1 नेता मन नफरत के बिख फइलावत हे, मनखे ला मनखे संग गजब लड़ावत हे. धरम-जात के टंटा पाले, सुवारथवस, राम-रहीम के झंडा अपन उठावत हे. अँधियार ले उन्कर हावय गजब मितानी, उजियार ला कइसे वो बिजरावत हे. उच्चा-टुच्चा , अल्लू-खल्लू मनखे मन, नेता बन के इहाँ गजब इतरावत हे. चार दिन कस चंदा कस हे जिन्कर जिनगी ‘बरस’ उन्कर बर, रात अंधियारी आवत हे. 2 नेक-नियत मा खामी झन कर, जिनगी ला निलामी झन कर. अपने सुवारथ बर तैं हर, दुनिया ला बदनामी झन कर. सुभिमान के जिनगी जी…
Read MoreCategory: कविता
दुकाल अऊ दुकाल
कभू पनिया दुकाल कभू सुक्खा दुकाल। परगे दुकाल ये दे साल के साल। सावन बुलकगे बिगन गिरे पानी के। मूड धर रोवय किसान का होही किसानी के। दर्रा हने खेत देख जिवरा होगे बेहाल। परगे दुकाल ये दे साल के साल। खुर्रा बोनी करेंव नई जामिस धान हा। थरहा डारे रहेंव, भूंज देइस घाम हा। पिछुवागे खेती के काम बतावंव का हाल। परगे दुकाल ये दे साल के साल। करजा करके धान लानेवं अब थरहा कहाँ पाहूं। कतका अकन धान होही, कईसे करजा चुकाहूं। घर के ना घाट के असन…
Read Moreमोर मन के बात
आज फेर तोर संग मुलाकात चाहत हंव, उही भुइंया अउ उही बात चाहत हंव। के बछर बाद मं फेर वो बेरा आही, मोर जीत अउ तोर मात चाहत हंव। मेहां बनहूं अर्जुन अउ तै हर करन, तोर-मोर बीच रइही फेर इही परन। अपन बाण तोला मारहूं या मेहां मरहूं, छै के काम नइ हे,पांचे बाचही कुरू रन। भीष्मपिता ल तको भसम मेहां करहूं, द्रोणाचार्य के घलो आत्मा ल हरहूं। जयद्रथ ह रतिहा के चंदा नइ देख सकय, आज सुरूज डूबे के पहिली ओला छरहूं। एक-एक झन करन में बदला लूहूं।…
Read Moreबीर नरायन बनके जी
छाती ठोंक के गरज के रेंगव, छत्तीसगढ़िया मनखे जी। परदेशिया राज मिटा दव अब, फेर ,बीर नरायन बनके जी।। हांस के फांसी म झूल परिस, जौन आजादी के लड़ाई बर। उही आगी ल छाती मा बारव, छत्तीसगढ़िया बहिनी भाई बर।। अपन हक ल नंगाए खातिर, आघू रहव अब तनके जी…. छाती ठोंक के…..! परदेशिया… आज भी गुलामी के बेढ़ी हे, हमर भाखा अउ बोली बर। सोनाखान के सोना लुटागे, परदेशिया मनके झोली बर।। खेत खेत मा गंगा ला दव, भुंइया के ,डिलवा ल खनके जी…. छाती ठोंक के…..! परदेशिया… झन…
Read Moreनारी हे जग में महान
नारी हे जग में महान संगी, नारी हे जग में महान। मय कतका करंव बखान संगी, नारी हे जग में महान। लछमी दुरगा पारवती अऊ, कतको रुप में आइस। भुंइया के भार उतारे खातिर, अपन रुप देखाइस। पापी अत्याचारी मन से, मुक्ति सब ल देवाइस। नारी हे जग में महान संगी, नारी हे जग में महान। मत समझो तुमन येला अबला, इही हे सबले सबला। नौ महीना कोख में राखके, पालिस पोसीस सबला। कतको दुख ल सहिके संगी, बनाइस हे हमला महान। नारी हे जग में महान संगी, नारी हे…
Read Moreदिन आ गे धान मिसाइ के
दिन आ गे धान मिसाइ के दौरी बेलन नंदा गे हार्वेस्टर टेक्टर फंदा गे चल दिहिस दिन सवनाई के दिन आ गे धान मिसाइ के डोकरा धरे हे पनपुरवा डोकरी फटकारे चिंगरी सुरवा नई हे माटी ममहाइ के दिन आ गे धान मिसाइ के धान ला भर लौ कोठी मा बइला हकालव लौठी मा पाना हरियर रुखराइ के दिन आ गे धान मिसाइ के भइया अपन पागी खोंचय भउजी मने मन का सोचय नई हे दिन अपन बड़ाई के दिन आ गे धान मिसाइ के सुवा गीत ला संगी गावा…
Read Moreकभू तो गुंगवाही
कईसे के बांधव मोर घर के फरिका, जरगे मंहगाई नेता मन करथे बस बईठका I कोनों दांत निपोरथे, कतको झिन खिसोरथे, कुर्सी म बैठके कुर्सी भर ल तोड़थे I अज्ररहा नेता कईके मंगतीन देथे गारी, गोसैईया किथे इही मन ताय हमर बिपत के संगवारी I तरुवा सुखागे मंहगाई के आगी म, उपराहा होगे लेड़गा के गाँव म सियानी I कोन जनी कोन ह बघवा असन ललकारही, जम्मों पैहा मन जब कुकुर असन भागही I गुंगवाही कभू तो ककरो चुल्हा के आगी, तभेच मुड़ी धरके बईठही भ्रषटाचारी नेता अऊ बैपारी I…
Read Moreनवा बिहान
नवा बछर के नवा अंजोर, थोकिन सुन गोठ ल मोर। उही दिन होही नवा बिहान, जेन दिन छूटही दारू तोर। तोला कहिथे सब झन चोर, कोठी के धान बेचे बर छोर। उही दिन होही नवा बिहान, जेन दिन छूटही दारू तोर। जगा-जगा सुते दांत निपोर, मांगथस तै चिंगरी के झोर। उही दिन होही नवा बिहान, जेन दिन छूटही दारू तोर। बाई के झन मुड़ी ल फोर, मया के माटी मं घर ल जोर। उही दिन होही नवा बिहान, जेन दिन छूटही दारू तोर। लइका बर जहर झन घोर, खेलय सुघ्घर…
Read Moreपूस के जाड़
पूस के जाड़, पहाथे लटपट। मोर कुंदरा म घाम, आथे लटपट। मोर बाँटा के घाम ल खाके, सरई – सइगोन मोटात हे। पथरा – पेड़ – पहाड़ म, मोर जिनगी चपकात हे। गुंगवात रिथे दिन – रात, अँगरा अउ अँगेठा। सेंकत रिथे दरद ल, मोर संग बेटी – बेटा। कहाँ ले साल-सुटर -कमरा पाहूं? तन चेंदरा म, तोपाथे लटपट। पूस के जाड़ , पहाथे लटपट। मोर कुंदरा म घाम,आथे लटपट। मोर भाग दुख, अतरा होगे हे। भोग-भोग के मोर तन,पथरा होगे हे। सपना म सुख, घलो दिखे नही। मोर भाग…
Read Moreसोनाखान के आगी – लक्ष्मण मस्तुरिया
धरम धाम भारत भुइयां के मंझ म हे छत्तीसगढ राज जिहां के माटी सोनहा धनहा लोहा कोइला उगलै खान जिहां सिहावा के माथा ले निकले महानदी के धार पावन पैरी सिवनाथ तीर सहर पहर के मंगल हार जोंक नदी इन्द्रावती तक ले गढ़ छत्तीसगढ़ छाती कस उत्ती बर सरगुजा कटाकट दक्खिन बस्तर बागी कस पूरब ले सारंगढ गरजै राजनांदगांव पच्छिम ले एक न एक दिन रार मचाहीं बेटा मोर सोन पंखिन के जिहां भिलाई कोरबा ठाढे पथरा सिंरमिट भरे खदान तांबा पीतल टीन कांछ के इही माटी म थाथी खान…
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