पितर पाख म साहित्यिक पुरखा के सुरता – कोदूराम दलित

मुड़ी हलावय टेटका, अपन टेटकी संग जइसन देखय समय ला, तइसन बदलय रंग तइसन बदलय रंग, बचाय अपन वो चोला लिलय गटागट जतका, किरवा पाय सबो ला भरय पेट तब पान पतेरा मा छिप जावय ककरो जावय जीव, टेटका मुड़ी हलावय ।। ************************** भाई एक खदान के, सब्बो पथरा आँय कोन्हों खूँदे जाँय नित, कोन्हों पूजे जाँय कोन्हों पूजे जाँय, देउँता बन मंदर के खूँदे जाथें वोमन फरश बनयँ जे घर के चुनो ठउर सुग्घर मंदर के पथरा साँही तब तुम घलो सबर दिन पूजे जाहू भाई ।। – कोदूराम…

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साहित्यिक पुरखा के सुरता – कपिलनाथ मिश्र

दुलहा हर तो दुलहिन पाइस बाम्हन पाइस टक्का सबै बराती बरा सोंहारी समधी धक्कम धक्का । नाऊ बजनिया दोऊ झगरै नेंग चुका दा पक्का पास मा एक्को कौड़ी नइये समधी हक्का बक्का । काढ़ मूस के ब्याह करायों गांठी सुक्खम सुक्खा सादी नइ बरबादी भइगे घर मा फुक्कम फुक्का । पूँजी रह तो सबे गँवा गे अब काकर मूं तक्का टुटहा गाड़ा एक बचे हे वोकरो नइये चक्का । लागा दिन दिन बाढ़त जाथे साव लगावे धक्का दिन दुकाल ऐसन लागे हे खेत परे हे सुक्खा। लोटिया थारी सबो बेंचागे…

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पितर पाख मा साहित्यिक पुरखा के सुरता : भगवती चरण सेन

नेरुवा दिही छांड के बेपारी मन आइन, छत्तीसगढ़ के गांव गांव मं सब्बो झन छाईन लडब्द् परेवा असन अपन बंस ला बढाईन। कहि के ककाा, बबा, ममा, चोंगी ला पिया के। घर मां खुसर के हमर पेट ला मर दिहीन …। चांदी के सुंता, बारी फूल कंस कहां गए ? हाड़ा असन दिखत हावे, तोर मांस कहां गे सबो होंगे बरोबाद, सईतनै कहां गे प खाता मं नांव लिख के , तोला खा के बइठ गे छुट्टे रहिबे कहि के , तोला लगा मं दाल मिहीनम्म्म !! – भगवती चरण…

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पितर पाख मा पुरखा मन के सुरता : हरि ठाकुर

व्‍हाट्स एप ग्रुप साहित्‍यकार में श्री अरूण कुमार निगम भईया ह पितर पाख मा पुरखा मन के सुरता कड़ी म श्री हरि ठाकुर के कविता प्रस्‍तुत करे रहिन हे जेला गुरतुर गोठ के पाठक मन बर सादर प्रस्‍तुत करत हन – दिया बाती के तिहार होगे घर उजियार गोरी, अँचरा के जोत ल जगाये रहिबे । दूध भरे भरे धान होगे अब तो जवान परौं लछमी के पाँव निक बादर के छाँव सुवा रंग खेतखार, बन दूबी मेढ़ पार गोई, फरिका पलक के लगाये रहिबे । जूड़ होगे अब घाम…

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तीजा के अगोरा

बेटी माई मनके आरूग तिहार ताय तीजा । मईके के मया अऊ दुलार ताय तीजा । पाख लगे हे सपना मा जईसन उड़ान ताय तीजा । संगी जहुरियां सखी सहेली के मिलान ताय तीजा । करू भात अऊ करेला के सुग्हर साग ताय तीजा । फेर निरजला उपास के घलो नाव ताय तीजा । मईके के फरिया के तको मान ताय तीजा । गाँव के आबो हवा में घुले एक मिठास ताय तीजा । ससुरार के सुख दुख ल छाँव मा बिसरायके गोठ ताय तीजा । दाई के देहरी अऊ…

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झंडा फहराबो

हमर देश होईस अजाद, आजे के दिन, आवव संगी झूमे नाचे बर जाबो। जगा जगा झंडा फहराबो, अऊ आरूग तिहार मनाबो। लईका लोग अऊ सियान, सुन ग मोर मितान, संसकिरती अऊ माटी के, मान ल सुग्घर बढ़ाबो। हमर सियान के सियानी रद्दा म, सोजे सोज जाबो। अतलंगी करैया मनखे ल, मया के भाखा सिखाबो। पुरखा के हमर सपना ल, मिर जुर के संजोबो। जग जग ले होवय ऊँजयारी, झन रहाय कोनों मुड़ा अंधियारी। कोनों मत रहाय फाका म, ककरो मत होवय लचारी। सिरतोन म अईसन, आरूग तिहार मनाबो, अऊ जगा…

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काबर बेटी मार दे जाथे

कतको सबा,लता,तीजन ह मउत के घाट उतार दे जाथे देखन घलो नइ पावय दुनिया,गरभे म उनला मार दे जाथे बेटा-बेटी ल एक बरोबर नइ समझय जालिम दुनिया ह बेटा पाए के साध म काबर बेटी कुआँ म डार दे जाथे? काबर बेटी मार दे जाथे? नानपनले भेद सइथे बेटा ल ‘बैट’ एला ‘बाहरी’मिलथे काम-बुता म हाथ बटाथे तभो ले बेटी आघू रहिथे नाव बढ़ाथे दाई-ददा के अपन मेहनत ले बपरी मन तभो ‘हीनता’ के दलदल म काबर इहि डार दे जाथे? काबर बेटी मार दे जाथे? दूनो कुल के मान…

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ओहा मनखे नोहय

जेन ह दुख म रोवय नइ मया के फसल बोवय नइ मुड़ ल कभू नवोवय नइ मन के मइल ल धोवय नइ ओहा मनखे नोहय जी। जेन ह जीव के लेवइया ए भाई भाई ल लड़वइया ए डहर म कांटा बोवइया ए गरीब के घर उजरइया ए ओहा मनखे नोहय जी। जेन ह रोवत रोवत मरे हे भाग ल अगोरत खरे हे बेमानी के दऊलत धरे हे जलन के भाव ले भरे हे ओहा मनखे नोहय जी। जेन चारी चुगली करत हे दाई ददा के घेंच धरत हे पइया के…

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