राजा के आज्ञा पाके सब मंत्री मन अपन-अपन वाहन ला सजाय लगिन। अपन-अपन वाहन म सवार हो के सब मंत्री मन राजा के आधू-पाछू चले लगिन। कुवांर के महीना रहय। मार लक लक ले घाम करत रहय।
एक ठउर म एक किसान ला काम करत देख राजा ह मंत्री मन ला उही मेरन ठहरे बर किहिस। साठ बछर के सियान किसान ह नांगर फांद के खेत ला जोतत रहय। राजा ह वो किसान के तीर म जाके पूछिस-‘‘कइसे बबा अदरा नई बरसिस का?‘‘ किसान किहिस-‘‘बरसिस राजा साहब फेर खोचका डबरा के पुरतीन होगे।‘‘ राजा फेर पूछिस-‘‘अउ मघा के काय हाल चाल रिहिस?‘‘ अब मघा के काय बतावव राजा साहब, बरसिस फेर जिहाँ के चीज तिहाँ चलदिस। किसान के बात सुनके राज ला बड दुख होइस। राजा किहिस-‘‘अच्छा बबा! ये बता उŸारा चितरा म बरसिस के नई बरसिस?‘‘ बरसिस राजा साहेब तभे तो मैहा ये कुवांर के महीना मे नागर जोंतत हवं।
राजा अउ किसान के गोठबात ह मंत्री मन के समझ म कुछु नई आवत रहय। बात के रहस्य ला मने मन म सोचत सब झन आघू बढगे। भ्रमण के बाद सब मंत्री अउ राजा ह राज महल म पहुँचिन। सब अपन अपन आसन म बइठिन तब राजा पूछिस-‘‘देखव जी मंत्री हो ,इहाँ सब एक ले बढ़ के एक विद्ववान हव। अभी सब झन वो किसान के संग मोर गोठ-बात ला सुने हव। आप मन ला बस वो गोठबात के रहस्य ला बताना हे। एकर बर आप मन ला एक महीना के समे दे जावत हावें। जउन मंत्री ह ये गोठबात के मतलब ला सबले पहिली बता दिही वोला सोन के सौ मोहर इनाम दे जाही अउ राज के प्रधान मंत्री बनाय जाही।‘‘ अतका कहिके राजा ह सभा समाप्त करे के घोशणा करिस ।
इनाम अउ प्रधान मंत्री बने के लालच में सब मंत्री अड़बड दिमाग लगा के राजा अउ किसान के गोठबात के मतलब निकाले के उदीम करिन फेर कोन्हो सफल नइ होइन। बड़े-बड़े ज्ञानी, ध्यानी अउ विद्ववान मन घला हक खागे। मंत्री मन किसान के हाथ पाँव जोड़ के वो बात के मतलब पूछे। किसान ला रंग-रंग के लालच देवय। किसान कहय जब तक राजा ह ये बात के मतलब बताय के आज्ञा नइ दीही तब तक मै नइ बता सकव। आखिर म सब मंत्री थक हार गे अउ राजा के तीर म जाके हार मान के कहिन-‘‘ये बात के मतलब ला समझना हमर बस के बात नोहे राजा साहब।‘‘ राजा किहिस-‘‘दिखगे तुंहर बुद्धिमानी, नानकुन बात के मतलब नइ समझ पात हव अउ मनमाने घंमड करथव। अब दरबार म उही किसान ह आके अपन बात के मतलब ला सबला समझाही।‘‘
बिहान दिन वो किसान ला राज दरबार मे बलाय गिस। किसान दरबार म आके सबला परनाम करके बइठगे। राजा ह इषारा करिस तब किसान किहिस-‘‘राजा साहब! वो दिन आप मन मोला पूछेव कि अदरा म बरसिस कि नइ बरसिस तब मैंहा कहेवं बरसिस फेर खोचका-डबरा के पुरतिन होगे। ये बात के मतलब आय आप के प्रष्न रिहिस जवानी म लोग लइका आइस ते नई आइस। खोचका डबरा के पुरतिन होगे के मतलब आय लइका तो आइस फेर जनम लेते ही मरगे। आप पूछेव मघा म बरसिस कि नइ बरसिस, मैहा कहेव बरसिस फेर जिहाँ के चीज तिहाँ चल दिस मतलब मोर अधेड़ावस्था म संतान तो होइस तेमन बेटी आय उंखर पालन-पोशण करेंव अउ उंखर बिहाव करके ससुराल बिदा कर देवं। आप के तीसरा प्रष्न रिहिस उतरा-चितरा के काय हाल चाल रहिस तब मे कहेंव उतरा चितरा म बरसिस तभे तो ये कुंवार के महीना म नांगर जोतत हवं मतलब बुढ़ापा म बेटा जनम ले हावे। बेटा अभी नान्हे हावे तभे तो मोला काम करना पड़त हे।‘‘ अतका बताके किसान ह चुपचाप बइठगे।
राजा ह ऊँच ऊँच सिहांसन में बइठे मंत्री मन कोती ला देख के किहिस-‘‘तुमन राज के परजा ला मूरख समझे के भूल करथव। परजा घला बुद्धिमान हावे। अपन बुद्धिमानी म घमंड करना बने बात नोहय। राज के सुख समृद्धि अउ षांति ह सब मिलके बनथे। आज ले सब किरिया खालेव कि घमंड नइ करना हे अउ राज के परजा के सनमान करना हे।‘‘
–वीरेन्द्र सरल
बोडरा(मगरलोड़)