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कहानी : बड़का तिहार

गुरूजी पूछथे – कते तिहार सबले बड़का आय ? समझ के हिसाब से कन्हो देवारी, दसरहा अऊ होली, ईद, क्रिसमस, त कन्हो परकास परब ला बड़का बतइन। गुरूजी पूछथे – येकर अलावा ……? लइका मन नंगत सोंचीन अऊ किथे – पनदरा अगस्त अऊ छब्बीस जनवरी। कालू हा पीछू म कलेचुप बइठे रहय। गुरूजी पूछथे – तैं कुछु नी जानस रे ? ओला तिर म बलइस। कालू हा अपन चैनस के आगू कोती ला, पेंठ म खोंचे रहय, पीछू कोती, चैनस हा पेंठ ले बाहिर रहय। ओकर बिचित्र पहिनावा देख, लइका ते लइका, गुरूजी तको हाँस डरीस। तीर म बलइस अऊ पूछीस – तोर नजर म, कते तिहार बड़का आय। कालू किथे – जे तिहार म सबले जादा खुसी मिलथे तिही तिहार, सबले बड़का आय गुरूजी ….। गुरूजी किथे – खुसी तो सबे तिहार म मिलथे। कालू किथे – निही गुरूजी, हमर घर दू दिन चार दिन के आड़ म, तिहार आथे, उही दिन हमन, अबड़ खुस रहिथन। गुरूजी किथे – तोर बर इसपेसल कलेनडर बने हे रे ….., तेमा तोर घर दू दिन चार दिन म तिहार आ जथे….? कुछ भी बोलत रहिथस ……कहत सटाक ले गाल ला मारीस गुरूजी हा …..। लइका सिहरगे एके चटकन म। लइका ला, जोर से फटकारत, ओकर चैनस ला बने करे बर किहीस गुरूजी हा। कालू कुलेचाप खड़े रहय। गुरूजी ओकर बोड्डी ला धर के ईंचीस, एक रहापट फेर लगइस अऊ आगू कोती पेंठ म खोंचाये चैनस ला, बाहिर निकालिस। चैनस जइसे बाहिर अइस त गुरूजी देखथे के, चैनस के खोंचाये भाग हा चिरहा रहय। तुरते ओला खोंच दीस अऊ पीछू कोती जाके पेंट ले बाहिर निकले चैनस ला पेंठ म, खोंचे बर धरीस। गुरूजी देख पारीस, पीछू कोती ले चिराये पेंठ ला। बिचित्तर पहिनावा के कारन समझगे गुरूजी, ओकर आंखी डबडबागे।
देवारी तिहार के छुट्टी लगगे। गुरूजी अपन गांव नी गिस। कालू के घर जाके ऊंकर हालचाल पता करीस। कालू के ददा रामू बनिहार रिहीस। मेहनती जरूर रिहीस फेर, जतका कमातीस तेकर ले जादा मंद मउहा म उड़ा देतीस। दई के कमई म घर चलय। सांझकुन होतीस तहन रामू मरत ले पी के आतीस, झगरा मतातीस, कभू कालू के दई ला चुंदी हपाट के लाते लात मारतीस, कभू लइका मन ला……..। जे दिन रामू ला बूता नी मिलय अऊ जे दिन हाथ म पइसा नी आवय, ओ दिन ओकर तीर म कन्हो मंदुहा संगवारी मन नी ओधय, उही दिन ओला पिये बर नी मिलय। जे दिन नी दिन पियय, उही दिन, ओकर घर म सुख सानती रहय। उही खुसी ला कालू अऊ ओकर भई बहिनी मन तिहार समझय।
गुरूजी रामू ला सुधारे बर सनकलप ले डरीस। रामू ला अपन घर म, देवारी के साफ सफई बूता म बलइस। संझा होय तहन, रामू पइसा झोंके के अगोरा करय। गुरूजी दूसर दिन देहूं कहिके, टरका देवय। बूता सिरागे, पांच छै दिन नहाकगे, गुरूजी हा, रामू ला एको पइसा नी दीस, उलटा ओकर संग बकबात करे लागीस। रामू हा, गुरूजी के बड़ इज्जत करय, फेर गुरूजी हा, ओला पी डरे हे कहिके फटकार झिन दे सोंचके , कहींच नी कहि सकिस। दूसर दिन, संझाती संझाती पिये के चुलुक म संगवारी मिलगे, बिन पइसा के कन्हो संगवारी मन, मंद ला सुंघन तको नी दीस। एक पइत फेर, पइसा मांगे बर गुरूजी घर चल दीस। गुरूजी हा रामू ला, काये के पइसा कहिके, सवाल खड़ा कर दीस। रामू के मुहूं ले अंड संड गारी बखाना निकले बर धर लीस, गांव के कतको मनखे जुरियागे। गुरूजी के बहुतेच अपमान करीस रामू हा, फेर गुरूजी झगरा नी करीस। रामू उप्पर कन्हो बिसवास नी करीन। दबे जबान कुछ बिघ्नसनतोसी मन, गुरूजी उप्पर अनगुरी उचइन। अइसन मन के सह पाके, जे दिन पीहूं ते दिन बताहूं गुरूजी, तोर मजा ला, कहत, रामू मन मारके चल दीस……।
गुरूजी बईमान निकल जही, रामू सोंचे नी रिहीस । आवत आवत, मने मन गुनत रहय, गुरूजी सहींच म, ओकर पइसा ला नी दिही तब ? पंचइत सकेलहू त, मोला अऊ मोर बात ला, दरूवा मंदुहा हरस कहिके, फांक दिही, गुरूजी के गलती कन्हो ला नी दिखही। मन म उथल पुथल चलत रहय। मे नी पियत रहितेंव त, मोर संग, अतेक बड़ धोका नी होतीस। मने मन परन कर डरीस के, आज ले पियई बंद…….।
घर म निगतेच साठ, लइकामन संग, घर के साफ सफई म, पहिली बेर अपन हाथ बंटइस रामू हा। अपन बई अऊ लइकामन संग हाँस हाँस के, परेम से गोठियाये लागीस। दसना म सुते सुते रामू, घर म दिखत परिवरतन ला, सोंचत रहय। लइकामन बिगन केहे, हाथ गोड़ चपक दीस। माथा म अरसी तेल के मालिस म, कतका बेर नींद परगे, नी जानिस। चहा पीके बिहिनिया ले, बूता म निकलगे धनतेरस के दिन। कतको बूता मिलगे। पइसा हाथ म अइस जरूर, फेर संझाती के चुलुक धरके……। हाथ के पइसा हा, दारू नी पिये के परन ला, बिसार दीस। गुरूजी ले बदला ले के, आज मउका मिलगे कहिके, दारू के दुकान कोती, गोड़ उसलगे रामू के। बीते अठोरिया भर, ओला नी पुछइया संगवारी मन, ओकर तीर पइसा जानके, मोहलो मोहलो करे लगीस। रसदा म कपड़ा दुकान ले कालू ला, नावा कपड़ा धर के, लकर धकर निकल के, दऊंड़त देख पारीस। दऊंड़त कालू, अपन ददा संग झपागे। कालू दुकान ले, कपड़ा चोराके भागत होही सोंचके, ओकर गाल म सटाक ले, एक चटकन झड़िस रामू हा। चुंदी हपाटके लात जमातीस तइसना म, गुरूजी ला उही दुकान ले हाँसत निकलत देख पारीस। ओकर एड़ी के रिस तरवा म चइघगे। गुरूजी ला कुछ कहितीस तेकर पहिली गुरूजी पूछीस के, कालू ला काबर फोकटे फोकट मारत हस ? मउका मिलगे रामू ला, वो किथे – हमन गरीब मनखे भलुक आवन गुरूजी, फेर तोर कस बईमान नोहन …..। मोर लइका हा कपड़ा चोराके लेगत हे, त ओला मारहूं निही ते का ओकर पूजा करहूं ….? गुरूजी किथे – में भलुक बइमान हो सकत हंव फेर अपन लइका ला, चोर कहि के झिन सजा दे। अपन मेहनत के पइसा ले बिसा के लानत हे बपरा हा। तोर कस, अपन मेहनत के पइसा ला, दारू म नी बोहावत हे। रामू के आंखी फटे रहिगे तब गुरूजी बतइस – जबले छुट्टी लगे हे ते दिन ले, नानुक लइका हा, धान लुवे के बूता कमाके, न सिरीफ अपन बर बलकी, मई पिल्ला बर कपड़ा बिसाये हे …….।
रामू के आंखी उघरगे, कालू ला हाथ धरके जइसे उठइस, कालू हा, ये ददा कहिके जोर से रो डरीस। कालू के हाथ गिल्ला रिहीस, रामू के नजर परगे। हथेली भर, फोरा परे रहय, उही फूटगे…..। बपरा लइका जात, कभू वइसन बूता करे नी रहय, नानुक नरम नरम हाथ, धान लुवत, फोरा परगे रहय। लइका के हथेली के दुरदसा देख, रामू के आंखी ले परेम के धार उमड़गे। ओकर पछताताप के आंसू म, जनम भर के पाप बोहागे। पांव के रसदा बदलगे। ओकर सनकलप जीतगे।
दिया बारे के समे, गुरूजी मई पिल्ला, रामू के घर पहुंचगे। आतेच साठ, रामू के कमई के पइसा ला, रामू के हाथ म देवत, अपन करनी के माफी मांगत बतइस के, ककछा म कालू के पहिरावा ला देख के, सबो झिन हाँस पारे रेहेन, उही दिन के पाछू में जानेव के, तुंहर दुरदसा के जुम्मेवार तोर नसा आय, मोर परन रिहीस के, येसो तोर दिसा अऊ दसा ला सुधारहूं, तभे देवारी मनाहूं। उही दिन ले तोर लइका घला, अपन घर के अऊ कन्हो मनखे ला, कपड़ा के सेती झिन हाँसय कहिके, अतेक मेहनत करीस …….। गुरूवईन दई हा लइका मन बर लाने, मिठई पेड़ा, कपड़ा लत्ता अऊ फटाका ला आगू म मढ़हा दीस। दारू छोंड़े के सनकलप करतेच म, रामू ला, अतेक परेम मिलही, बिसवास नी होवत रिहीस……….। गुरूजी के सेती रामू के हिरदे बदलगे, घर म खुसी अपन पांव जमा डरीस। ओकर परिवार म वाजिम म बड़का तिहार आगे। अपमान सहिके, रामू के दसा सुधरइया, गुरूजी के हिरदे म बरत दिया, रामू के घर म अतेक अनजोर बगरइस के, देवारी के अऊ दिया मन, गुरूजी के दे, ये दिया के आगू म फिक्का परगे। खुसी मिले के अवसर हा तिहार आय, गुरूजी के बात, सोला आना अभू तक सच हे ………।
हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा

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