नदिया के धार बहिस छुनुन—छुनुन छन कहिस. चउमासी कचरा मन धारोधार बोहागे, मटियाहा पानी मन सुग्घर अब छनागे. पी लौ ससन भर सब, गुरतुर कछार कहिस. .. नदिया के धार बहिस अब नइ बोहाव ग डुबकव हरहिन्छा, फरी—फरी पानी हे तउंरव छुरछिंदा. देखव दरपन कस अउ, मुॅंह ल निहार कहिस. .. नदिया के धार बहिस उजरा लौ तन ल अउ फरिहा लौ मन ल, सुस्ता लौ सुरता म खोजव लरकन ल. जॉंगर ह थक गे हे, गोड़ ल दव डार कहिस. .. नदिया के धार बहिस पयरी ला मांजथे, चूंदी…
Read MoreCategory: गीत
कवित्त छंद
ऐती तेती चारो कोती, इहरू बिछरू बन, देश के बैरी दुश्मन, घुसरे हे देश मा । चोट्टा बैरी लुका चोरी, हमरे बन हमी ला, गोली-गोला मारत हे, आनी बानी बेश मा ।। देश के माटी रो-रो के, तोला गोहरावत हे, कइसन सुते हस, कब आबे होश मा । मुड़ म पागा बांध के, हाथ धर तेंदु लाठी, जमा तो कनपट्टी ला, तै अपन जोश मा ।। 2-. फेशन के चक्कर मा, दूसर के टक्कर मा, लाज ला भुलावत हे, गांव के टूरा टूरी । हाथ धरे मोबाईल, फोकट करे स्माईल,…
Read Moreकवित्त
हमरेच खेत के वो चना ला उखनवाके हमरेच छानी-मा जी होरा भुँजवात हे अपन महल-मा वो बैठे-बैठे पगुरावै देखो घर-कुरिया हमर गुंगवात हे. जांगर अउ नांगर ला जाने नइ जिनगी-मा सफरी ला छीये नइ दूबराज खात हे असली सुराज के तो मँजा इहि मन पावैं सपना सुराज के हमन ला देखात हे.. अरुण कुमार निगम आदित्य नगर, दुर्ग [छत्तीसगढ़]
Read Moreपारंपरिक लोक गीत : मोर मन के मजूर
मोर मन के मजूर चले आबे नरवा करार म। नईं हे कोनों या मोरों सहारा, संग म जाथे तीर के जंवारा हॉ या तै हा आबे जरुर मोर मन के मजूर। नई सुहावै अन-पानी, कइसे के चलही जिनगानी। हौं या तैं आबे जरूर मोर मन के मंजूर। घरे म बइठ के सोचत रहिथौं, अंचरा म आंसू पोंछत रहिथौं। हॉ या तै आबे जरूर मोर मन के मंजूर। मरकी ल धर के सिरतोन मैं जाहूं, आभा मार के तू हीं ल बलाहूं। हॉ या तै आबे जरूर मोर मन के मंजूर।…
Read Moreअजब-गजब
अजब संसार होगे, चोर भरमार होगे चोरहा के भोरहा म चंउकीदार उपर सक होथे सच बेजबान होगे, झूठ बलवान होगे बईमान बिल्लागे ते, ईमानदार उपर सक होथे मुख बोले राम – राम, पीठ पीछु छुरा थाम बेवफा बिल्लागे ते वफादार उपर सक होथे रखवार देख बाग रोथे, जंगल म काग रोथे वरदी म दाग देख, थानादार उपर सक होथे दूभर ले दू असाड़, जिनगी लगे पहाड़ नैनन सावन-भादो, एला खार-खेती कहिथे पानीदार गुनाह करे, कानून पनिया भरे जनता जयकार करे, एला अंधेरगरदी कहिथे ढेकना कस चूसथे, मुसवा कस ठूंसथे बोहाथे…
Read Moreसुकवा कहे चंदा ले
सुकवा कहे चंदा ले गांव-गंगा नइ दिखे चोला चिटियाएहे, मन चंगा नइ दिखे खुमरी नंदागे कहॉं, खुरपा नइ दिखे खार सिरागे कहॉ, करपा नइ दिखे बिलासपुर म जइसे अरपा नइ दिखे सुकवा कहे चंदा ले गांव-गंगा नइ दिखे खांसर नंदागे, दमांद आवै दुलरू बईला के गर म बाजे झूल घुंघरू नंदिया तीर बंसी बाजे उही बेरा म राग बखरी ह छेड़े कुऑं – टेड़ा म मुटियारी खोपा म वो दावना नइ दिखे सुकवा कहे चंदा ले गांव-गंगा नइ दिखे कोठार नंदागे, कोठा नइए लछमी अगोरत राहे दूध, दही, कोरनी नांगर…
Read Moreजागो हिन्दुस्तान
सुनो रे संगी ! सुनो रे सांथी ! सुनो मोर मितान ! देसी राज म गोहार होवथे, होगे मरे बिहान ! जागो-जागो, गा जवान ! जागो-जागो, गा किसान ! जागो, जम्मों हिन्दुस्तान ! अजादी संगी ! रखैल होगे, ठाट-बाट अउ पोट के अंधरा कानून कोंदा-भैरा, पग-पग म खसोट हे ईमान के इनाम लंगोटी, बईमान बिछौना नोट हे देस-राज बर सहीद होगे, होगे जे बलिदान दाना-दाना बर तरस जथे, तिंकर लइका अउ सियान ! जागो-जागो, …. देंवता कस मान पावथे, खादी म हुंर्रा-गिधवा सुवारथ के सरकार ए, चोर-लुटेरा मितवा जोगनी लुटइया…
Read Moreवाह रे तै तो मनखे (रोला छंद)
जस भेडिया धसान, धसे मनखे काबर हे । छेके परिया गांव, जीव ले तो जांगर हे ।। नदिया नरवा छेक, करे तै अपने वासा । बचे नही गऊठान, वाह रे तोर तमाशा । रद्दा गाड़ी रवन, कोलकी होत जात हे । अइसन तोरे काम, कोन ला आज भात हे ।। रोके तोला जेन, ओखरे बर तै दतगे । मनखे मनखे कहय, वाह रे तै तो मनखे ।। दे दूसर ला दोष, दोष अपने दिखय नही । दिखय कहूं ता देख, तहूं हस ग दूसर सही ।। धरम करम के मान,…
Read Moreभोजली गीत
रिमझिम रिमझिम सावन के फुहारे । चंदन छिटा देवंव दाई जम्मो अंग तुहारे ।। तरिया भरे पानी धनहा बाढ़े धाने । जल्दी जल्दी सिरजव दाई राखव हमरे माने ।। नान्हे नान्हे लइका करत हन तोर सेवा । तोरे संग मा दाई आय हे भोले देवा ।। फूल चढ़े पान चढ़े चढ़े नरियर भेला । गोहरावत हन दाई मेटव हमर झमेला ।। रमेश कुमार सिंह चौहान सुरता : छत्तीसगढ़ी भाषा अऊ छत्तीसगढ़ के धरोहर ल समर्पित छत्तीसगढ़ी काव्यांजली
Read Moreदू ठन गीत रोला छंद अउ कुण्डलियां छंद म
1. मोर गवा गे गांव (रोला छंद) मोर गवा गे गांव, कहूं देखे हव का गा । बइठे कोनो मेर, पहीरे मुड़ी म पागा ।। खोचे चोंगी कान, गोरसी तापत होही । मेझा देवत ताव, देख मटमटवत होही ।।1।। कहां खदर के छांव, कहां हे पटाव कुरिया । ओ परछी रेगांन, कहां हे ठेकी चरिया ।। मूसर काड़ी मेर, हवय का संगी बहना । छरत टोसकत धान, सुनव गा दाई कहना ।।2।। टोड़ा पहिरे गोड़, बाह मा हे गा बहुटा । कनिहा करधन लोर, देख सूतीया टोटा ।। सुघ्घर खिनवा…
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