अचानक वो दिन मैं अपन मूल इसकुल म जा परेंव। टूरी मन मोर चारोखुंट जुरिया गे। मैं ह टूरी मिडिल इसकुल के हेडमास्टर हरंव न। टूरी मन अपन-अपन ले पूछे ल धर लिन- “कहाँ चल दे रेहे बड़े सर, इहाँ कइसे नइ आवस? हमर मन के पढ़ई- लिखई बरबाद होवत हे। चर-चर झिन सर मन इसकुल म आना बंद कर दे हव?”
“काय करबे नोनी हो, बइला चरवाहा मन हड़ताल म चल दे हे। कतको बरदी मन बइलच चरवाहा के भरोसा चलत हे। सरकार ह बरदी ठोंके बर संउजिया मन के डिवटी लगा दे हे। हमन संउजिया हरन। आने-आने गाँव म बरदी ठोंके बर जावत हन। जब तक बइला चरवाहा मन के हड़ताल चलही आने गाँव के बरदी ठोंकना, बरदी के चारा-पानी (मधियान भोजन) के बेवस्था करना संउजिया मन के जुम्मेदारी हे।”
टूरी मन फेर चिल्लाय बर धर लीन।
“संउजिया काय हरे सर?”
“बइला चरवाहा काला कथे सर?”
“संउजिया अउ बइला चरवाहा काला कथे अपन-अपन दाई-ददा ल पूछ के आहू। इही आज के तुंहर होमवर्क हरे।” कहिके मैं भागेंव। मोला अपन बेवस्था वाला इसकुल जाय बर देरी होत राहय।
दिनेस चौहान
छत्तीसगढ़ी ठीहा,
सितलापारा, नवापारा-राजिम,
जिला- रइपुर छत्तीसगढ़।
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