शिव शंकर ला मान लव , महिमा एकर जान लव । सबके दुख ला टार थे , जेहा येला मान थे ।। काँवर धर के जाव जी , बम बम बोल लगाव जी । किरपा ओकर पाव जी , पानी खूब चढ़ाव जी ।। तिरशुल धर थे हाथ में , चंदा चमके माथ में । श्रद्धा रखथे नाथ में , गौरी ओकर साथ में ।। सावन महिना खास हे , भोले के उपवास हे । जेहर जाथे द्वार जी , होथे बेड़ा पार जी ।। महेन्द्र देवांगन “माटी” (शिक्षक) पंडरिया …
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कविता: कुल्हड़ म चाय
जबले फैसन के जमाना के धुंध लगिस हे कसम से चाय के सुवारद ह बिगडिस हे अब डिजिटल होगे रे जमाना चिट्ठी के पढोईया नंदागे गांव ह घलो बिगड़ गे जेती देखबे ओती डिस्पोजल ह छागे कुनहुन गोरस के पियैया “साहिल” घलो दारू म भुलागे आम अमचूर बोरे बासी ह नंदागे तीज तिहार म अब फैसन ह आगे पड़ोसी ह घलो डीजे म मोहागे का कहिबे मन के बात ल अब अपन संगवारी ह घलो मीठ लबरा होगे जेती देखबे ओती मोबाईल ह छागे घर म खुसर फुसुर अउ खोल…
Read Moreकविता : वा रे मनखे
वा रे मनखे रूख रई नदिया नरवा सबो ल खा डरे रूपिया- पैसा धन-दोगानी, चांदी-सोना सबो ल पा डरे जीव-जंतु, कीरा-मकोरा सब के हक ल मारत हस आंखी नटेरे घेरी बेरी ऊपर कोती ल ताकत हस पानी नी गीरत हे त तोला जियानत हे फेर ए दुनिया के सबो परानी ऊपरवाला के अमानत हे तोर बिसवास म पूरा पिरथी ल तोला दे दिस अउ तें बनगे कैराहा-कपटी, लालची अब भुगत अपन करनी के सजा ऊपरवाला ल लेवन दे मजा!! रीझे यादव टेंगनाबासा (छुरा)
Read Moreउत्ती के बेरा
कविता, झन ले ये गाँव के नाव, ठलहा बर गोठ, हद करथे बिलई, बिजली, चटकारा, बस्तरिहा, अंतस के पीरा, संस्कृति, तोला छत्तीसगढी, आथे!, फेसन, कतका सुग्घर बिदा, गणेश मढाओ योजना, बेटा के बलवा, बाई के मया, रिंगी-चिंगी, अंतस के भरभरी, बिदेशी चोचला, ममादाई ह रोवय, छत्तीसगढिया हिन्दी, सवनाही मेचका, चिखला, महूँ खडे हँव, जस चिल-चिल, कुकुरवाधिकार, पइसा, तोर मन, होही भरती, छ.ग. के छाव, उत्ती के बेरा, हरेली, दूज के चंदा, अकादशी, निसैनी, प्रहलाद, राजनीति, नवा बछर, गुन के देख, चाकर, बिचार, श्रृंगार अउ पीरा, जीव के छुटौनी, पसार दिये तैं मनोज कुमार श्रीवास्त, शंकरनगर नवागढ, जिला – बेमेतरा, छ.ग., मो. 8878922092, 9406249242, 7000193831 हरेली सखी मितान अउ सहेली, मिल-जुल के बरपेली, खाबों बरा-चिला अउ, फोड्बो नरियर भेली, आज कखरो नई सुनन संगी, मनाबो तिहार हरेली
Read Moreहरेली तिहार आवत हे
हरियर-हरियर खेत खार, सुग्घर अब लहरावत हे। किसान के मन मा खुशी छागे, अब हरेली तिहार आवत हे।। खेत खार हा झुमत गावत, सुग्घर पुरवाही चलावत हे। छलकत हावे तरीया डबरी, नदिया नरवा कलकलावत हे।। रंग बिरंग के फूल फुलवारी, अब सुग्घर डुहूँरु सजावत हे। कोइली पँड़की सुवा परेवना, प्रेम संदेशा सुनावत हे।। नर-नारी अउ जम्मो किसान, किसानी के औजार ला धोवत हे। किसानी के काम पुरा होगे, अब चिला चघाय बर जोहत हे।। लइका मन भारी उत्साह, बाँस के गेड़ी बनवावत हे। चउँर के चिला सुग्घर खाबो, अब हरेली…
Read Moreतयं काबर रिसाये रे बादर
तयं काबर रिसाये रे बादर तरसत हे हरियाली सूखत हे धरती, अब नई दिखे कमरा,खुमरी, बरसाती I नदियाँ, नरवा, तरिया सुक्खा सुक्खा, खेत परे दनगरा मेंड़ हे जुच्छा I गाँव के गली परगे सुन्ना सुन्ना, नई दिखे अब मेचका जुन्ना जुन्नाI करिया बादर आत हे जात हे, मोर ह अब नाचे बर थररात हेI बिजली भर चमकत हे गड़गड़ गड़गड़, बादर भागत हे सौ कोस हड़बड़ हड़बड़ I सुरुज ह देखौ आगी बरसात हे, अबके सावन ल जेठ बनात हे I कुआँ अऊ बऊली लाहकत लाहकत, चुल्लू भर पानी म…
Read Moreसावन के झूला
सावन के झूला झूले मा , अब्बड़ मजा आवत हे। सबो संगवारी मिलके जी ,सावन के गीत गावत हे।। हंसी ठिठोली अब्बड़ करत , झूला मा बइठे हे। पेड़ मा बांधे हाबे जी , डोरी ला कसके अइठे हे।। दू सखी हा बइठे हे जी , दू झन हा झूलावत हे। पारी पारी सबो संगी, एक दूसर ला बुलावत हे।। हांस हांस के सबोझन हा , अपन अपन बात बतावत हे। सावन के आगे महीना जी ,सबोझन झूला झूलावत हे।। प्रिया देवांगन “प्रियू” पंडरिया (कवर्धा) छत्तीसगढ़
Read Moreसुरता
गिनती, पहाड़ा, सियाही, दवात पट्टी, पेंसल, घंटी के अवाज स्कूल के पराथना, तांत के झोला दलिया, बोरिंग सुरता हे मोला। बारहखड़ी, घुटना अउ रुल के मार मोगली के अगोरावाला एतवार चउंक के बजरंग, तरियापार के भोला भौंरा, गिल्ली-डंडा सुरता हे मोला। खोखो, कबड्डी अउ मछली आस भासा, गनित, आसपास के तलाश एक एकम एक, चार चउंके सोला चिरहा टाटपट्टी सुरता हे मोला। गाय के रचना, चिखला मे सटकना बियाम के ओखी एती ओती मटकना अलगू, जुम्मन अउ कांच के गोला कंडील के अंजोर सुरता हे मोला। चोर-पुलिस,आदा-पादा खी-मी, कुकुरचब्बा आधा…
Read Moreकुछ तो बनव
आज अंधियारी म बितगे भले, त अवइया उज्जर कल बनव। सांगर मोंगर देहें पांव हे, त कोनो निरबल के बल बनव। पियासे बर तरिया नी बनव, त कम से कम नानुक नल बनव। रूख बने बर छाती नीहे, त गुरतुर अउ मीठ फल बनव। अंगरा बरोबर दहकत हे जम्मो, त ओला शांत करे बर जल बनव। कपट के केरवस मे रंगे रहे जिनगानी, त अब तो थोरिक निरमल बनव। रीझे यादव टेंगनाबासा(छुरा)
Read Moreकपड़ा
कतका सुघ्घर दिखथे वोहा अहा! नान-नान कपड़ा मं। पूरा कपड़ा मं, अउ कतका सुघ्घर दिखतीस? अहा!! केजवा राम साहू ‘तेजनाथ‘ बरदुली,कबीरधाम (छ.ग. ) 7999385846
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