मानसून मा : कुकुभ छंद

फिर माटी के सोंधी खुशबू,फिर झिंगुरा के मिठ बानी। मानसून मा रद रद रद रद,बादर बरसाही पानी। छेना लकड़ी चाउँर आटा,चउमासा बर जतनाही। छाता खुमरी टायच पनही,रैन कोट सुरता आही। नवा आसरा धरे किसानन,जाग बिहनहा हरषाहीं। बीज-भात ला जाँच परख के,नाँगर बइला सम्हराहीं। गोठ किसानी के चलही जी,टपराही परवा छानी। मानसून मा रद रद रद रद,बादर बरसाही पानी। मेछर्रा बत्तर कीरा मन,भुलका फूटे घर आहीं। बोटर्रा पिंयर भिंदोल मन,पँड़वा जइसे नरियाहीं। अहरू बिछरू के डर रहही,घर अँगना अउ बारी मा। बूढ़ी दाई टीप खेल ही,लइका के रखवारी मा। मच्छर बढ़ही…

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योग करव जी (कुकुभ छंद)

मनखे ला सुख योग ह देथे,पहिली सुख जेन कहाथे । योग करे तन बनय निरोगी,धरे रोग हा हट जाथे।।1 सुत उठ के जी रोज बिहनियाँ,पेट रहय गा जब खाली । दंड पेल अउ दँउड़ लगाके, हाँस हाँस ठोंकव ताली ।।2 रोज करव जी योगासन ला,चित्त शांत मन थिर होही । हिरदे हा पावन हो जाही,तन सुग्घर मंदिर होही।।3 नारी नर सब लइका छउवा, बन जावव योगिन योगी । धन माया के सुख हा मिलही,नइ रइही तन मन रोगी।।4 जात पाँत के बात कहाँ हे, काबर होबो झगरा जी। इरखा के…

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