[responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये रचना ला सुनव”] सरग म बरम्हा जी के पांच बछर के कारकाल पुरा होगे । नावा बरम्हा चुने बर मनथन चलत रहय । सत्ताधारी इंद्र अपन पारटी अऊ सहयोगी मन के बीच घोसना कर दीस के , ये दारी दलित ला बरम्हा बनाना हे । जबले बरम्हा चुनई के घोसना होये रहय , हमर गांव के मनखेमन मरे बर मरत रहय । जलदी मरबो सोंचके , खेती किसानी के समे , काम बूता खाये पिये ला घला तियाग दीन अऊ दसना म परे परे जमदूत के…
Read MoreCategory: व्यंग्य
गदहा मन के मांग
[responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये खबर ला सुनव”] एक दिन गदहा मन के गांव म मंझनिहां बेरा हांका परिस- गुडी म बलाव हे हो- ढेंचू , जल्दी जल्दी सकलावत जाव हो ढेचू। सुनके गांव के जम्मो गदहा गुडी म सकलागे, कोतवाल गदहा ल पूछेगिस- कोन ह मईझनी-मंझनिहा बईठका बलाय हे ? तब एकझन सियान गदहा ह बोलिस-में ह बलायहंव ग बईठका ल, बात ये हे के आज बिहनिया बेरा जब में ह ईस्कूल कोती चरेबर गेरहेंव, त ईस्कुल के खिडखी ह खुल्ला रहिस हे,ओती ले अवाज आवत रहिसहे जेमा- बडे गुरूजी…
Read Moreअपन अपन रुख
[responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये खबर ला सुनव”] रुख रई जंगल के , बिनास देख , भगवान चिनतीत रिहीस । ओहा मनखे मन के मीटिंग बलाके , रुख रई लगाये के सलाह दीस । कुछ बछर पाछू , भुंइया जस के तस । फोकट म कोन लगाहीं । भगवान मनखे मन ल , लालच देवत किहीस के रुख रई के जंगल लगाये बर , मनखे ल , मुफत म भुंइया अऊ नान नान पऊधा बितरन करहूं , संगे संग घोसना करीन के , जे मनखे मोर दे भुंईया म बहुत अकन…
Read Moreदसवा गिरहा दमांद
जोतिस के जानकार मन ल नौ ले उपरहा गिनतीच नइ आवय। तेकर सेती जोतिस म नौ गिरहा माने गे हे। फेर लोकाचार म दस गिरहा देखे बर मिलथे। ओ दसवा गिरहा के नाँव हे दमांद। अलग -अलग गिरहा के अलग- अलग प्रभाव होथे। सबले जादा खतरा सनि ल माने गे हे। जेन हँं मनखे ल जादा ढेलवा -रहचुली झुलाथे। कोनो जब जादा परेसान हो जथे त कहिथे एकर उपर सनि चलत हे गा ! तेकर सेती पेरावथे बिचारा हँ। फेर ओकर ले जादा पेरूक तो दमांदमन होथे। एकर मतलब मैं…
Read Moreजुग जुग पियव
भरे गरमी म , मंझनी मंझना के बेरा । जंगल म किंजरत किंजरत पियास के मारे मरत रहय भोलेनाथ । बियाबान जंगल म , मरे रोवइया नी दिखत रहय । तभे मनखे मन के हाँसे के अवाज सुनई दीस । अवाज के दिसा म पल्ला दऊड़िस । जवान जवान छोकरा छोकरी मन , रन्गरेली मनावत खावत पियत मसतियावत रहय । पहिली सोंचीस के ओकर मन के तीर म कइसे जांवव । पारवती मना करे रिहीस के , मनखे के रूप धर के झिन जा पिरथी म । जतका बेर तक…
Read Moreसवच्छ भारत अभियान
गांव ला सवच्छ बनाये के सनकलप ले चुनई जीत गे रहय । फेर गांव ला सवच्छ कइसे बनाना हे तेकर , जादा जनाकारी नी रहय बपरी ल । जे सवच्छता के बात सोंच के , चुनई जीते रहय तेमा , अऊ सासन के चलत सवच्छता अभियान म बड़ फरक दिखय । वहू संघरगे सासन के अभियान म । अपन गांव ल सवच्छ बनाये बर , घरो घर , सरकारी कोलाबारी बना डरीस । एके रसदा म , केऊ खेप , नाली , सड़क अऊ कचरा फेंके बर टांकी …। गांव…
Read Moreबियंग : बरतिया बाबू के ढमढम
बिहाव के गोठ छोकरी खोजे ले चालू होथे अऊ ओखरो ले पहिली ले दुल्ही-दुल्हा दुनो घर वाला मन हा गहना-गुट्ठा बिसा डारे रथे। फेर अऊ नत्तादार मन ल का टिकबो, मुहु देखउनी का देबो तेखर संसो रथे। ताहन सगा पार मन ल पुछे के बुता फेर घर के लिपई पोतई, बियारा-बखरी ल छोलबे चतवारबे, पंडित बुलाबे, लगिन धराबे, कारड छपाबे त सस्ती-मंहगी अऊ आने-आने सगा बर आने-आने कारड सोंच के छपाय बर लागथे, सगा नेवते बर मुखियाच हा जाही नीते सगा रीसा जथे, अब मड़वा छाबे, समियाना परदा कुरसी दरी…
Read Moreअब मंतरी मन बर रेड सिग्नल … लाल बत्ती खतरा हे !
रेड सिग्नल वइसे खतरा के निसान माने जाथे। फेर इही खतरा के निसान कोन जनि कब ले नेता-मंतरी ले के अधिकारी मन बर रुतबा के चिन्हारी बनगे मैं तो नइ जानव आप मन जानव होहु त समझ लेहु। वइसे सच तो इही हरय के लाल सिग्नल हा खतरा के ही निसानी हरय। जनता मन ला तो नेता-मंतरी, अधिकारी मन ले खतरा रहिबे करथे। तभे तो लाल बत्ती वाला गाड़ी ले जब कान फोडू अवाज आथे सब सचेत हो जाथे। अउ वो गाड़ी मा बइठइया मन जइसे जनता ला डराय, झुझकाय…
Read Moreव्यंग्य : नावा खोज
डोकरी दई के छोटे बेटा ला परदेस मे रहत बड़ दिन होगे। चिट्ठी पतरी कमतियागे। बेटा ल बलाये खातिर, खाये, पहिरे अऊ रेहे के निये कही के सोरियावय, डोकरी दई। को जनी काये मजबूरी म फंसे रहय, बेटा नी आवय। तभे मोबाइल जुग आगे, बेटा ओकर बर, मोबाइल पठो दीस। दई पूछीस ये काबर? बेटा बतइस - तोर खाये पिये अऊ रेहे के, सबो समसिया येकरे आगू म गोहनाये कर, समाधान हो जही। दई समझीस के अतेक काम के आय, त येला जतन के राखना चाही। फुला म मढ़हाहूं त,…
Read Moreव्यंग्य : गवंई गांव के रद्दा म बस के सफर
बस के सफर में का मजा आथे तेला तो गवंई गांव के रद्दा में जेहा बस के सफर करे होही तिही बता सकत हे। सहर वाला बस मन हा तो बस सवारी ढोवत रइथे, बस के असली मजा तो गांव के मनखेच मन हा पाथे। मेहा कई घांव मजा ले डरे हंव। कहां, काबर, काकर करा गे रेहेंव ये सब ल भुला जहूं फेर बस के मजा ल मेहा नई भुला सकंव। सबले पहिली तो मोटर स्टेन म जतका बस खड़े रइथे तेमा के सबले खटारा बस ल देख के…
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