बिकास के नाव म बिनास ल नेवता

उत्तराखंड म पाछु सोला जून के आय बाढ़ ल तो दुनिया ह देखत हे। ए तबाही ल भूलाना सायदेच कखरो ले संभव हो सकथे। ए तबाही म जिहां हजारों मनखे मन ह अपन परिवार के कतकोन मनखे मन ल गंवा दीन, उहें लाखो लोगन मन घर ले बेघर होगे। बिकराल तबाही के रूप म आय ए बाढ़ ह कोनों ल अनाथ कर दीस त कखरो ले उंखर चिराग ल छीन लीस। ए तबाही ले बांचके अवइया लोगन मन ह भगवान ल दुआ देवत हे। चारधाम के ए यात्रा ल लोगन…

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साहित्य की वाचिक परंपरा कथा-कंथली: लोक जीवन का अक्षय ज्ञान कोश

समग्र साहित्यिक परंपराओं पर निगाह डालें तो वैदिक साहित्य भी श्रुति परंपरा का ही अंग रहा है। कालांतर में लिपि और लेखन सामग्रियों के आविष्कार के फलस्वरूप इसे लिपिबद्ध कर लिया गया क्योंकि यह शिष्ट समाज की भाषा में रची गई थी। श्रुति परंपरा के वे साहित्य, जो लोक-भाषा में रचे गये थे, लिपिबद्ध नहीं हो सके, परंतु लोक-स्वीकार्यता और अपनी सघन जीवन ऊर्जा के बलबूते यह आज भी वाचिक परंपरा के रूप में लोक मानस में गंगा की पवित्र धारा की तरह सतत प्रवाहित है। लोक मानस पर राज…

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बिसवास अउ आसथा के केन्द्र – दाई भवानी , विन्दवासिनी अउ बाबा बन्छोरदेव

इहां होथय सब के मनोकामना पूरन लोकमत हे कि जुन्ना करेला गांव के ” डोंगरी ” म दाई भवानी आदिकाल ले बिराजमान हवै। पर एक ठन कहिनी घलोक बताये जाथे – गाँव पटेल महेन्द्रपाल सिंग के परदादा उमेंदसिंग कंवर गांव के मालगुजार रिहीन। उन हर जेठ के महीना म गांव के कुछ लोगन संग परछी म बइठे रिहीन उही बेरा एक कन्या अइस। ओकर देह भर बड़े माता रिहीस। ओकर चेहरा म तेज अउ माथ म चमक रिहीस। ओहर पड़रा कपड़ा पहिरे रिहीस। ओहर अपन नाव भवानी बतइस अउ मालगुजार…

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जवारा अउ भोजली के महत्तम

एक समय पूरा छत्तीसगढ़ में सावन के महीना में सब कोनो भोजली बोवत रहिन। सबो गांव अउ शहर में घरो-घर भोजली दाई सावन मं लहरावत रहय। भोजली ल देवी के अवतार माने जात रहिस। आज के समय में भोजली अउ जवारा बोवाई नंदावत जावत हे। आज के पढ़े-लिखे मनखे मन भोजली के वैज्ञानिक महत्तम ल न ई समझ सकिन। मगर ये ही जवारा (भोजली) ह पूरा दुनिया में तहलका मचा देहे हावय। संसार में आनी-बानी के बीमारी के स्थायी इलाज इही भोजली (गेंहू के जवारा) में होवत हे। दु:ख के…

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मइया पांचो रंगा

कुंवार नवरात्रि में माता दुर्गा के मूर्ति इस्थापना करे जाथे। तब चैइत नवरात्रि म जंवारा बोथें। नव दिन म मया, उच्छाह, भक्तिभाव अउ व्रत, उपास के शक्ति देखे बर मिलथे। छत्तीसगढ़ शक्ति पीठ के गढ़ आय। इहां के भुइयां में अब्बड़ अकन जघा म देवी मां विराजमान होके जम्मो भगत ऊपर किरपा बरसावत हे। येमा रतनपुर महामाया, धमतरी बिलई माता, गंगरेल अंगार मोती, रायपुर कंकालीन (पुरानी बस्ती), महामाया, रावाभाठा बंजारी, डोंगरगढ़ बम्लेश्वरी, चंदरपुर चंद्रहासिनी, चाम्पा मड़वा रानी, सरगुजा कुदरगढ़िन दाई, झलमला गंगा मइया, बस्तर बसतरहीन दाई, दंतेवाड़ा दंतेश्वरी, कुसुमपानी जतमाई,…

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भक्ति अउ सावधानी

हमर समाज में भक्ति पूजा के बड़ महिमा हे। हमर भगवान के भक्ति अपन मनोकामना पूर्ण करे बर करथन। हनुमान जी के पूजा अपन शारीरिक शक्ति बढ़ाय बर करथन। अखाड़ा मन म हनुमान भगवान के फोटो अऊ मूर्ति रहिथे जेकर सामने जमके कसरत करथन। देवी मनके महिमा भी अपार हे। ज्ञान प्राप्ति बर सरस्वती मां के, धन प्राप्ति बर लक्ष्मी मां के अऊ शक्ति बर दुर्गा मां के पूजा करथे। पूजा पाठ करत करत भक्त के पूजा करथे में जउन देवता के पूजा करथें ओहर प्रवेश कर लेथे। ओकर व्यवहार…

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नेंगहा पंचन के नांव भुतावथे

संस्कार अउ रीति-रिवाज ह एक डहर अंचल ल अलग चिन्हारी देवाथे त दूसर कोति कतको झन के जीवका चलाय बर बुता काम घलोक देथे। सबो राज के अपन अलग-अलग रिवाज ह तइहा समे ले चले आवाथाबे। हमर छत्तीसगढ़ म सियान मन जोन चलागन चलाय हे ओमा सबो पंचन बर अलग-अलग बुता बनाए हे। या यहू कि सकथन के पंचन के वर्ण व्यवस्था बुता काम के हिसाब ले अलग-अलग बने हाबे। इही पाय के छत्तीसगढ़ म जाति भेद के दिंयार नइ सचरे पइस। कोनो भी सगा के होय ओमन अपन काम…

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सिवजी ल पाय के परब महासिवरात्रि

नवा बुता, उद्धाटन, नवा जीनिस के सुरुआत इही दिन ले करथे। भक्ति भाव के अइसन परब में पूजा म अवइया समागरी बेल पत्र, धतूरा, फुंडहर, कनेर, दूध, दही, केसरइया फूल मन के महत्व बाढ़ जाथे। संत पुरुष के गोठ हे के केसरइया फूल ल सिव जी म चढ़ाय ले सोना दान करे के बरोबर फल मिलथे। सिवजी में अभिषेक अउ धारा के तको भारी महत्व बताय गे हे। सिव माने शुभ अउ शंकर के मतलब कल्याण कइरया होथे। सिवजी के पूजन अराधना अकाल मृत्यु दोष ले छुटकारा देवाथे। पंचाक्षरी मंत्र…

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छत्तीसगढ़ी भाषा म बाल-साहित्य लेखन के संभावना अउ संदर्भ

आज जोन बाल-साहित्य लिखे जात हे ओला स्वस्थ चिंतन, रचनात्मक दृष्टिकोण अउर कल्पना के बिकास के तीन श्रेणियों म बांटे जा सकत हे। चाहे शिशु साहित्य हो, बाल साहित्य हो या किशोर साहत्य, ये तीनों म आयु के अनुसार मनोविज्ञान के होना जरूरी हे। बाल साहित्य सैध्दांतिक आधारभूमि ले हट के बाल मनोविज्ञान म आधारित हो जाए ले बच्चामन के बिकास बदलत परिवेस म सामंजस्य बइठाये म सहायक हो सकथे, जोन छत्तीसगढ़ी साहित्य अभी हमर आगू म हे ओकर लेखन-विचार प्रक्रिया म विषय वस्तु के रूप म सामाजिक विसंगति, जनचेतना,…

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पढ़ई-लिखई : सरला शर्मा

मुगल बादशाह हुमांयू ल हरा के शेरशाह सूरी जब दिल्ली के गद्दी म बइठिस त उपकारी भिश्ती ल एक दिन के राज मिलिस चतुरा भिश्ती राज भर म चमड़ा के सिक्का चलवा दिस एला कहिथें नवा प्रयोग। आजकल हमर देस म पढ़ई-लिखई के ऊपर अइसनेहे नवा-नवा प्रयोग होवत रहिथे। आजादी मिले साठ बरिस पूर गे फेर आजो सिक्छा के सरुप हर जनकल्याणकारी नई होये हे। सन् 1993 म 14 साल तक के लइका मन बर मुफ्त अउ अनिवार्य सिक्छा ल मौलिक अधिकार के दर्जा मिल गइस। उत्ता धुर्रा गांव-गांव म…

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