- शीर्षक गीत – रविशंकर शुक्ल
- घानी मुनी घोर दे – रविशंकर शुक्ल
- छन्नर छन्नर पइरी बाजे – कोदूराम ‘दलित’
- मइके के साध – रामरतन सारथी
- झिलमिल दिया बुता देबे – श्री प्यारे लाल गुप्त
- घमनी हाट – द्वारिका प्रसाद तिवारी ‘विप्र’
- गाँव अभी दुरिहा हे – नारायणलाल परमार
- बसदेव गीत – भगवती सेन
- चल सहर जातेंन – हेमनाथ यदु
- तोर धरती तोर माटी – पवन दीवान
- माटी होही तोर चोला – चतुर्भुज देवांगन ‘देव’
- चलो जाबो रे भाई – रामकैलाश तिवारी
- मोला जान दे संगवारी – रामेश्वर वैष्णव
- चलो बहिनी जाबो – मुकुंद कौशल
1. शीर्षक गोत
देखो फुलगे, चंदइनी गोंदा फूलगे, चंदइनी गोंदा फूलगे।
एखर रंग रूप ह जिव मा, मिसरी साही घुरगे॥
अइसन फूलिस गोंदा चंदइनी,
कुछु कहे नहि जाये,
बघेरा मा फूलिस-
भारत भर मा महमहाये,
आंखी के आघूच आघूच मा, देखो कइसे झुलगे॥
सुन संगवारी सबले आघू
एक फूल टोरत हँव-
सरसुती माई के मंय हां,
गोड़ मां चघाथंव,
जेखर दया ले मोर कंठ हा, सुवा साहीं खुलगे॥
बाँचे फूल मंय तुमला देथंव
बबा, ददा अउ भाई-
नानुक बाबू नोनी दुलउरिन
बहिनी अउ मोर दाई
तुंहर दरस ला पाके, हमर सबके भाग हा खुलगे॥
– रविशंकर शुक्ल
2. घानी मुनों घोर दे
घानी मुनी घोर दे
पानी दमोर दे
हमर भारत देस ल भइया, दही दूध मां बोर दे।
गली गांव घाटी घाटी
महर महर महके माटी
चल रे संगी खेत डहर, नागर बइला जोर दे।
दुगुना तिगुना उपजय धान
बाढ़े खेत अउर खलिहान
देस मां फइले भूख मरी ला, संगी तंय झकझोर दे।
देस मां एको झन संगी
भूखन मरे नहीं पावे
आने देस मां कोनो झन
मांगे खतिर झन जावे
बाढ़े देस के करजा ला, जल्दी जल्दी टोर दे।
– रविशंकर शुक्ल
3. छन्नर-छन्नर पईरी बाजय
छन्नर-छन्नर पैरी बाजय, खन्नर-खन्नर चूरी,
हांसत,कुलकत,मटकत रेंगय, बेलबेलहीन टूरी।
काट-काट के धान मड़ावयं, ओरी-ओरी करपा,
देखब-माँ बड़ निक लागय, सुन्दर चरपा के चरपा।
लकर-धकर बपुरी लैकोरी, समधिन हर घर जावय,
चुकुर-चुकुर नान्हें-बाबू-ला, दुदू पिया के आवय।
दीदी लूवय धान खबा खब, भांटो बांधय भारा,
अउहा, झउहा बोहि-बोहि के, लेजय भौजी ब्यारा।
– कोदूराम “दलित”
4. मोला मइके देखे के साध
मोला मइके देखे के साध लागय-
लुगरा लेदे
धनी मोर बर लुगरा लेदे हो।
आजे कॉली म आवत होही, दाई ददा भेजे भइया हा।
सुघ्घर बन के जावंव संग संग, आजे करम मोर जागे॥
रंगे बिरंगा आँछी देख के, मोटहा अउर खटउहां।
गोड़े मुढ़ी ले रूंध वाला, देखे ते ह सहराये॥
लइका लोगन बर धरबो खजानी, अइरसा अउ धरबो लाड़ू।
पावंव पोटारंव चूमा लेके सब के, देहूँ ओला जइसे मांगे।।
– रामरतन सारथी
5. झिलमिल दिया बुता देबे
गोई पूछहीं जब उन हाल मोर, तब घीरे से मुस्का देबे।
अंउ आंखिच आंखी मां उनला, तंय मरना मोर जता देबे॥
अंतको मां मोई ना समझे, अउ खोद खोद के बात पूछे।
तब अंखियन मां मोती भरके, तंय उन्कर भेंट चढ़ा देबे॥
अउ अतको मां गर न समझे, प्रीत के रीतला न बूझे।
तब फुलकंसिया थारी मां धरके, मुरझाये फूल देखा देबे॥
गोई कतको कलकुत उन करहीं, बियाकुल हो हो पांव परहीं।
तब कांपत कांपत हाथ ले तंय हां, झिलमिल दिया बुता देबे॥
– प्यारेलाल गुप्त
6. घमनी हाट
तोला- देखे रेहेंव गा, तोला देखे रेहेंव रे
घमनी के हाट मां बोइर तरी।
लकर धंकर आये जोहीं आंखी ला मंटकाये गा
कइसे जादू करे मोला, सुक्खा मां रिझाये।
चोंगी पीये बइठे बइठे माड़ी ला लमाये गा
घेरी बेरी देखे मोला हांसी मां लोभागे।
बोइर तरी बइठे बहहा चना मुर्रा खाये गा
सुटुर सुटुर रेंगे कइसे, बोले न बताये।
– द्वारिका प्रसाद तिवारी ‘विप्र’
7. गांव अभी दुरिहा हे
जरय चाहे भोंभरा, झन बिलमव छांव मां
जाना हे हमला ते गांव अभी दुरिहा हे।
कतको तुम रेंगव गा
रद्दा ह नई सिराय
कतको आवयं पड़ाव
पांव न जस नइ थिराय
तुम जिंदगी म, मेहतत सन मीत बदव
सुपना देखव गा छांव अभी दुरिहा हे।
धरती हा माता ए
धरती ला सिंगारो
नइये चिटको मुसकिल
हिम्मत ला झन हारो
उंच नीच झन करिहव धरती के बेटा तुम
मइनखे ले मइनखे के नांव अभी दुरिहा हे।
– नारायण लाल परमार
8. बसदेव गीत
सुन संगवारी मोर मितान, देस के धारन तंही परान
हावय करनी तोर महान, पेट पोसइया तंही किसान
कालू बेंदरुवा खाय बीरो पान, पुछी उखनगे जरगे कान…
बुढ़वा बइला ल दे दे दान, जै गंगा …।
अपन देस के अजब सुराज
भूखन लांघन कतको आज
मुसुवा खातिर भरे अनाज
कटंगे नाक बेचागे लाज
नीत नियाव मां गिरगे गाज
बइठांगुर बर खीर सोहारी, खरतरिहा नइ पावय मान।
महंगाई बाढ़े हर साल
बैपारी होवत हैं लॉल
अफसर सेठ उडावंय माल
नीछत हें गरीब के खाल
रोज बने जनता कंगाल
का गोंठियावंव सब जानत हव, बहरी बनगें आज मितान।
उठ संगवारी अब तो जाग
हांका पार लगा एक राग
तपनी रोज तपइया मन बर
तंयहर बन जा संउहत नाग
गउकी जोखा तमे माड़ही, घर घर होही नवा बिहान।
– भगवती सेन
9. सहर जातेन
चल सहर जातेन रे भाई
गांव ला छोड़ के सहर जातेन।
ढकर ढकर पसिया पीके, कमई करे जाथन
बइला भंइसा कस कमाथन, गांव मां दुख पाथन
दुख ला हरे जातेन रे भाई।
माड़ी भरके चिखला हावय रद्दा किचकिच लगथे
माड़ी ऊपर घोती उघारत अड़बड़ लाज लगथे
चिकन चिक्कन रेंग तेन रे भाई।
टिमटिम टिमटिम दिया करथे, धुंगिया आँखी भरथे
डर लागथे कोलिहा के बोली, हुवां हुवां जब करथे
बिजली बत्ती बारतेंन रे भाई।
– हेमनाथ यदु
10. तोर धरती तोर माटी
तोर धरती तोर माटी रे भइय्या तोर माटी॥
लड़इ झगरा के काहे काम
जे झन बेटा ते ठन काम
हिन्दू भाई ला करंव जय राम
मुस्लिम भाई ला करंव सलाम
धरती बर तो सबो बरोबर, का हांथी का चांटी रे भइय्या॥
कल फूले तरोई के सुंदर फुंदरा
जिनगी बचाये रे टुरहा कुंदरा
हमन अपन घर मां जी संगी
देखव तो कइसे होगेन बसुंदरा
बड़े बिहिनिया ले बेनी गंथा के, धरती हा पारे हे पाटी रे भइय्या॥
खावव जी संगवारी धान के किरिया
चंदन कस चांउर पिसान के किरिया
बने भिखारिन गली मां भटकय
हमर महतारी किसान के तिरिया
चुकुल बनाके छाती मां हमर, बइरी मन खेल थे बांठी रे भइय्या॥
– पवन दीवान
11. माटी होही तोर चोला
माटी होही तोर चोला रे संगी,
माटी होही तोर चोला
माटी ले उपजे माटी मां बाढ़े,
माटी में मिलना हे तोला॥
माटी के घर मां माटी के भुइंय्यां
लाख जतन करे माटी के दुनियां
बड़े बड़े मन के नइ बांचिस
कोन कहे अब तोला के संगी॥
चारेच दिन के सुघ्घर मेला
आखिर में सब माटी के ढेला
मत बन कखरो दुसमन बइरी
जाना हे एक दिन तोला रे संगी॥
सुंदर काया ले मोह हटा ले
मन मंदिर मे जोत जगाले
ये तन संग न जाही रे मूरख
जीयत भर के चोला रे संगी॥
– चतुर्भुज देवांगन ‘देव’
12. चलो जाबो रे भाई
सांवा, बदौरी सोमना मागिस
पकड़ निकारो करगा
बइरी संग झन मया बढ़ावव
जिव ले लेही हमर गा।
चलो जाबो रे भाई, जुर मिल के सबो झन करबो निंदाई।
खातू डारेन माटी डारेन
जोते हन पर परिया
हीरा मोती दाना बोयेन
कइसे जामिस करगा कइसे जाम गे कंदाई, चलो जाबो रे भाई।
हांक दून के बोनी भइया
गुदगुद ले हे बियासी
कोपर अउर दंतारी मारेन
माल मरिसे थकासी
हमर घर बुड़थे भाई, चलो जाबो रे भाई।
लाल पेड़ौरा धान दुब्बर
धंवरा पेड़ हे करगा
चेत करके धर निकारो
झन रहे कुछ कसर गा
भले जिव तुंहर छुट जाही, चलो जाबो रे भाई।
– रामकैलाश तिवारी
13. मोला जान दे संगवारी
अब मोला जान दे संगवारी, आधा रात पहागे मोला घर मां देहीं गारी।
गांव भर के सब मइन्से सुत गिन
देख चिराई चिरगुन सुतगिन
पुरवाई ओंधावत हावय–
ठाढ़े रूख राई मन सुतगिन;
नदिया सुतगे, नरवा सुतगे
छानी सुतगे, परवा सुतगे
दिन दिन भरके थके मांदे
कोठा में सब गरुवा सुतगे
सोवथे रात ये उजियारी, अब मोला जान दे संगवारी।
काल फेरेच मंय ये मेर आहूं
हांस हांस तोर सो गोठियाहूं
तंय मोर जिनगानी के संगी
तोला छोड़ कहां मंय जाहूँ;
तोर कहे ले दउड़त आथंव
घर मां अब्बड़ गारी खाथंव
गोड़ पिराथें तभों तोर बर
घेरी पइत तरइया आयंव
मंय राधा तोर तंय बनवारी, अब मोला जात दे संगवारी।
तोर का तंय तो तान के सुतबे
दिन चढ़ जांही तम्भे उठबे
बृता कुछ नहीं करे बर
मोर गली में गावत बुलबे;
मंय घर के सब बुता करथंव
गाय गरू बर पानी भरथंव
रंघाई कुठाई करथंव
बड़े बिहाने जाथंव बारी, अब मोला जान दे संगवारी।
– रामेश्वर वैष्णव
14. चलो बहिनो जाबो
चलो बहिनी जाबो अमरर्इय्या मां खेले बर घरघुंदिया।
खोर के खेलाई मां ददा खिसियाथे, घर के खेलाई मां दाई
दूसर के घर मां जाबोन ते बहिनी, नंगत ददा हा ठठाही
पटकू के अंचरा मां घर लेबे झूटकुन, दिया चुकिया॥
नानेचकुन चुकिया मां आमा के चटनी, अउ ओही मां थोरचकुन बासी
तरिया के पानी मां दारे चुरोबो, कुंवा के पानी कुंवासी
रांधे बर साग मय राखे हंव घर मां, बरी रखिया॥
आमां के छइहां में पुतरी अउ पुतरा बर, कमचिल के मड़वा गड़ियाबों
माटी के चुकिया धन माटी के दिया मं तेल अउ हरदी मढ़ाबो
नइ लागे बाजा, बजनिया नई लागय मरदनिया॥
– मुकंद कौशल