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नान्हे कहिनी- बेटी अउ बहू

एक झन दूधवाला ह अपन गिराहिक कना दूध लेके जाथे त एकझन माइलोगिन ह दूध ल झोंकाथे।
पहिली दिन-
‘उपराहा दूध कोन मंगाय हे गा! काबर अतेक दूध देवत हस?’ वो माइलोगिन ह पूछिस।
“भऊजी ह देबर केहे हे दाई!” दूध वाला ह बताइस।
‘का करही वोहा अतेक दूध ल!!’
“दाई! भउजी ह बतावत रिहिसे ओला डॉक्टर ह दूध संग म दवाई पीये बर केहे हे। ते पाय के आधा किलो उपराहा दूध मंगाय हे।”
‘अउ ओकर पैसा ल का ओकर बाप ह दिही! झन दे उपराहा दूध। हमर घर पैसा के रूख नीहे हलाय बर!’
दूधवाला ह चल देथे।
दूसर दिन-
‘काली ले एक किलो दूध उपराहा लानबे गा!’
“काबर दाई! भऊजी बर हरे का?”
‘नी होय। ओहा काली बने नी लागत हे किके अपन मइके चल दिस।’
“त अतेक उपराहा दूध ल का करहू दाई?”
‘आज मोर बेटी ह आय हे। उंकर ससरार वाला मन ह मोर बेटी के बरोबर जतन नी करे। आवत खनी ओहा डाक्टर कना गे रिहिसे त ओला डॉक्टर ह ताकत बर दूध पीये बर केहे हे। पैसा के का हे! आत-जात रथे। फेर बिगडे सरीर ह थोरे आही। भरोसी ले उपराहा दूध लानबे।”
हव किके मुडी ल हलावत दूध वाला लहुटगे। ए सोचत कि बहू ह काबर काकरो बेटी नी बने? कब तक बहू अउ बेटी बर अलग-अलग नापा रही????

रीझे यादव
टेंगनाबासा(छुरा)
8889135003

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