मामा मौसिया,पहिली ले हे आय। मोर गाँव दैहान मा,मड़ई गजब भराय। ओरी ओरी बैठ के,पसरा सबो लगाय। सस्ता मा झट…
Read Moreभुर्री तापत हे
बाढहे हाबे जाड़ ह, सब झन भुररी तापत हे। कतको ओढ ले साल सेटर, तभो ले हाथ कांपत हे। सरसर सरसर हावा चलत, देंहें घुरघुरावत हे। नाक कान बोजा गेहे, कान सनसनावत हे। पानी होगे करा संगी, हाथ झनझनावत हे। कांपत हाबे लइका ह, दांत कनकनावत हे। गोरसी तीर में बइठे बबा, हाथ गोड़ लमावत हे। साल ओढके डोकरी दाई, चाहा ल डबकावत हे। गरम गरम पानी में, कका ह नहावत हे। गरमे गरम चीला ल, काकी ह बनावत हे। थरमा मीटर में घेरी बेरी, डिगरी ल नापत हे। बाढहे…
Read Moreमानवता गंवागे
मानुस जोनी के मानवता संगी अब कहा गवांगे रे मीठ मदरस कस गुरुतुर बोली अब कहा नंदागे रे ज्ञान के गठरी बांधे के दिन म लगे हे लिगरी चारी म ताव देखावत हे सब मनखे अपन अपन हुशियारीम अब्बड़ सुग्घर मानुस चोला धरम करम कमाए बर बने बने सुख सुम्मत के गोठ हिरदे म समाये बर कुसंग के रददा म जम्मों झन रेंगे सतमारग ल भुलागे रे मानुस जोनी के मानवता संगी अब कहा गवागे रे अधरम के ठीहा ल जम्मों झिन फलकावत हे नानकुन बात म अब लाल आँखी…
Read Moreचिंतन के गीत
बरहा के राज मा, जिमीं कांदा के बारी। बघवा बर कनकी कोंढ़हा, कोलिहा बर सोंहारी।।.. कतको लुकाएंव दुहना, कतको छुपाएंव ठेकवा। दे परेंव, बिलई ल रखवारी.. चोरहा ल देखके, सिपाही लुकाथे जी। बिलई ल देखके, मुसुवा गुर्राथे जी।। मछरी ह होगे अब तो, कोकड़ा बर सिकारी… बरहा के…. गरी खेलईया ह , फोही लगावत हे। कोतरी झोलईया ह, भुंडा फंसावत हे।। पांच बरस बर होगे, ओखर देवारी…. बरहा के…… करगा अउ धान के, अंतर ल देखव रे। खेत के बदौरी ल, मेंड़े म फेंकव रे ।। छत्तीसगढ़िया मनके, होगे हे…
Read Moreकँपकँपाई डारे रे
कँपकँपाई डारे रे ….ए….. एसो के जाड़ा कँपकाई डारे। करा कस तन ला जमाई डारे। कँपकँपाई डारे रे….ए….. दाँत किनकिनावत हे नाक हा बोहावत हे।। गोरसी तीर बइठे बबा चोंगी सुलगावत हे।। सुरूर सुरूर ए दे पुरुवाई मारे रे। कँपकँपाई डारे रे….ए…… उगती ले बुड़ती होथे कुरिया ह नइ भावै। कतको ओढ़े कथरी ला निंदिया नइ आवै।। का करवँ जीव ला करलाई डारे। कँपकँपाई डारे रे….ए….. देखव संगी सुरुज हा मोला बिजरात हे। भागत हावय छेंव छेंव कइसे इँतरात हे।। नहाई खोराई तरसाई डारे। कँपकँपाई डारे रे….ए…. बोधन राम निषाद…
Read Moreमहतारी के अंचरा
कलप कलप के चिचियावत हे, महतारी के अंचरा। अब आंसू ले भीग जावत हे, महतारी के अंचरा।। पनही के खीला अब, पांवे म गड़त हे। केवांस के नार अब, छानी मा चढ़त हे।। सूते नगरिहा ल जगावत हे, महतारी के अंचरा।…. कलप कलप….. मरहा खुरहा जम्मो, अंचरा म लुकाईस। हमर बांटा के मया मा, बधिया कस मोटाईस।। दोगला मन ,पोंछा बनावत हे, महतारी के अंचरा… कलप कलप….। परे-डरे लकड़ी ल , पतवार बना देंन। चोरहा मन ला घर के, रखवार बना देंन।। बइमानी मा चिरावत हे, महतारी के अंचरा… कलप…
Read Moreगीत – बाँसुरिया के तान अउ सूना लागे घर अँगना
बाँसुरिया के तान बाँसुरिया के तान मा, नचावय कन्हैया। राधा रानी घलो नाचै,बजावै पैजनियाँ। बाँसुरिया के……….. माई जसोदा मोर, दही ला गँवाडारिस। गोप गुवालीन मन, सूध भुला डारिस।। रद्दा ला छोड़ कहाँ, जावत हे जवईया। बाँसुरिया के……….. गईया चरावत सबो,खेले सब ग्वाला। पनिया भरत छेड़े, दिखे भोला भाला।। पनघट आय फोरे, पानी के गघरिया। बाँसुरिया के………… चिरई चुरगुन घलो, धुन मा मोहाय हे। तोर बँसरी राधा के, मन मा समाय हे।। देख लीला कान्हा के, मन मा बसईया। बाँसुरिया के……….. सूना लागे घर अँगना सूना लागे घर अँगना, दुवार सजना।…
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