देखे म लोर लोर, बताये म जोर जोर गांव गली सोर सोर, गाड़ी बइला होर होर पानी गिरय झोर झोर, मूंड गांथे कोर कोर छत्तीसगढ़ मोर मोर, बोली भाखा ओर ओर तीजा तिहार पोर पोर, बेटी रोवय फोर फोर भईया आही अगोर अगोर, साव बनगे चोर चोर रानी कहय घोर घोर, राजा कहय थोर थोर धोती कहय छोर छोर, लुगरा पहिरे नोर नोर अंगना दुवारी खोर खोर, नता गोता तोर तोर करमा ददरिया टोर टोर, भाव भजन भोर भोर छइयॉं भुइयॉं ठोर ठोर, नादी बइला बोर बोर सोरा जिला डोर…
Read MoreCategory: गीत
सपना के गांव
हाना हाना म डोले मोर सपना के गांव पाना पाना म लिखे महतारी के नांव. झुनुक झेंगुर हर गावे फुदुक टेटका मगन आनी बानी के फूल इंहा हरियर उपवन बाना बाना मा बोले मोर सपना के गांव पाना पाना म लिखे महतारी के नांव. धरे नांगर तुतारी, धनहा बिजहा माटी धरती दाई के बेटा के भुइंया थाती गाना गाना म फूले मोर सपना के गांव पाना पाना म लिखे महतारी के नांव. ऐंठी चूरी महावर छिंटही लुगरा पहिरे तीजा पोरा म ठमके बेनी फुंदरा झमरे रीति रीति म गावे मोर…
Read Moreमसक मउंहा रे कहां पाबे सोंहारी
मसक मउंहा रे कहां पाबे सोंहारी चम्मच ह मजा करे झारा दुखियारी. गहूं बर मुसुवा हे शक्कर बर चांटा परलोखिया झड़कत हे घी के पराटा खरतरिहा झांके रे पर के दुवारी. मसक मउंहा रे कहां पाबे सोंहारी. बरा बोबरा ला घर लीस बहिरासू चीला लसकुसही बोहावत हे आंसू कुसली बिड़िया चले ठाकुर जोहारी. मसक मउंहा रे कहां पाबे सोंहारी. गुलगुलहा भजिया अब तो नंदागे जरहा अंगाकर उड़रिया भगागे पेट पिरही कराही सूते ओसारी. मसक मउंहा रे कहां पाबे सोंहारी. फरा फरागे चउसेला हे मुरही मुठिया मोटियारी हाबे एक सुरही करछुल…
Read Moreछत्तीसगढ़ के लोकगीत म गांधी
देंवता बन के आये गांधी, देंवता बन के आये. हमरे देस के अन धन ला, जम्मा जम्मो लूटिन परदेसियन के लड़वाए ले, भाई ले भाई छूटिन देस ला करके निचट निहत्था, उल्टा मारैं सेखी बोहे गुलामी करत रहेन हम, उंखरे देखा देखी तैं आंखी ला हमर उघारे, जम्मो पोल बताए गांधी देंवता बन के आये.. तोर करनी ला कतेक बतावों, सक्ति नइए भारी देस बिदेस अउ गांव गांव मा, तोरेच चरचा चारी तैं उपास कर करके मउनी बनके करे तपसिया साल बछर धरे अहिंसा, पथरा ला टघलाये. गांधी देंवता बन…
Read Moreपोरा के बिहान दिन-तिजा
तिजा लेय बर आहुं नोनी, मैं हा पोरा के बिहान दिन।। मइके के सुरता आवत होही, होगे तोला गजब दिन। महतारी के मया अलगे होथे, सुरता तोला आवत होही।। मन बैरी हा मानय नही, आंसु हा नी थमावत हाई। पारा परोस मा खेलस तेहा, छुटपन के सुरता आवत होही।। फुगड़ी अउ छुवउला खेलस, संगवारी मन के सुरता आवत होही। ककी भौजाई के नत्ता मन हा नोनी कहि बुलावत रिहिन।। खोर गली हा सुन्ना होगे दाई बहिनी सब रोहत रिहिन। हांसत हांसत तेहा आबे नोनी, रोवत-रोवत झन जाबे ओ।। तोर बिन…
Read Moreबरखा गीत
गरजत बरसत लहुकत हे बादर. आंखी म जइसे आंजे हे काजर. मेचका-झिन्गुरा के गुरतुर बोली हरियर हरियर, धनहा डोली बरसे झमाझम, गिरत हे पानी, माते हे किसानी, बइला, नांगर गरजत बरसत लहुकत हे बादर. आंखी म जइसे आंजे हे काजर. सुरूर सुरूर चले पवन पुरवइया अंगना म फुदरे बाम्भन चिरइया गली गली बन कुंजन लागे विधुन होगे एकमन आगर… गरजत बरसत लहुकत हे बादर. आंखी म जइसे आंजे हे काजर. खोर गली म चिखला पानी बोहागे रेला, कागद के डोंगी बनाय, खेले कोनो घघरइला सुरुज देवता के परछो नई मिले…
Read Moreगीत-राखी के राखी लेबे लाज
बंधना म बांध डारेवं भाई, राखी के राखी लेबे लाज। सुघ्घर कलाई तुहर सोहे, माथे के टीका सोहे आज।। किंजर-किंजर के देवता धामी, बदेंव मैं तुहर बर नरियर। लाख बछर ले जी हव भइया, नाव हो जाये तुहर अम्मर। तिरिया जनम ले हवं भइया, बहिनी के राखी पहिरबे आज।। रहे बर धरती छांव बर अगास, अइसन बनाये हवय विधाता। जिनगी भर रेंगत रहिबे, कभू गड़े नइ पांव म कांटा। नाव के बढ़त रहे सोहरत, नाव लेही जगत-समाज।। सबके मन के आस पूरा तैं, हवय मोर मनसा मन के। सब ले…
Read Moreफील्ड सॉंग्स ऑफ छत्त्तीसगढ़
Field Songs Of Chhattisgarh (1947)
Read Moreगीत : दीन दयाल साहू
मै हा नहकाहूं डोगा पार,आवत हे प्रभु मोर द्वार। तैहा जग के ,आये पालन हार ये मोरे स्वामी। राम लक्ष्मण दूनो भाई ,संग मा हावे सीता माई। तैहा जग के ,आये पालनहार। नइ डूबो कभू। मझदार,सेवा में आयेव मल्हार । तैहा जग के ,आये पालानहार मोरे स्वामी । तोर चरण मैहा परवार हूं ,सब सागर मे हा तर जाहूं। तेंहा जग के ,आये पालनहार । नेंना मोर तरसत हे आज ,कब आबे प्रभु तै मोर घाट। तेंहा जग के,आये पालनहार । नैना मोर तरसत हे आज ,कब आबे प्रभु तै…
Read Moreतोर मेहनत के लागा ल…..
तोर मेहनत के लागा ल….. तोर मेहनत के लागा ल, तोर करजा के तागा ल उतार लेतेंव रे, मैं ह अपन दुवार म……… देखत हावौं खेत-खार म जाथस तैं ह मंझनी-मंझनिया देंह ठठाथस तैं ह जाड़ न घाम चिन्हस, बरखा न बहार देखस ठउका उही बेर तोला पोटार लेतेंव रे, मैं ह अपन……. कहिथें बंजर-भांठा हरियाथे उहें तोर मेहनत के पछीना बोहाथे जिहें परबत सिंगार करय, नंदिया दुलार करय ठउका इही बानी महूं दुलार लेतेंव रे, तोला अपन…. तैं तो दानी म बनगे हस औघड़ दानी भले नइए तोर बर…
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