चांटी मन के कविता

आज मोला एक ठन कविता लिखे के मन करत हे। फेर काकर उपर लिखअव ,कइसे लिखअव बड़ असमंजस में हव जी… मोर मन ह असमंजस में हे, बड़ छटपठात हे ।तभे चांटी मन के नाहावन ल देख परेव अउ कविता ह मन ले बाहिर आइस। चांटी मन माटी डोहारत हे भाई… जीव ले जांगर उठावट हे भाई… महिनत करे ल सिखावत हे भाई… हमन छोटे से परानी हरन, तभो ले हमन थिरावन नहीं आज के काम ल, काली बर हमन घुचावन नहीं। महिनत करना हमर करम हे, फल देवाइया ऊपर…

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छत्तीसगढ़ी संस्कृति के खुशबू ल बगराने वाला एक कलाकार- मकसूदन

सुआ नृत्य अउ गीत नारी मन के पीरा ल कम करथे। सुर अउ ताल म बंधे सुआ के चारो डाहर गोल घूमत नारी ऐखर पहिचान आय। ये दल म 180 झन नारी नृत्य करहीं त कइसे लगही ये सोचे के बात आय। ये सोच ल पूरा करे हावय मकसूदन राम साहू। राजीव लोचन महोत्सव म ये अनोखा आयोजन होथे। राजधानी रइपुर तीर के एक ठिन गांव चिपरीडीह म जनमे एक झन पातर दूबर ऊंच अकन मनखे जेन ला मकसूदन राम साहू के नांव ले लोगन जानथे, पहिचानथें। उनला ‘बरी वाला’…

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अबिरथा जनम झन गंवा

अबिरथा जनम झन गंवा रे, मानुस तन ल पाके। भगवान ल दोस झन दे रे, कुछु नई दे हे कहिके॥ भगवान दे हे सुग्घर दु हाथ, दु गोड़। मिहनत ले तंय रे, मुहु झन मोड़। सोन ह कुन्दन बनथे, आगी म तपके। अबिरथा जनम झन गंवा रे, मानुस तन ल पाके॥ तोला अऊ देहे बढ़िया, दु ठन आंखी, दु ठन कान। अइसन पाके अनमोल रतन काबर बने हस अनजान? फोकटे झन घूमत र, दूसर के बात म आके। अबिरथा जनम झन गंवा रे, मानुस तन ल पाके॥ भूल के तंय…

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