सुरता: हृदय सिंह चौहान

तरसा तरसा के, सुरता सुरता के तोर सुरता हर बैरी, सिरतो सिरा डारीस॥ जतके भुलाथंव तोला, ओतके अउ आथे सुरता जिनगी मोर दुभर करे, कर डारे सुरतेच के पुरता तलफा तलफा के कलपा कलपा के तोर सुरता हर बैरी, निचट घुरा डारीस॥1॥ कचलोइहा कर डारे तंयहा, पीरीत सिपचा के अइसे जलाये रे मोला, न कोइला न राख के कुहरा कुहरा के गुंगवा गुंगवा के तोर सुरता हर बैरी, खो-खो के जरा डारीस।।2॥ अंगरी के धरत धरत, नारी मं पहुंच गये, का मोहनी खवा के रे मोला, लुटे अउ कलेचुप घूंच…

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बादर गीत: हरि ठाकुर

भरगे ताल तरैया, भेया भरगे ताल तरैया झिमिर झिमिर जस पानी बरसे महके खेत खार के माटी घुड़र घुड़र जस बादर गरजै डोलै नदिया परबत घाटी नांगर धरके निकलिन घर से, सबै किसान कमैया॥ इतरावत है नदिया, लागिस झड़ी गजब रे ! सावन के बादर सेना घुमड़िन जइसे राम लखन अउ रावन के पानी बादर के भाटों के घर के राम रखैया ॥ ‘फूले लागिस धरती हरियर लुगरा भुइंया पहिने नाचिस अउर जोगिनी बरिस रात मां जइसे सिता गइस माचिस खोंदरा में चुचुवात खुसरे हवें गरीब चिरैया कब सुकुवा उथे…

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हरि ठाकुर के गीत: सुन-सुन रसिया

सुन-सुन रसिया ! आंखी के काजर लगय हंसिया चंदा ल रोकेंव, सुरुज रोकेंव रोकंव कइसे उमर ला चुरुवा भर-भर, पियैव ससन भर गुरतुर तोर नजरला मोर मन बसिया! तोर आँखी के काजर लगय हंसिया। सुन-सुन रसिया! गिनत-गिनत दिन, महिना, बच्छर मोर खियागे अंगरी रद्द देखते-देखत बैरी आँखी भइगे झेंझरी बैरी अपजसिया! तोर आँखी के काजर लगय हँसिया। सुन सुन रसिया! तोर बिन जिनगी ह मोला लागय जइसे जल बिना तरिया सांसा के आरी ह चीरे करेजा सपना ह बन गे फरिया बैरी परलोखिया ! तोर आँखी के काजर लगय हँसिया।…

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हरि ठाकुर के ‘सुराज के पहिली संग्राम’ के अंस

सब ले जुन्ना देश हमर धरम अउर संस्कृति के घर राम कृष्ण अवतरिन हइहां सरग बनाइन हमर भुयाँ। सुग्घर सबले छत्तिसगढ़ कौशिल्या माता के घर ओखर सुमरन कर परनान जनम दिहे तैं राजा राम। कलजुग मां जब पाप बढ़िस बेरा उतरिस, रात चढ़िस राजा-परजा दुनो निबल परिन गुलामी के दल दल। बनिया बन आइन अंगरेज मेटिन धरम, नेम, परहेज देस हमर सुख के सागर बनिस पाप-दुख के गागर। करिन फिरंगी छल-बल-कल फूट डार के करिन निबल बढ़िन फिरंगी पांव पसार हमरे खा के देइन डकार। करिन देस के सत्यानास भारत…

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चँदेनी के माँग में फागुन: पुरुषोत्तम अनासक्त

चँदेनी के माँग में फागुन बसै। तब चेहरा में पावों लाल-लाल फूल॥ हवा में कोन जनी का बात हे महमहावत हे दिन, महमहावत रात हे, चँदेनी के माँग में फागुन बसै। तब चेहरा में पावों परसा के फूल॥ उतरे हे सपना के रंग। जैसे भावत हे बादर के संग, चँदेनी के मिलकी में फागुन उतरै, तब चेहरा में पावों मोंगरा के फूल॥ बिजली, सम्हर के दिया-बाती बरै पुतरी के आँखी में काजर परे चँदेनी के अँचरा में फागुन उतरै । तब चेहरा में पावों आमा के मउर॥ चँदा के जीभ,…

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छत्तीसगढ़ के हम बनिहार: सालिकराम अग्रवाल ‘शलभ’

मालिक ठाकुर मन के अब तक, बहुत सहेन हम अत्याचार आज गाज बन जावो जम्मो छत्तीसगढ़ के हम बनिहार। बरसत पानी मां हम जवान,खेत चलावन नांगर घर-घुसरा ये मन निसदित के, हमन पेरन जांगर हमर पांव उसना भोमरा मां, बन जाथे जस बबरा तभो ले गुर्रावे बघवा कस, सांप हवैं चितकबरा। इनकर कोठी भरन धान से, दाना दाना बर हम लाचार (आज) इनकर बढ़िया चिकन चांदन, घर ल हमीं ऊंचावन झारन पोछन लीपन बहारन, दर्पन जस चमकावन इनकार घर पहार जैसे है, हमर हवै छितका कुरिया ये मन सोचे सेज…

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देख रे आंखी, सुन रे कान: भगवती लाल सेन

बोले मं परही चटकन तान, देख रे आँखी सुन रे कान। दही के भोरहा कपसा खायेन। गजब साल ले धोखा पायेन। गोठ गढ़ायेन, बहुत ओसायेन। तेखरे सेती आज भोसायेन। सीधा गिन के मिले खाय बर, खोजे कोनो डारा-पान। जनम के चोरहा बनिन पुजारी। सतवादी बर जेल दुआरी। सिरतोन होगे आज लबारी। करलई के दिन, झन कर चारी। बड़ गोहार पारे सेवा के, भीतरी खायं करेजा चान। कहिथे महंगी, होही सस्ती। हाँसत गाँव के हो ही बस्ती। अब गरीब के हो ही हस्ती। हर जवान में हो ही मस्ती। थोरको नइये…

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सरगुजिहा गीत : बरखा कर पानी

लबरा कर गोएठ लेखे, ए बच्छर बरखा कर पानी। एकस हें कइसें होए पारही, हमरे मन कर किसानी। एकघरी कर बरखा हर बुइध ला भुलाइस अगास कर बदरा हर, बुंदी बर तरसाइस। परिया परल हवे, जोंग ला नसाइस लागत हवे बतर ला बिदकाइस। ए बच्छर कर बरखा हें दिसथे, नई होए पारही किसानी। धुरिया बतराहा अउर चोपी चिखला नई, बीड़ा ला कोन उठने खोंची। बीयासी कर बेरा बतर हर नसाइस। काकर नांव धरी अपन किस्मत ला कोसी। हमर धरी कर का कहाऊ असों फेर नई होइस नगद पानी। सोंचे रहेंन…

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लईका मन कर सरगुजिहा समूह गीत: पेटू बघवा

ये गीत कहिनी ला लइका मन नाटक बनाए घलो खेल सकत आहाएं एक झन बघवा बनही और बाकी लइका मन जनावर। पाछू बाट जंगल कर परदा लगाए के, साज बाज संघे खेल सकथें। पेटू बघवा पेटू बघवा बन में आइस पेटू बघवा (गुर्र गुर्र गुर्र) जीभ लमाए-लप्पर लप्पर लार चुहाए-टप्पर टप्पर जंगल भर उदबास होय गईस जे हर बढ़िस खलास होय गईस घटिया सरना परबत झरना पतरा पतरी घुटरा घुटरी ओंगरी टोंगरी टोंगरी ओंगरी रोएट जनावर छोएट जनावर चरई चुनगुन चुनमुन चुनमुन खाते जाये अठर ललाए जेहर आए पेट में…

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कुंवर दलपति सिंह के राम-यश मनरंजन के अंश

सीता माता तुम्हार करत सुरता रे, झर झर बहै आंसू भीजथे कुरता रे पथरा तक पिघले टघलैं माटी रे। सुनवइया के हाय फटत छाती रे, कोनों देतेव आगी में जरि जातेंव रें, जिनगी में सुख नइये में मरि जातेवें रे। कहिके सीता माता अगिन मांगिन रे, कुकरी के बरोबर कलपे तो लागिन रे। ठौका तउने बखत टपकाय दियेंव में, चिन्हा मु दरी तुम्हरेला गिराय दियेंव में। झपर सीता माता उठाके तउने छिन, अकबक होके येती वोती देखिन रे। मुंदरी ला चिन्हें अपन घर के, लेइस छाती छुवाय आंखी में धर…

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