हमर राज के गुरतुर छत्तीसगढ़ी बोली अब भाषा बन गेहे, अब तो छत्तीसगढ़ी के मान सम्मान आगास मा पहुंच जाना चाही, फेर अइसन का होवत हे कि हमर अंतस मा हमाय छत्तीसगढ़ी, सम्मान के अगोरा मा दिनोदिन दुबरावत हे? जम्मों झन ये बात ला नकार नइ सके कि कोनो राज, संस्कृति, परंपरा, भाषा अउ गियान-बिग्यान ला साहित्य हा सहेज के राखथे, साहित्य के बिना ये दुनिया अंधियारी खोली बरोबर हो जही, अउ यहू गोठ ला माने ला परही कि ये दुनिया अउ समाज ला साहित्यिकार मन ही अपन ढंग ले…
Read MoreCategory: गोठ बात
योग रखय निरोग बरसात मा
असाढ़ के दिन आ गए। पानी गिरेबर धरलीस। अब मउसम हा ऊँच नीच होही। कभू अड़बड़ पानी गिरही, झड़ी करही, तब ठंडा लागही अउ दू दिन घाम करही ता मनखे उसना जही। हमर तन ला भगवान हे तौन अइसे विचित्र बनाके भेजे रहीस कि ठंडा में गर्म रहाय अउ गर्मी में ठंडा रहे। फेर हमन अपन तन ला आनी बानी के जिनिस,बेरा कुबेरा खवई पीयई, सुुतई बइठइ मा बेकार कर डरेन। अब ना ठंडा ला सही सकन ना गरमी ला। अउ तुरते बीमार हो जाथन। बरसात के आय ले भूइँया…
Read Moreअसाढ़ ले आसरा हे….
सूरुज नरायन ला जेठ मा जेवानी चढ़थे। जेठ मा जेवानी ला पाके जँउहर तपथे सूरुज नरायन हा। ताते-तात उछरथे, कोनो ला नइ घेपय ठाढ़े तपथे। रुख-राई के जम्मों पाना-डारा हा लेसा जाथे, चिरई-चिरगुन का मनखे के चेत हरा जाथे। धरती के जम्मों जीव-परानी मन अगास डाहर ला देखत रथें टुकुर-टुकुर अउ सूरज हा मनगरजी मा मनेमन हाँसत रथे मुचुर-मुचुर। सूरुज के आगी ले तन-मन मा भारी परे रथे फोरा,आस लगाय सब करत हें असाढ़ के अगोरा। गरमी के थपरा परे ले सबो के तन मा अमा जाथे अलाली अउ असाढ़…
Read Moreदाई के आँखी मा आंसू
बिसाहिन अबड़ेच कमेलिन तो रहय। गवन आइस अउ बिहान दिन ले खेत जाय के सुरु करे रहिस। उमर 65 बच्छर होगे फेर कमइ ल नी छोड़े हवय। चार बेटा के महतारी नाती नतनीन वाली होगे हवय, फेर कमइ मा बहूमन नी सकय। अपन हाथ मा सियानी करत 48 बच्छर बिता डरिस। अपन रहे के पुरतिन घर कुरिया, बोय खाय के पुरतिन खेत पहिलीच बना डरे रहिस। बेटामन के बिहाव करे पाछू सब ल हिल्ले हिल्ले लगा दिस। सबोमन अपन लोग लइका ल धर के आन सहर मा जियत खात हे।…
Read Moreअपने घर म बिरान हिंदी महिना
हमर देस म आजकल हिंदू अउ हिंदू संस्कृति के अब्बड़ चिंता करे जावत हे। साहित्यकार अउ संस्कृति करमी मन नंदावत रीत-रिवाज अउ परंपरा के संसो म दुबरात जावत हे। फेर एक ठन बिसय अइसे हे जेकर डाहन काखरो धियान नइ गे हे तइसे लगथे। वो बिसय हे हिंदी महिना अउ तिथी। हिंदी महिना के ज्ञान प्रायमरी कक्छा म देय के औपचारिकता के बाद कोनो मनखे ल हिन्दी महिना अउ तिथी के चिंता करे के सुध नइ राहय। आज कोनो भी अच्छा पढ़े-लिखे आदमी ल हिंदी महिना अउ तिथी बताय ल…
Read Moreछत्तिसगढि़हा कबि कलाकार
पानी हॅ जिनगी के साक्षात स्वरूप ये। जीवन जगत बर अमृत ये। पानी हँ सुग्घर धार के रूप धरे बरोबर जघा म चुपचाप बहत चले जाथे। जिहाँ उतार-चढ़ाव, उबड़-खाबड़ होथे पानी कलबलाय लगथे। कलकलाय लगथे। माने पानी अपन दुःख पीरा, अनभो अनुमान अउ उछाह उमंग ल कलकल-कलकल के ध्वनि ले व्यक्त करथे। पानी के ये कलकल- कलकल ध्वनि हँ ओकर अविचल जीवटता, सात्विक अविरलता अऊ अनवरत प्रवाहमयता के उत्कट आकांक्षा ल प्रदर्सित करथे। ओइसने मनखे तको अपन सुख-दुख ल, अंतस के हाव भाव ल गा-गुनगुना के व्यक्त करथे। वोहँ अपन…
Read Moreकबीर अउ बेद पुरान
कबीर साहेब ला महान संत माने गे हवय। अइसे ओला धर्म अउ पाखंड के आलोचक घलाव कहे जाथय। कबीर पहिली भारतवासी आय जौन सबो मनखे जात बर एक बरोबर धरम के बखान करे हवय। अंधबिस्वास, कुरीति अउ धरम पाखंड के बर भारी ताना मारे हवय। कबीर ला सच बोले के सेती सत्य कबीर घलाव कहे जाथय। कबीर के जनम अउ जिनगी घलाव एक बिचित्र घटना ले कम नइ हे। मुसलमान घर पालन पोसन होईस अउ गुरु रामानंद के चेला बनीस। जादा पढ़े लिखे तो नइ रहिस फेर जतका परवचन मा…
Read Moreआगे पढ़ई के बेरा : मोर लइका ला कहाँ पढ़ांव
गरमी के छुट्टी अब पूरा होवइया हे।नवा बच्छर (सत्र)मा लइका मन के भरती इस्कूल मा सुरु होवइया हे।कालेज मा भरती बर घलो आनलाइन अवेदन सुरु होवत हे।अदला बदली वाले सरकारी करमचारी मन अपन लइका ल नवा जगा के इस्कूल मा भरती कराय के बेवस्था मा लगे हे।अब सब लइका के दाई ददा पालक मन ला संसो हो गे हवय ! मोर लइका ला कहाँ पढ़ाहूं। संतराम के ददा हा सहर के अंगरेजी इस्कूल मा अपन नतनीन अवनी ला भरती कराय बर अबड़ सउँख करके गय रहिस।उहाँ के बड़े मास्टरिन हा…
Read Moreपंडवानी के सुर चिरैया-तीजन बाई
जब हमन नान्हे-नान्हे रहेन तब रेडियो म जइसे सुनन-“बोल व§न्दावन बिहारी लाल की जय” अतका सुनते साठ हमन जान डारन कि अब तीजन बाई के पंडवानी शुरू होवइया हे अउ रेडियो तिर बने चेत लगा के बइठ जात रहेन । हमन ला पंडवानी सुने म जतेक मजा आवय तेखर ले जादा मजा तीजन बाई के बोली-भाखा, अंदाज अउ पंडवानी गायन के शैली म आवय । पहिली दूरदर्शन में जब तीजन बाई के भाखा सुनन तब कोनो मेर रहितेन दउड़त आवन तीजन बाई ला देखे खातिर। ओखर रूप-रंग, पहिनावा-ओढ़ावा, गहना-गुरिया के…
Read Moreप्रकृति के विनास
हमर भारत भुइंया ह संसार के जम्मो देस म अपन संस्कारअउ संस्कृति के सेती अलगेच चिन्हारी रखथे।हमन परकिरती के पूजा करइय्या मनखे अन।परमात्मा के बनाय रुख राई,नदीया,पहाड,जीव-जंतु,चिरई चुरगुन ल घलो हमन पूजा करथन।फेर धीरे-धीरे हमन ए सबले दूरीहावत हन। जब ले मनखे ह मसीनी तरक्की के रसदा ल धरे हे ओला भोरहा होगे हे कि भुंईया म ओकर ले बडके कोनो नीहे।अऊ अपन इही भोरहा के सेती ओहा पिरथी के आने जीव जंतु मन के हक ल मारे बर घलो थोरको नी हिचकिचावत हे।लालच के भूत ओला अइसे पोटारे हे…
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