छन्द के बारे में जाने के पहिली थोरिक नान-नान बात के जानकारी होना जरूरी है जइसे अक्छर, बरन, यति, गति, मातरा, मातरा गिने के नियम , डाँड़ अउ चरन, सम चरन , बिसम चरन, गन . ये सबके बारे मा जानना घला जरूरी हे. त आवव ये बिसय मा थोरिक चर्चा करे जाये.
आपमन जानत हौ कि छत्तीसगढ़ी भाखा हर पूरबी हिन्दी कहे जाथे. हिन्दी के लिपि देवनागरी आय अउ छत्तीसगढ़ी भाखा घला देवनागरी लिपि मा लिखे अउ पढ़े जाथे.जेखर बरनमाला मा स्वर अउ बियंजन रहिथे. ये बरन मन ला बोले मा जतका बेर लागथे ओखर हिसाब ले नान्हें माने लघु अउ बड़कू माने गुरु बरन माने गे हे. साधना के रूप मा ये उदीम ला कई बछर पहिली आचार्य पिंगल मन करिन. पहिली दूसरी मा हमन बाराखड़ी पढ़े हन –
अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अ:
ह्रस्व – एमा “अ” “इ” “उ” अक्छर के अलावा “ऋ” अउ चन्द्रबिन्दु के मातरा वाले सबो स्वर अउ बियंजन ला ह्रस्व माने नान्हें माने लघु माने गे हे.
उदाहरन –
क कि कु कृ कँ
प पि पु पृ पँ
इनकर मातरा ला एक गिने जाथे .येमन ला बोले मा समझौ के एक चुटकी बाजे बरोबर समय लागथे.
बड़कू (गुरु) – आ ई ऊ ए ऐ ओ औ अं अ: ये सबो स्वर अउ इनकर मेल ले बने अक्छर मन ला बड़कू मातरा वाले माने गुरु, बरन माने गे हे. एमन ला बोले मा ह्रस्व माने नान्हें माने लघु ले दुगुना बेर लागथे .
उदाहरन –
का की कू के कै को कौ कं क:
पा पी पू पे पै पो पौ पं प:
कई बछर पहिली पिंगल बबा मन छन्द ऊपर बहुत साधना करीन वोमन नान्हें बर “I” अउ बड़कू बर “S” के चीन्हा बनाइन. पिंगल बबा के नियम मन ला नवा जुग के छन्द सास्त्री पंडित जगन्नाथ प्रसाद भानु मन वइसने के वइसने स्वीकार करीन. हिन्दी बरन माला के तीन बियंजन क्ष , त्र अउ ज्ञ मन जुड़वा अक्छर आँय. क्ष बने हे क् अउ ष के मेल ले . त्र बने हे त् अउ र के मेल ले . ज्ञ बने हे ज् अउ ञ के मेल ले तभो ले एखर मातरा एक माने जाथे . हाँ, जब ये तीन अक्छर मन कोन्हों सबद के बीच मा आथे तब दू मातरा के असर डारथे, एला बाद में अउ बने ढंग ले समझाए के उदीम करहूँ .
मातरा गिने के नियम – सबद , अक्छर मन के मेल ले बनथे, हर अक्छर अपन उच्चारन के हिसाब से बोले मा समय लेथे तेखर हिसाब ले नान्हें अउ बड़कू ला देख के गिनती करे जाथे .
मन = म + न = नान्हें + नान्हें = १ + १ = २
मान = मा + न = बड़कू + नान्हें = २ + १ = ३
मना = म + ना = नान्हें + बड़कू = १ + २ = ३
माना = मा + ना = बड़कू + बड़कू = २ + २ = ४
मँय = म + यँ = नान्हें + नान्हें = १ + १ = २
चन्द्रबिन्दु के मातरा वाले सबो स्वर अउ बियंजन ह्रस्व माने नान्हें माने लघु माने जाथे.
उदाहरन –
सँझकेरहा = सँ + झ + के + र + हा = नान्हें + नान्हें + बड़कू+ नान्हें + बड़कू
= १ + १ + २ + १ + २ = ७ ( इहाँ स ऊपर चन्द्रबिन्दु हे एला एक गिने जाही)
साँझ = साँ + झ = बड़कू+ नान्हें = २ + १ = ३
इहाँ “स” ऊपर आ के मातरा हे साथ मा चन्द्रबिन्दु हे. “स” , आ के मातरा के कारन अइसने बड़कू होगे हे ते पाय के “साँ” के मातरा २ माने बड़कू गिने गे हे .
अम् के मातरा वाले अक्छर चाहे सुरु मा आये चाहे बीच मा, बड़कू गिने जाथे .
संझा = सं + झा = बड़कू+ बड़कू= २ + २ = ४
मंतर = मं + त + र = बड़कू+ नान्हें + नान्हें = २ + १ + १ = ४
कमंडल = क + मं + ड + ल = नान्हें + बड़कू + नान्हें + नान्हें = १ + २ + १ + १ = ५
आधा अक्छर – जब आधा अक्छर ले कोन्हों सबद सुरु होथे तब ओला मातरा के रूप मा नइ गिने जाय
स्तर = त + र = नान्हें + नान्हें = १ + १ = २
जब आधा अक्छर बीच मा आथे अउ ओखर पहिली ले अक्छर नान्हें रहे तब पहिली के अक्छर मा मातरा दू हो जाथे.
बस्तर = बस् + त + र = बड़कू + नान्हें + नान्हें = २ + १ + १ = ४
इहाँ धियान देने वाले बात हे कि अगर आधा अक्छर के पहिली वाले अक्छर बड़कू रहे तब ये आधा अक्छर गिनती मा नइ आवय
मास्टर = मास् + ट + र = बड़कू + नान्हें + नान्हें = २ + १ + १ = ४
इहाँ देखौ “मा” अपन आप मा बड़कू हे ते पाय के आधा स् हर गिनती मा नइ गिने गये हे.
जुड़वा अक्छर (संयुक्ताक्षर)
भ्रम = भ्र + म = नान्हें + नान्हें = १ + १ = २
अभ्रक = अभ् + र + क = बड़कू + नान्हें + नान्हें = २ + १ + १ = ४
क्रम = क्र + म = नान्हें + नान्हें = १ + १ = २
वक्र = वक् + र = बड़कू + नान्हें = २ + १ = ३
प्रलय = प्र + ल + य = नान्हें + नान्हें + नान्हें = १ + १ + १ = ३
विप्र = विप् + र = बड़कू + नान्हें = २ + १ = ३
अब “क्ष”, “त्र” अउ “ज्ञ” के मातरा के गिनती ला देखौ कि ये अक्छर मन ले सबद के सुरुवात होय ले गिनती कइसे होथे अउ ये अक्छर मन जब सबद के बीच मा आथे तब मातरा गिनती कइसे होथे. उदाहरन –
क्षमा = क्ष + मा = नान्हें + बड़कू = १ + २ = ३
रक्षक = रक् + ष + क = बड़कू + नान्हें + नान्हें = २ + १ + १ = ४
त्रय = त्र + य = नान्हें + नान्हें = १ + १ = २
पत्र = पत् + र = बड़कू + नान्हें = २ + १ = ३
ज्ञान = ज्ञा + न = बड़कू + नान्हें = २ + १ = ३
यज्ञ = यज् + ञ = बड़कू + नान्हें = २ + १ = ३
ऊपर के उदाहरन ले साफ़ हे कि “क्ष”, “त्र” अउ “ज्ञ” जब सबद के सुरुवात मा आथैं तो इनकर मातरा एक माने नान्हें माने लघु गिने जाथे. जब सबद के बीच मा आथे तब मातरा दू माने बड़कू माने गुरु गिने जाथे.
बिसेस – एक ठन अउ बात इहाँ धियान देये के हे कि ऊपर बताये सबो आधा अक्छर मन अपन पहिली वाले अक्छर के संग मातरा भार के कारन ओला बड़कू माने गुरु बना देथे फेर कोन्हों कोन्हों सबद मा आधा अक्छर में भार ओखर पहिली अक्छर ऊपर नहीं परै. अइसन सबद मा आधा अक्छर के पहिली वाले अक्छर हर नान्हें माने लघु च रहिथे जइसे कुम्हार सबद मा आधा अक्छर म् के भार पहिली के अक्छर कु ऊपर नहीं परत हे. बोले मा कुम् हार नहीं बोले जाय, कु म्हार के उच्चारन होथे ते पाय के कु अक्छर के मातरा नान्हें माने लघु गिने जाथे. अइसने कन्हैया मा आधा न् के भार क ऊपर नहीं परत हे. तुम्हार मा आधा म् के भार तु ऊपर नहीं परत हे. अइसन सबद मन मा मातरा के गिनती करत समय बिसेस धियान रखे जाना चाही.
उदाहरन –
कुम्हार = कु + म्हा + र = १ + २ + १ = ४ मातरा
कन्हैया = क + न्है + या = १ + २ + २ = ५ मातरा
तुम्हार = तु + म्हा + र = १ + २ + १ = ४ मातरा
डाँड़ (पद) –
छन्द रचना मन डाँड़- डाँड़ मा तुकबंदी करके लिखे जाथे. येखर एक पद ला एक डाँड़ कहे जाथे. पहिली के ज़माना मा जब लिखे के साधन नहीं रहीस तब कवि मन अपन छन्द रचना ला गावत रहयँ अउ सुनइया मन सुन-सुन के आनंद पावत रहीन. एक डाँड़ (पद) गाये मा हफरासी झन लागे अउ साँस ऊपर घला जोर झन परे इही बिचार करके हर एक डाँड़ के बीच मा नियमानुसार रुक के साँस लेहे के बेबस्था करे गे होही . इही रूकावट ला यति कहे जाथे . एक डाँड़ मा एक घाव रुके ले वो डाँड़ दू बाँटा मा बँट जाथे .डाँड़ के इही टुकड़ा मन चरन कहे जाथे. छन्द के नियम के अनुसार एक डाँड़ मा दू या दू ले ज्यादा चरन हो सकथे .
सहर गाँव मैदान ला, चमचम ले चमकाव (पहिला डाँड़)
गाँधी जी के सीख ला, भइया सब अपनाव (दूसरइया डाँड़)
अब ये दू डाँड़ के छन्द रचना ला देखव. एहर दोहा कहे जाथे
यति -“सहर गाँव मैदान ला” कहे के बाद छिन भर रुके के बेबस्था हे माने एक यति होगे. तेखर बाद “चमचम ले चमकाव” कहिके पहिली डाँड़ या पद पूरा होइस हे.
अब दूसर डाँड़ ला देखव “गाँधी जी के सीख ला” कहे के बाद छिन भर रुके के बेबस्था हे माने एक यति होगे. तेखर बाद “भइया सब अपनाव“ कहिके दूसरइया डाँड़ या पद पूरा होइस हे.
चरन –
अब चरन ला जाने बर फेर धियान देवव –
सहर गाँव मैदान ला (पहिली चरन ), चमचम ले चमकाव (दूसरइया चरन )
गाँधी जी के सीख ला (तिसरइया चरन ), भइया सब अपनाव (चउथइया चरन )
साफ़-साफ़ दीखत हे कि दू डाँड़ (पद) के दोहा छन्द मा पहिला डाँड़ यति के कारन दू चरन मा बँट गे हे . वइसने दूसर डाँड़ घला यति के कारन दू चरन मा बँट गे हे. याने कि दोहा के दू डाँड़ मन चार चरन बन गे हें .
पहिली चरन अउ तिसरइया चरन ला बिसम चरन कहे जाथे. वइसने दूसरइया चरन अउ चउथइया चरन ला सम चरन कहे जाथे. त भइया हो डाँड़ अउ चरन के भेद ला इही मेर बने असन समझ लौ.
.
दोहा छन्द मा एक यति आये ले एक डाँड़ दू चरन मा बँटे हे. वइसने छन्द त्रिभंगी के एक डाँड़ दू यति आये ले तीन चरन मा बँटथे अउ कहूँ-कहूँ तीन यति आये ले चार चरन मा घला बँटथे. कहे के मतलब जउन छन्द के जइसे नियम हे तउन हिसाब ले यति होथे अउ चरन के गिनती तय होथे. मोर बिचार ले आप मन यति के बारे में समझ गे होहू .
अब गति (लय) के बारे में जान लौ. कोन्हों छन्द मा गढ़े रचना हो पढ़े या गाये मा सरलग होना चाही इही ला गति या लय कहिथे.
साफ़ – सफाई धरम हे , ये मा कइसन लाज
रहय देस मा स्वच्छता , सुग्घर स्वस्थ समाज
(ये दोहा ला गा के देखौ, गाये मा कोनों बाधा नइहे त कहे जाही बने गति या लय हे )
अब इही दोहा के सबद मन ला थोरिक आगू-पाछू करके गा के देखौ –
धरम साफ़ – सफाई हे , ये मा कइसन लाज
देस मा स्वच्छता रहय , सुग्घर स्वस्थ समाज
(कोनों नवा सबद नइ डारे गे हे बस उही सबद मन ला थोरिक आगू-पाछू करे गे हे. ये मा पहिली असन सरलगता नइ हे. कवि के यही काम हे कि कोन सबद ला कहाँ रखे जाये कि सरलगता कहूँ झन टूटय.)
तुकांत / पदांत
डाँड़ / चरन के आखिर मा एक्के जइसन मातरा अउ उच्चारन वाले सबद रहे ले कहे जाथे कि डाँड़ / चरन मन तुकांत हें. ऊपर के दुन्नों दोहा के डाँड़ के आखिर मा देखव –
चमकाव/ अपनाव अउ लाज / समाज ये सबद मन डाँड़ के आखिर मा आयँ हें इनकर मातरा अउ उच्चारन एक्के जइसन हे. एमन तुकांत कहे जाथे. .
बरन गिने के नियम –
बरन गिनत समय मातरा अउ आधा अक्छर ला धियान मा नइ रखे जाय. जउन सबद मा जतिक अक्छर याने बरन हे वोला वइसने के वइसने गिने जाथे.
साफ़ – सफाई धरम हे , ये मा कइसन लाज
रहय देस मा स्वच्छता , सुग्घर स्वस्थ समाज
ये दोहा के पहिली डाँड़ के पहिली चरन मा बरन के गिनती अइसन होही –
सा + फ + स + फा + ई + ध + र + म + हे (१+१+१+१+१+१+१+१+१=९)
दूसर चरन के गिनती – ये + मा + क + इ + स + न + ला +ज (१+१+१+१+१+१+१+१=८)
दूसर डाँड़ के पहिली चरन मा बरन के गिनती अइसन होही –
र + ह + य + दे + स + मा + स्व + च्छ + ता (१+१+१+१+१+१+१+१+१=९)
दूसर डाँड़ के दूसर चरन मा बरन के गिनती अइसन होही –
सु + ग्घ + र+ स्व + स्थ + स + मा + ज = (१+१+१+१+१+१+१+१=८)
गन – छन्द मा सुंदरता बढाए बर अउ सरलगता के अलग-अलग खाँचा बनाये बर गन के नियम बनाये गये हे .खास कर सवैय्या जइसन छन्द मा गन के उपयोग उनकर सुंदरता ला कई गुना बढ़ा देथे. गन के मतलब समूह होथे . तीन-तीन बरन मा बड़कू अउ नान्हें के समूह बनाये जाये त आठ ठन समूह बनथे.
नान्हें बड़कू बड़कू यमाता १२२ यगन ISS
बड़कू बड़कू बड़कू मातारा २२२ मगन SSS
बड़कू बड़कू नान्हें ताराज २२१ तगन SSI
बड़कू नान्हे बड़कू राजभा २१२ रगन SIS
नान्हें बड़कू नान्हें जभान १२१ जगन ISI
बड़कू नान्हें नान्हें भानस २११ भगन SII
नान्हें नान्हें नान्हें नसल १११ नगन III
नान्हें नान्हें बड़कू सलगा ११२ सगन IIS
एला सुरता राखे बर “ (यमाता राजभान स)लगा “ मंतर ला रट डारव. एमा सगन के मातरा बताये बर सलगा लिखे गये हे, वइसे “लगा” के कोन्हों मतलब नइ हे, सयमा कहे ले घला उही बात रहितिस.
ये मंतर के खासियत ला देखौ, सुनौ अउ गुनौ – मंतर के कोन्हों एक अक्छर ला चुनव. ओला अउ ओखर बाद के दू अक्छर के संग तीन अक्छर के समूह बनावौ . जउन अक्छर ला चुने हौ तेन गन के नाम हो गे अउ समूह के मातरा हिसाब ले वो गन के मातरा होही.
जइसे मान लव “रा” अक्छर ला चुने हौ . गन के नाम होही “रगन” अउ तीन अक्छर के समूह राजभा बनत हे, जेखर मातरा बड़कू, नान्हे,बड़कू माने २,१,२ रही.
अब देखौ “भगन” का हे जाने बर “भा” अक्छर ला चुनौ. एखर बाद के दू अक्छर “न” अउ “स” हें. तीन के समूह बनिही भानस जेखर मातरा बड़कू, नान्हें, नान्हें माने २,१,१ होही.
छन्द के किसम : छन्द के दू किसम होथे. मातरिक छन्द अउ बारनिक छन्द
मातरिक छन्द- जउन छन्द मा डाँड़ अउ चरन मा मातरा पहिली ले तय रहिथे ओला मातरिक छन्द कहिथें. ज्यादातर मातरिक छन्द मन दू डाँड़ अउ चार चरन के होथें. (सब्बो नइ होंय)
मातरिक छन्द के भी तीन किसम होथे सम मातरिक छन्द, अर्ध सम मातरिक छन्द अउ बिसम मातरिक छन्द
सम मातरिक छन्द – हर डाँड़ मा एक्के बरोबर मातरा होथे. जइसे चौपाई मा १६-१६ , चौपई मा १५-१५ , कज्जल मा १५-१४ उल्लाला मा १३-१३
अर्ध सम मातरिक छन्द – हर डाँड़ के मातरा तो बराबर होथे फेर हर डाँड़ दू या ज्यादा चरन मा बंटे रहिथे. अलग-अलग चरन के मातरा अलग-अलग रहिथे. बिसम –बिसम चरन के मातरा बरोबर रहिथे अउ सम –सम चरन के मातरा बरोबर रहिथे. जइसे दोहा १३,११ सरसी १६-११, आल्हा १६-१५
बिसम मातरिक छन्द – सम मातरिक छन्द अउ अर्ध सम मातरिक छन्द मा जउन छन्द आथे वोला छोड़ के बाकी छन्द मन बिसम मातरिक छन्द कहे जाथे. एमा हर डाँड़ के मातरा बराबर नइ रहाय . ज्यादातर दू अलग-अलग छन्द के मेल मा बिसम मातरिक छन्द बनथे.
जइसे कुण्डलिया के छै डाँड़ मा पहिली दू डाँड़ १३,११ / १३-११ अउ बाद के चार डाँड़ ११-१३ / ११-१३ के हे. छप्पय छन्द अउ अमृत ध्वनि छन्द घला बिसम मातरिक छन्द आय.
बारनिक छन्द – जउन छन्द मा डाँड़ अउ चरन मा बरन मन खास बेवस्था के नियम मा पहिली ले बंधे रहिथे ओला बारनिक छन्द कहिथें. जइसे सवैया छन्द, घनाक्छरी छन्द.
बारनिक छन्द मा मातरा ऊपर धियान नइ दिये जाय, एमा बरन के गिनती करे जाथे. सवैया जइसन छन्द मा गन के बेवस्था देखे जाथे. घनाक्छरी मा गन नइ रहाय फेर डाँड़ अउ चरन मन मा बरन के गिनती करे जाथे . बारनिक छन्द ज्यादातर चार डाँड़ के होथे अउ आपस मा तुकांत होथे. बारनिक छन्द मा घला सम, अर्ध सम अउ बिसम के भेद होथे. जइसे मातरिक छन्द मा मातरा के अनुसार भेद होथे वइसने बारनिक छन्द मा बरन के गिनती के हिसाब मा भेद जाने जाथे.
– अरुण कुमार निगम
एच.आई.जी. १ / २४
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़
छंद के बारीक सूत्र हमर साहितकार मित्र मन बर बहुत बढ़िया हे…..भैया। मर बोली हमर भाखा म अइसन समझइया हे कहाँ????