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कविता

सब हलाकानी हे

ददा के गोठ ल बेटा नइ भावय।
घरो घर सास अउ बहू के कहानी हे।
कतेक ल बताबे मितान? सब हलाकानी हे!!!
लटपट लटपट टुरा दसमी पढे हे।
बिहाव बर छोकरी खोजे म परसानी हे।
कतेक ल बताबे मितान? सब हलाकानी हे!!!
फोकट के जिनिस म घर-पेट भरत हन।
अलाली म बितत हमर जिनगानी हे।
कतेक ल बताबे मितान? सब हलाकानी हे!!!
अरोसी-परोसी संग गोठ-बात बंद हे।
फेर दुनियाभर संग मितानी हे।
कतेक ल बताबे मितान?
सब हलाकानी हे।

रीझे यादव
टेंगनाबासा छुरा
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