रचना कोनो बिधा के होवय रचयिता के अपन विचार होथे। मैं चाहथौं के मोर मन के बात लोगन तीर सोझे सोझ पहुंचय। चाहे उनला बदरा लागय के पोठ। लोगन कहिथे के भूमिका लेखक के छाप हँ किताब ऊपर परथे। अइसन छापा ले कम से कम ए किताब ल बचाके राखे के उदीम करे हौं। कोनो भी रचनाकार जेन देखथे, सुनथे, अनभो करथे उही ल लिखथे। एकर मतलब मनखे के अलावा बहुत अकन जीव जिनावर अऊ परिस्थिति घलो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रचना लेखन म प्रेरित करके यथायोग्य अपन अपन योगदान दिये रहिथे।
मैं कोनो-कोनो के नाम लिखके सबे कोनो जिन्कर नाम छूट परही उन ला निरास नइ करके संसार के समस्त चर-अचर जीव रचना खातिर प्रेरक, सहयोगी
जान-मानके सादर प्रणाम करत हुए सबो के आभार मानत हौं।
आपके
धर्मेन्द्र निर्मल