नारायण लाल परमार के कबिता

मन के धन ला छीन पराईस टूटिस पलक के सीप उझर गे पसरा ओखर बांचे हे दू चार कि अखिंयन मोती ले लो । आस बंता गे आज दिया सपना दिखता हे सुन्ना परगे राज जीव अंगरा सेंकत हे सुख के ननपन में समान दुख पाने हावै चारो खुंट अधियार के निंदिया जागे हावै काजर कंगलू हर करियायिस जम चौदस के रात बारिस इरखा आगी में बेंचै राख सिगार सहज सुरहोती ले लो । कि अंखिंयन मोती ले लो । नारायण लाल परमार

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गीत : सारी

मोर सारी परम पियारी गा र‍इपुरहिन अलग चिन्हारी गा कातिक मा ज‍इसे सियारी गा फ़ागुन मा ज‍इसे ओन्हारी गा हाँसय त झर-झर फ़ुल झरय रोवय त मोती लबारी गा ॥ एक सरीं देह अब्बड दुब्बर झेलनाही सोंहारी जस पातर मछरी जस घात बिछ्लहिन हे हंसा साही उज्जर पाँखर चर चर ल‍इका के महतारी फ़ेर दिखथय जनम कुँवारी गा ॥ लेवना साँही चिक्कन दिखथे कोयली साँही गुरतुर कहिथे न जुड सहय न घाम सहय एयर कन्डीसन म र‍इथे सरदी म गोंदा फ़ुल झँकय गरमी म भाजी अमारी गा ॥ आँखी म…

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पं.द्वारिका प्रसाद तिवारी ‘विप्र’ के गीत

तोला देखे रेहेंव गा, तोला देखे रेहेंव गा । धमनी के घाट मा बोईर तरी रे ।। लकर धकर आये जोही, आंखी ला मटकाये गा, कईसे जादू करे मोला, सुख्खा म रिझाये गा । चूंदी मा तैं चोंगी खोचे, झूलूप ला बगराये गा, चकमक अउ सोन मा, तैं चोंगी ला सपचाये गा । चोंगी पीये बइठे बइठे, माडी ला लमाये गा, घेरी बेरी देखे मोला, हांसी मा लोभये गा । जातभर ले देखेंव तोला, आंखी ला गडियायेंव गा, भूले भटके तउने दिन ले, हाट म नई आये गा । पं.द्वारिका…

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जनकवि स्व.कोदूराम’दलित’ जनम के सौ बरिस म बिसेस : ”धान-लुवाई”

चल संगवारी ! चल संगवारिन ,धान लुए ला जाई ,मातिस धान-लुवाई अड़बड़ ,मातिस धान-लुवाई. पाकिस धान- अजान,भेजरी,गुरमटिया,बैकोनी,कारी-बरई ,बुढ़िया-बांको,लुचाई,श्याम-सलोनी. धान के डोली पींयर-पींयर,दीखय जइसे सोना,वो जग-पालनहार बिछाइस ,ये सुनहरा बिछौना . गंगाराम लोहार सबो हंसिया मन-ला फरगावय ,टेंय – टुवाँ के नंगत दूज के चंदा जस चमकावय दुलहिन धान लजाय मनेमन, गूनय मुड़ी नवा के,आही हंसिया-राजा मोला लेगही आज बिहा के. मंडल मन बनिहार तियारयं, बड़े बिहिनिया ले जाके,चलो दादा हो !,चलो बाबा ! कहि-लेजयं मना-मना के. कोन्हों धान डोहारे खातिर,लेजयं गाड़ी-गाड़ा,फ़ोकट नहीं मिलयं तो देवयं , छै-छै रुपिया भाड़ा. लकर-धकर…

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मन डोले रे मांग फगुनवा …. बादर के दिन म फागुन लावत हें भाई लक्ष्‍मण मस्‍तुरिहा

छत्‍तीसगढ़ के नामी कबि गीतकार साहित्‍यकार लक्षमण मस्‍तुरिहा कवि सम्‍मेलन म – आरंभ मा पढव : – साथियों मिलते हैं एक ब्रेक के बाद

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हांसत हे सोनहा धान के बाली ह

पींवरा लुगरा पहिरे धरती हांसत हे, सोनहा धान के बाली ह। पींवरा पींवरा खेतखार दिखत हे, कुलकत हे अन्नपूर्णा महरानी ह॥ गांव-गांव म मात गे हे धान लुअई, खेतखार म मनखे गजगजावत हे। सुकालु, दुकालू, बुधियारिन, मन्टोरा संगी जहुरिया संग धान लुए बर जांवत हे॥ का लइका का सियान? मात गे हे जवानी ह। हांसत हे…। धान लुअइया मन के रेन लगे हे, कोन्हों गांवखार कोन्हों रेगहा खार म जावत हे। कोन्हों गाड़ा कोन्हों टे्रक्टर में धान के बीड़ा ल लानत हे॥ खरही रचागे कोठार म, मुचमुचावत हे लछमीरानी ह।…

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मिर्चा भजिया खाये हे पेट गडगडाये हे

बस मे कब ले ठाढे हँव बइठे बर जघा दे दे ले दे खुसर पाये हँव निकले बर जघा दे दे भीड मे चपकाये हँव सांस भर हवा दे दे मैं हर सांस लेवत हँव तैं कतक धकेलत हस भीड मे चपकाये हँव सांस भर हवा दे दे छेरी पठरु कर डारे मनखे ला अस भर डारे लइका भले तै झन दे सीट ला सगा दे दे समधी के सुआ मिर्चा भजिया खाये हे पेट गडगडाये हे टुरा के भरोसा का, दउड के दवा दे दे रामेश्वर वैष्णव (हिन्दी अनुवाद…

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रामेश्वर वैष्णव के कबिता आडियो

(राजनीतिज्ञो ने जो पशुता के क्षेत्र मे उन्नति की है उससे सारे पशु आतंकित है) पिछू पिछू जाथे तेला छटारा पेलाथे गा आघू म जो जाथे तेला ढूसे ला कुदाथे गा पूछी टांग के कूदय मोर लाल बछवा मोर लालू बछवा जब जब वो बुजा हा गेरुआ ले छुटे हे तब तब कखरो गा मुड कान फुटे हे हाथ गोड ना सही तभो ले दांत टुटे हे डोकरा अउ छोकरा ला खूदय, पूछी टांग के कूदय मोर लाल बछवा चिंग चडाग ले अस फलांग ले कूदय, मोर ….. खोरवा लहुट…

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मनकुरिया

मनकुरिया म काय नींगे हे रेकाय नींगे हावे मन कुरिया मं जेखर मूहू लाल लाल, जेखर गाल हे पताल जेखर नीयत हे चण्‍डाल, कईसे करत हें कमाल …. झांकथावे काय ओदे धुरिया ले, ये काय नींगे हावय मोर चोला बढ भोला, काबर लूटत हावो मोला मैं राना प्रताप के बाना आंव मोर चिरहा हे झोला जेला जाने पारा टोला सीलंव कथरी परोसी के देवाना आंव का काहंव ये हाल, जमा बिगडे हे चाल बुढावै आल पाल, देख आंखी ला सम्‍हाल जमा मोहनी भरे हे, लुरलुरिया मा, ये काय नींगे हावय महानदिया…

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