एक डंडिय़ा : माटी के पीरा…

ए माटी के पीरा ल कतेक बतांव, कोनो संगी-संगवारी ल खबर नइए। ए तो लछमी कस गहना म लदे हे तभो, एकर बेटा बर छइहाँ खदर नइए।। कोनो आथे कहूँ ले लाँघन मगर, इहाँ खाथे ससन भर फेर सबर नइए।… अइसे होना तो चाही विकास गजब, फेर खेती ल उजारे के डगर नइए।… धन-जोगानी चारों खुँट बगरे हे तभो, एकर कोरा म खेलइया के कदर नइए।… दुख-पीरा के चरचा तो होथे गजब, फेर सुवारथ के आगू म वो जबर नइए।… अइसन मनखे ल मुखिया चुनथन काबर, जेला गरब-गुमान के बतर…

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चोला माटी के हे राम

चोला माटी के हे राम एकर का भरोसा, चोला माटी के हे रे चोला माटी के हे हो हाय चोला माटी के हे राम एकर का भरोसा, चोला माटी के हे रे द्रोणा जइसे गुरू चले गे करन जइसे दानी संगी, करन जइसे दानी बाली जइसे बीर चले गे, रावन कस अभिमानी चोला माटी के हे राम एकर का भरोसा, चोला माटी के हे रे कोनो रिहिस ना कोनो रहय भई आही सब के पारी एक दिन आही सब के पारी काल कोनो ल छोंड़े नहीं राजा रंक भिखारी चोला…

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धरनहा – पं. जगमोहन प्रसाद मिश्र के गीत

तोर भोली सुरत मोला निक लागे रे, मोला निक लागे । हरियर हरियर लुगरा पहिरे चूरी कारी कारी धीरे धीरे आवत रहे बोझा धरे भारी तोला देखेंव तभे ले मोर सुध भुलागे । झिमिर झिमिर पानी बरसै चलथे पुरवाई तोरेच सुरता आथे कईसे करौं भाई तोर बिना मोला कईसे सुन्ना सुन्ना लागे । ताना देबे गारी देबे तोरेच कोती आहौं सबे कुछु सइहौं टूरी मारो घला खाहौं हांथ जोडे खडे र‍इहंव तोरेच आगे । ददा छोडेव दाई छोडेंव छोडेंव अपन भाई तोरेच खातिर घूमत रहिथंव नदिया अमराई परे रहिथंव कदम…

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चैत-नवरात म छत्तीसगढ़ी दोहा 6 : अरुण कुमार निगम

मात-पिता के मान हो, गुरु के हो सम्मान।मनखे बन मनखे जीये, सद्बुद्धि दे दान।। ओ मईया …… लोभ मोह हिंसा हटे, काम क्रोध मिट जाय।सतजुग आये लहुट के, अइसन कर तयं उपाय।। ओ मईया …… अनपूरना के वास हो, खेत खार खलिहान।कोन्हों लाँघन झन रहै, समृद्ध होय किसान।। ओ मईया …… तोर बसेरा कहाँ नहीं, कन-कन तहीं समाय।जउन निहारे भक्ति से, तोर दरसन फल पाय।। ओ मईया …… अँचरा मा ममता धरे, नैनंन धरे सनेह।बिन मांगे आसीस मिलय, शक्ति समाये देह।। ओ मईया …… कटय तोर सेवा करत, जिनगी के…

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अरुण कुमार निगम के गीत : नइ भूलय मिट्ठू तपत कुरु ….

आई लव यू………आई लव यू….तयं बोल रे मिट्ठू , आई लव यू….तपत कुरु के गये जमानाबोल रे मिट्ठू – आई लव यू….. राम-राम के बेरा -मा, भेंट होही तो गुड मार्निंग कहिबेए जी,ओ जी झन कहिबे,कहिबे तो हाय डार्लिंग कहिबेसबो पढ़त हे इंग्लिश मीडियमतयं काबर रहिबे पाछू …..आई लव यू………आई लव यू….तयं बोल रे मिट्ठू , आई लव यू…. हाट – बजार के नाम न ले , तयं मार्केटिंग बर जाये करकोन्हों क्लब के मेंबर बन के ,रोज स्वीमिंग बर जाये करसमझ न आये इंग्लिश पेपरतभो मंगाए कर बाबू…..आई लव…

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तपत कुरु भ‍इ तपत कुरु

तपत कुरु भ‍इ तपत कुरु बोल रे मिट्ठु तपत कुरु बडे बिहनिया तपत कुरु सरी मँझनिया तपत कुरु फ़ुले-फ़ुले चना सिरागे बाँचे हावय ढुरु-ढुरु ॥ चुरी बाजय खनन-खनन झुमका बाजय झनन-झनन गजब कमैलिन छोटे पटेलीन भाजी टोरय सनन-सनन केंवची-केंवची पाँव मा टोंडा पहिरे हावय गरु-गरु ॥ बरदि रेंगीस खार मा महानदी के पार म चारा चरथय पानी पीथँय घर लहुँटय मुँदिहार म भ‍इया बर भ‍उजी करेला राँधे हावय करु-करु ॥ पानी गिरथय झिपिर-झिपिर परछी चुहथय टिपिर-टिपिर गुरमटिया सँग बुढिया बाँको खेत मा बोलय लिबिर-लिबिर ल‍इका मन सब पल्ला भागँय डोकरी…

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होले तिहार

होले तिहार बड़ निक लागेसबके मन -मा उमंग जागे.समधिन मारे पिचकारी,समधी ला बड़ सुख-सुख लागे. आमा मऊँरिन,परसा मन, पहिरिन केसरिया हारजाड़-घाम दुन्नो चल देइन अपन-अपन ससुरार.का बस्ती, का वन-उपवन, कण -कण मा खुशिहाली छागे. नंदू नंगत नगाड़ा पीटय, फगुवा गावै फागधन्नू ढोल, मंजीरा मन्नू, झंगलू झोंके राग.सररर सराईस सरवन हर, सब्बो डौकी शरमागे. मंगलू घर के नवा मंडलिन, घिव- मा बरा पकायजी छुट्टा मंगलू मंडल हर, चोरा- चोरा के खाय.जब मंडलिन गुरेरे आँखी, तब बारी कोती भागे. अच्छा मनखे दूध पियें, घिनहा मन मदिरा भंगछेना लकड़ी झटक झटक के, करें…

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केसरिया रंग मत मारो कान्हा

छत्तीसगढ़ के प्रयागधाम राजिम म भगवान राजीवलोचन संग होली खेले के जुन्ना परम्परा हे। घुलैण्डी के दिन जब राजीवलोचन के पट खुलथे तब रूप रंग अलगेच नजर आथे। श्रध्दालु बिहंचे ले मंदिर परिसर में नंगाड़ा बाजा में बिधुन होके नाचथें। दू बजे के बाद भोग प्रसादी लगाथें। ऐ बेरा देस परदेस के जम्मो भगत मन भगवान राजीव लोचन संग होली खेले बर पहुंचथे। हमर संस्कृति म होली तिहार ल बढ़ सुग्घर ढंग ले मनाय के परम्परा हाबे। चारों डाहन बगरे मया सकलाय असन दिखथे। बैरी के बैर भुला जथे त…

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कान्हा के होली ( छत्‍तीसगढ़ी फाग गीत )

रंग बगरे हे बिरिज धाम मा कान्हा  खेले रे होली  वृन्दावन ले आये हवे  गोली ग्वाल के टोली  कनिहा में खोचे बंसी  मोर मुकुट लगाये  यही यशोदा मैया के  किशन कन्हैया आए आघू आघू कान्हा रेंगे  पाछु ग्वाल गोपाल  हाथ में धरे पिचकारी  फेके रंग गुलाल  रंग बगरे हे ……………. दूध दही के मटकी मा  घोरे रहे भांग बिरिया पान सजाये के  खोचे रहे लवांग ढोल नंगाडा बाजे रे  फागुन के मस्ती होगे रंगा-रंग सबो  गाँव गली बस्ती   रंग बगरे हे …… गोपी ग्वाल सब नाचे रे  गावन लगे फाग  जोरा…

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होली गीत

होगे फ़ागुन हा सर पे सवार ‘ जोहार ले जोहार ले जोहार। नरवा खलखल हांसत हे, नवा नवा फ़ूटत हे धार।(जोहार ले – – –  – बरदी के सुत गे गोसैया, सन्सो में हवय खेत खार।  जोहार ले – – – –  दिल ह चना के जवान हे, अउ राहेर लगत हे कचनार। जोहार ले- – – –  धान के कोनो पुछैया  नही, अउ खड़े हे चना के खरीदार। जोहार ले – – –  अमली के साड़ी हा सरकत  हे, अउ लहकत हे आमा के डार। जोहार ले – – –…

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