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गीत

छत्तीसगढ़ के हम बनिहार: सालिकराम अग्रवाल ‘शलभ’

मालिक ठाकुर मन के अब तक, बहुत सहेन हम अत्याचार
आज गाज बन जावो जम्मो छत्तीसगढ़ के हम बनिहार।

बरसत पानी मां हम जवान,खेत चलावन नांगर
घर-घुसरा ये मन निसदित के, हमन पेरन जांगर
हमर पांव उसना भोमरा मां, बन जाथे जस बबरा
तभो ले गुर्रावे बघवा कस, सांप हवैं चितकबरा।
इनकर कोठी भरन धान से, दाना दाना बर हम लाचार (आज)

इनकर बढ़िया चिकन चांदन, घर ल हमीं ऊंचावन
झारन पोछन लीपन बहारन, दर्पन जस चमकावन
इनकार घर पहार जैसे है, हमर हवै छितका कुरिया
ये मन सोचे सेज सुपेती, हमर हवैं जठना भुंइया।
छान्‍्हीं चूहे ओरवाती कस इनकार पक्का ठठर दुआर (आज)

येकर मिल मा काम करन हम, कभू-कभू जिव जावै
सहन आँच ठाढ़े-ठाढ़े मुंडपांव पसीना चुचवावै
हमर देह वस्सावय इनला, इनकर तन जस मोंगरा
येमन पहिरै रींगी-चींगी, हमर हवै चीथरा गोंदरा।
इनकर मन के दांव पेंच के ईश्वर घलो न पावै पार (आज)

येमन बिस्कुट ब्रेड उड़ावै, हमर हवै जुख्खा रोटी
येमन गिधवा हमर देह के, चीथ-चीथ खाइन बोटी
येकर कुकुर चढ़े मोटर मां, पीयै दूध किलो किलो
हमर कमैलिन गाभिन भूखन, चल चल के आवबै मीलो
गउहां डोमी बनना पड़ही, तब होही हमार उद्धार (आज)

सालिकराम अग्रवाल ‘शलभ’