आज हिन्दी जनइया मन हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी जनइया मन ल छत्तीसगढ़ी बोले म तकलीफ होथे। ये मन अंगरेजी अउ हिन्दी भासा के परयोग करथे। अपन भासा ल पढ़े-लिखे म सरम आथे, काबर? अपन भासा के प्रति हीनता इंखर बीमारी आय। जेन ह सिर्फ परचार ले अउ ननपन ले अपन भासा के प्रति परेम ले दूर हो सकथे। मोला सुरता हे, मोर गांव तीर खम्हरिया गांव म रमायन प्रतियोगिता होत रीहिस हे। ये मा बड़का पहुना बना के अभी दू महीना भगवान घर गे होय लाल लंगोट पहनइया बालक भगवान ला…
Read MoreCategory: गोठ बात
यहू नारी ये
यहू नारी ये फेर येकर समाज म कोनो सुनाई होवे। कोन जांच कराही की येकर कोख कइसे हरियागे। नारी सही दिखत ये पगली संग कोन अपन तन के गरमी जुड़ाइस। हादसा होही या बरपेली। का समझौता घलो हो सकथे? मन म सवाल ऊपर सवाल उठत हे। फेर जवाब के अभाव म ओ सवाल के कोनो अस्तित्व नई दिखथे। हमर समाज आज नारी परानी ल देवी अउ जननी कइके उंखर मान बढ़ाथे। फेर का हमर मन मानथे ओला देवी? ये आत्मचिंतन के विसय आय। देव दानव ले भरे समाज म नारी…
Read Moreमन लागा मेरो यार फकीरी में – अनुपम सिंह के गोठ
कबीर के संवेदना ल फकीरी अउ सुफियाना सइली के अपन गीत मं प्रस्तुत करइया भारती बंधु मन कोनो परिचय के मोहताज नई हवय। भारती बंधु कला के क्षेत्र म छत्तीसगढ़ के पहिचान के रूप म जाने जाथे। डा. नामवर सिंह एक पइत भारती बंधु ल संगीत के नवा खोज कहे रहिन। भारती बंधु दल के स्वामी जीडीसी भारती के मानना हे के कबीर ल जिए बिना कबीर ल नई गाए जा सकय। स्वामीजी तिर अनुपम सिंह के गोठ: आपके जन्म कहां होइस, पढ़ाई-लिखाई कहां होय हवय? मोर दादाजी दच्छिन भारत…
Read Moreसंगी मन संग अपन गोठ-बात
संगी मन ला जोहार, जब हम अपन नेट संगी मन मेर सुनता-सलाह करके 2 अक्टूबर 2008 ले गुरतुर गोठ के बाना उंचाए रहेन त हमर सोंच रहिस हावय के येला पतरिका के रूप देबोन, चाहे त सरलग नहीं त एक-दू दिन के आड़ म, अलग-अलग विधा के माला गूंथत। …. फेर बेरा के कमी अउ रचना मन ल टाईप करे बर सहयोगी नई मिले के सेती हम येला छिर्रा संचालित करे लागेन। पाछू कई साल ले नेट म बिलमे रहे ले हमला ये बात के अभास हावय के संगी मन…
Read Moreगुरतुर गोठ परकासन के बारे म सूचना
संगी मन ला जोहार, जब हम अपन नेट संगी मन मेर सुनता-सलाह करके 2 अक्टूबर 2008 ले गुरतुर गोठ के बाना उंचाए रहेन त हमर सोंच रहिस हावय के येला पतरिका के रूप देबोन, चाहे त सरलग नहीं त एक-दू दिन के आड़ म, अलग-अलग विधा के माला गूंथत। …. फेर बेरा के कमी अउ रचना मन ल टाईप करे बर सहयोगी नई मिले के सेती हम येला छिर्रा संचालित करे लगेन। पाछू कई साल ले नेट म बिलमे रहे ले हमला ये बात के अभास हावय के संगी मन…
Read Moreछत्तीसगढ़ भासा के असली सवाल सोझ-सोझ बात
छत्तीसगढ़ म रा.ब.क्ष.ण. के उच्चारन नई होय। अउ उच्चारन नई होय तिही पाय के जुन्ना विद्वान मन ये वर्न मन ल वर्नमाला म सामिल नइ करिन अउ छत्तीसगढ़ी वर्नमाला म ये वर्न मन गैरहाजिर हे। तौ ये वर्न मन ल जब मन लगिस सामिल कर लौ अउ जब मन लगिस छटिया दौ, ये नीति ल ठीक नइ केहे जा सकय। हां, यदि सब विद्वान मन हिंदी के वर्नमाला बर बिना बदलाव के एकमत हो जाय तब बात दूसर रइही। तब अइसन म सब्द मन के दोहरा परयोग ले बांचे ल…
Read Moreलोक कथा म ‘दसमत कइना’ के किस्सा
छत्तीसगढ़ म लोक कथा के अनेक रूप देखे ल मिलथे। जेमा प्रेम प्रधान, विरह के वेदना म फिजे लोक कथा, आध्यात्मिक लोक कथा, वीर रस के लोक कथा एकरे संगे संग जनजातीय आधार म घलो कथा के प्रचलन हाबे। अंचल के प्रतिनिधित्व करत ये छत्तीसगढ़ी लोककथा मन आज भी सियान बबा के मुंह ले सुने ल मिलथे। कतकोन लोक कथा ह तो गाथा गायन के रूप म देस विदेस म अपन सोर बगरावथे। लोक कथा ‘दसमत कइना’ घलो अइसने प्रचलित लोक कथा आय जेला गाथा के रूप में घलो बेरा-बेरा…
Read Moreनाटक अऊ डॉ. खूबचंद बघेल
आज जरूरत हे अइसना साहित्यकार के जेन ह छत्तीसगढ़ के धार्मिक राजनैतिक अऊ सामाजिक परिवेस के दरसन अपन लेखन के माध्यम ले करा सकय। बिना ये कहे के मैं ह पहिली नाटककार आवं के कवि आंव। आज के कुछ लेखक मन ये सोच के लिखत हावंय के मैं ह कोन मेर फिट होहूं। जल्द बाजी म लिखे साहित्य आज के छत्तीसगढ़ के परिवेस के दरसन नई करावय। अइसना सबो लेखक नई करत हावंय फेर कुछ मन के इही स्थिति हावय। डॉ. खूबचंद बघेल ये छत्तीसगढ़ के धरती के पहिली नाटककार…
Read Moreसुधा वर्मा के गोठ बात : नवरात म सक्ति के संचार
नवरात्र के शुरूवात घट इसथापना ले होथे घट म पानी भर के आमा पत्ता ले सजा के ऊपर म अनाज रखे जाथे। प्रकृति ले जुरे तिहार प्रकृति के पूजा करथे। पानी घट म रखना ‘जल ह जीवन आय’ के बोध कराथे। जेन कलस के हम पूजा करथन तेन म जल हावय। आज ये जल के काय हालत होगे हावय सोचे के विसय आय। आमापान, केलापान प्रकृति के हरियाली जेन हमन ल जीवन देथे तेखर पूजा करना। पूजा के संग-संग पूजा स्थान म जगह देना। जीवनदायनी ऑक्सीजन हमला इही पत्तामन ले…
Read Moreपरंपरा के रक्छा करत हावय ‘मड़ई’ : डॉ.कालीचरण यादव संग गोठ-बात
परंपरागत रूप म बरसों ले चलत रावत बाजार ल व्यवस्थित करे म डॉ. कालीचरण यादव के योगदान ल सब्बो मानथे। सहर के रावत बाजार पूरा देस म अपन अलग पहिचान रखथे। ‘मड़ई’ आज रावत बाजार ले ऊपर सामाजिक गर्व के विसय हो गे हवै। डा. यादव तिर अनुपम सिंह के गोठ. भास्कर : मड़ई के बिचार कइसे आइस? डॉ. कालीचरण यादव : रावत नृत्य के बहुत जुन्ना इतिहास हवै। हमर सहर म रावत नाच के समय बाजार बिहाना (बाजार परिक्रमा) के अलग परंपरा रहिस। बाजार के दिन रावत नृत्य दल…
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