मोबाईल मास्टरिन

मास्‍टर क‍हे के मतलब, मास्‍टर माइंड नो हे, फेर आजकल तो कलजुगी इस्‍टाईल के गुरू हर, अपन ला चाल्‍स सोभराज ले कोन्‍हों कम नई मानय । फोकट चंद अउ घिस ले चंदन, ऐमन ला पोगा पंडित अउ भकला महराज के उपाधि ले घलो नवाज अउ जाने जाथय । फेसन के चिखला सहर, महानगर भर मा हावय, अइसन न हे, आज के माहोल मा तो गली-कूचा अउ खोर-खोर मा येहा बगरे हावय । तेमा कोन कहाय, ओ चिपरू, मंदू अउ लडबडहा मनखे मन करा घला खिसा मा मोबाइल ह चटके रहिथय…

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बियंग : पारसद ला फदल्लाराम के फोन

जय हो छत्तीसगढ़ महतारी। हम गरीब मन ऊपर तोर अइसने छइंहा रहय दाई। हमर छत्तीसगढ़ के गरीब मन अइसे-वइसे नो हंय पारसद जी। वो मन उसना चाउंर ल उहुंचे कंट्रोल वाले ल बेच देथे। कन्ट्रोल मालिक के घलो पौ बारा। हां हलो… कोन… पारसद जी? हां, मैं फदल्ला राम बोलत हों। अरे नहीं… जदल्ला राम नहीं, फदल्लाराम बोलत हों-फदल्लाराम। का करवं पारसद जी। दाई-ददा मन तो बने ‘गनेस’ नाम राखे रहिन हें। फेर मैं थोरिक मोटा का गेंव, मोर नाम फदल्लाराम धरागे। अब मोर जुन्ना नाम हर तोपागे। अब ‘गनेस’…

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लड़की खोजत भंदई टूट जाय

गांव मन म पहिली मोटर गाड़ी, फटफटी नई रहिस। साइकिल घलो इक्का-दुक्का घर राहय। बिहाव के दिन आय त ये गांव ले वो गांव पता करत रेंगते घुमंय। जउन जिहां जाय बर काहे जिहें चल देंवय। येती-ओती पता करत अतेक घुमंय त नवा पहिने भंदई के धुर्रा बिगड़ जाय। भंदई टूट जय, गथना छर्री-दर्री हो जय। पहिली अउ अब, सबो जात, समाज म लड़का के बिहाव करे बर लड़की खोजइ म कइ किसम के बेरा आय गे हे। 50-55 साल पहिली घलो समाज म बिहाव लइक लड़की कमती राहे। लड़का…

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बम-निकलगे दम

एक झन कहिस- का बताबे सिरतोन म बहुत बुरा हाल हे। जुन्ना रेलवे पुलिया अउ करमचारी मन के लापरवाही ले वइसने जब नहीं तब जिहां नहीं तिहां बम फोरत हे, गोली चलावत हे। इंकर मारे तो कहूं आना-जाना घलो मुसकुल होगे हे। हिंसा ले सुख, खुशहाली अउ सांति लाए के उदिम अउ हिंसा ले ये नई लाय जा सकय। येला लाए बर दया-मया, भाईचारा अउ अहिंसा के रद्दा ल अपनाए ल परही। बम! जइसने बम के गोठ निकलिस रेल ह थरथरागे अउ वोकर पोटा कांपे ल धर लिस। वोला बम…

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अब के गुरुजी

का बतावंव बेटा, मोरो टुरा हा तोरेच कक्छा या पढ़थे रे। फेर ओ हा पढ़ई-लिखई मा कक्छा म दूसरइया नंबर मा हे अउ तयं पहिली नंबर मा। त मोर कोनहो जेवनी हाथ के अंगूठा ला कटवा देतेंव, ते मोर टुरा हा कक्छा मा पहिली नंबर मा आ जातिस रे।गुरु पूर्णिमा के दिन रिहिस। गुरु हा अपन जम्मो शिष्य मन ला दिक्छा देवत रिहिस अउ जम्मो सिस्य मन हा गुरुजी ला मुंह मांगा दक्छिना देवत रहय। अइसने मा एक झन शिस्य आघू मा आइस अऊ कहिस- गुरूजी मय तोर शिस्य अंव…

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नवा बैला के चिक्कन सिंग चल रे बैला टिंगे-टिंग : किरकेट के कहिनी

पूरा संसार म भारतीय क्रिकेट के नाम इहां तक होगे के आस्ट्रेलिया टीम के कप्तान रिकी पोंटिंग के हे लगिस कि भारत के बिना क्रिकेट में मजा नइए। सन् 2011 में फेर विश्वकप बर क्रिकेट मैच होही अउ भारत उपमहाद्वीप के चार देस लंका पाकिस्तान बंगलादेश अउ भारत में से एक ला मेजबानी करे के हे। ये संसार में मनोरंजन बर बहुत किसम के खेल होथे। अपन-अपन समय के मुताबिक सब प्रसिध्द रहिन। खेल मन ला दो भाग में बांट देथन पहिली घर भीतर कमती जगह में खेले जाने वाला…

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सबके अपन रंग

पेड़ पौधा मन अपन रंग बदलथे लोग अपन सुवारथ बर खाये पीये के जीनिस ला रंगा के बेचत है। जीव जंतु मन अपन रंग बदलथे। टेटका मेचका मन अपन दुसमन ला चकमा देबर रंग बदलके वाला होथे। बिगर बुध्दिवाला मन अपन रंग बदल सकत हे, त बुध्दि वाला मनखे अपन रंग ला बदले बर काबर छोड़ही। मनखे ला जेती देखले वोती रंगे-रंग के गोठ ला गोठियात मिलहीं। नीरस कोनों अपन जिनगी ला देखना नी चाहे। माई लोगिन के काय पूछना। उंकर तो रंगे अलग रिथे। बेरा संग सबो मन अपन…

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सुंदरी बन गे भंइसी मेंछरावत हे, संसो म ठेठवार के परान सुखावत हे

हमर राम जी ठेठवार बइहाय हवे, बिहनिया ले तेंदुंसार के लौड़ी धर के किंजरत हे। मैं हां टेसन कोती जात रहेवं त भेंट पाएंव। सोचेंव के बिहनियाच ले मिल गे साले हां पेरे बर। महुं कलेचुप रेंगत रहेंव, झन देखे कहिके, फ़ेर देख डारिस बु्जा हां। “महाराज! पाय लागी, रुक देंवता रुक, गोड़ ला धरन दे।” अइसने कहिके गोड़ ला धर लिस लुवाठ हा। “खुस राह, जय हो, राम जी, कैसे बिहनियाच-बिहनिया ले भट्ठी डहार आगे” “का बताओं महाराज! हमर घर मेरन एक झिन मास्टर रेहे बर आए हवे, बने…

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मंदू

जज सहेब हर बंधेज करे हे, हमला छै महीना बर कट्टो जुवाचित्ती, दारू-फारू, चोरी-चपाटी नई करना हे कहिके। छै महीना कटिस ताहन उम्मर भर लूटमार, चोरी अउ छोरी सप्लई बर तो कानूनी पट्टा मिल जाही। जेलर सहेब के आघू म रजऊ ठेठवार अउ सुधु आके ठाड़ होगे। त लेजर हा तरी ले ऊपर निटोर के देखथे- ‘दू महीना आघू छोड़त हंव। वो चौरे उकील अउ परु ठेकादार तुंहर जबानत लीन हावे। चेत राहय दू महीना के भीतर तू मन ला ये साहर छोड़ देना हे।’ सिगरेट ला दू दम मारके…

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आंजत-आंजत कानी होगे!

‘जिहां तक नाक के सोझ म देखे के बात हे त इहां के मनखे तो वइसे घलोक नाक के सोझ म नई देख सकय। काबर ते इहां जम्मो चिक्कन-चांदन सड़क मन म कोन मेर जझरंगा भरका होही, गङ्ढा होही तेकर तो ठिकानच नइ राहय त भला बपरा ह अंधमुंदा या सोझ देखत कइसे रेंग सकथे? फेर ये बात बड़ा तााुब लागथे के इहां के सड़क मन नवा बने के चारेच दिन बाद एकेदरी कइसे खदखदा जाथे ते।’ पहिली ए बात समझ म नई आ पावत रहिसे के कोनों सुग्घर नारी…

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