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हमर देस : जौन देस में रहिथन भैया, ये ला कहिथन भारत देस

जौन देस में रहिथन भैया, ये ला कहिथन भारत देस,
मति अनुसार सुनाथंव तुमला, येकर कछु सुंदर सन्देस।
उत्ती बाजू जगन्नाथ हैं, बुड़ती में दुवारिका नाथ,
बदरी धाम भंडार बिराजे, मुकुट हिमालय जेकर माथ।
सोझे सागर पांव धोत हैं, रकसहूं रामेश्वर तीर,
बंजर झाडी़ फूल चढ़ावें, कोयल बिनय करे गंभीर।
जो ये देह हमार बने है, त्यारे अन्न इहें के जॉन,
लंह हमार इहें के पानी, हवा इहें के प्रान संमान।
रोंवां रोंवा पोर पोर ले, कहं तक कहाँ बात समझाय,
थोरे को नइये हमर कहेबर, सब्बो ये भारत के आय।
धुर्रा माटी खेल खेल के, हम सब बने भुसुन्डावान,
बुढ़वा होके मर जाबों तो, हमला देहैं यें असथान।
दसरथ, हरिचंद, युधिष्ठिर, सतधारी ये राजाराम,
जोगेश्वर, श्रीकृष्ण, जनक ये, अर्जुन भीष्म कर्ण बलधाम।
धुरुव, प्रहलाद, लव, कुश, अभिमन्यु ऐसन बालक इहें रहिन,
सीता, गौरी औ अनुसूया पतिव्रत के कष्ट सहिन।
गौतम वशिष्ट नारद कनाद, शुक्र, व्यास, कपिल मुनिराज,
इही देश के हैं सब जनमें, इनकर हुए धरम के काज।
कीरति पताका फर हावत है, धन धन गावत सकल जहान,
इनकर रस्ता, इनकर करनी, पढ़ सुन चलथे लोग पुरान।
मनखे डउकी जुमला मिलके, हम होथन करौड़ चौतीस,
बड़ भागी अन हम सब लोगन, देइस जन्म इहां जगदीश।
हमर देस है हम ला प्यारा, करबोन कोटि कोटि परनाम,
काम करैं तन मन धन देके, रह जावे भारत के नाम।

पुरुषोत्तम लाल