1
झन कर हिसाब तैं, कौनो के पियार के ।
मया के लेन-देन नो हे बइपार के ।
मन के मंदिरवा मा लगे हे मूरत ह,
कर ले इबादत, राख तैं सँवार के ।
मन के बात ला, मन मा तैं राख झन,
बला लेते कहिथौं, तैं गोहार पार के।
दिन ह पहागे अउ होगे मुँधियार अब,
देख लेतेस तैं हर मोला निहार के।
‘बरस’ के कहना ल मान लेतेस गोई,
काबर तैं सोचथस कान हे दिवार के ।
2
तरकस ले निकल गे तीर,
कइसे धरन मन मा धीर।।
बड़े-बड़े पेड़ मन गिरगे,
फुसकू बनगे बड़का बीर।
कतको झन बड़ हाँसत हे,
आँखी म हमर हावै नीर।
सोझ कहइया नइ हे कौनो ,
भट गे जम्मो दास कबीर।
तिलक-त्रिपुंड अब लुका गे,
नाचत हावै पीर – फकीर।
‘बरस’ कहे धरम-जात के,
झन खीचों जी अब लकीर।
फुसकू= जिनकी हैसियत नहीं है, बड़= बहुत, सोझ =सीधा, भट गे = समाप्त हो गए, लुका गे= छुप गए।
3
देखत-देखत अब गाँव के बँधना हर छरियावत हे,
सुवा-ददरिया, करमा, रीलों जम्मो हर नँदावत हे।
किंजर-किंजर के गली-गली मा सेखी मारत टूरा मन,
गाँडा के बछवा कस किंजरत, कुला ल मटकावत हे।
खेत-खार के रूख कँटागे, चिरई खोंधरा दिखय नहीं,
कहाँ ले दिखही पड़की,मैना, नदिया घलो सुखावत हे।
तीज-तिहार के मया-पिरित, ना जाने कहाँ लुकागे,
गुरतुर बोली-भाखा हमर दिनों – दिन दूरिहावत हे।
बगरत हावै भ्रष्टाचार ह, अमर बेल के लाहा कस,
मुरुख मनखे बड़का बनके, गुनी ला समझावत हे।
सेखी= आत्म प्रशंसा, टूरा=लड़का, बछवा =बछड़ा/बैल, लुकागे=छुप गया, खोंधरा =घोंसला, लाहा=बेल,
–बलदाऊ राम साहू