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नाटक

बिरहा के आगी

जान – चिन्हार
1ः- रत्नाकर – एकठन कबि
2ः- किसन – परम आत्मा
3ः- उधव – किसन के सखा
4ः- राधा – किसन के सखी
5ः- ललिता – राधा की सखी
6:- अनुराधा – राधा की सखी

दिरिस्य: 1
रत्नाकर – गोपीमन अउ किसन के बिरह के पीरा के कथा अकथनीय हावय। अथहा हावय, जेला नापा नी जा सकाय। ओ बियथा के बरनन ला चतुर अउ बने कबि ला कहत नी बनय। मैंहर तो आम आदमी हावंव। जइसने बरज के गोपी मनला संदेस दे बर उधव ला समझाय लागिस, वइसने ओकर गला भर आइस। मया अचानक उमड़के चंचल पुतली ले आंॅसू के रूप मा बोहाय लागिस। थोरकुन बवन ले किहिस, जादा आंकर आंॅखि हर कह दिस। रही सही बात रिहिस ओला हिचकी हर कह दिस।

दिरिस्य:2
किसन अउ उधव मंच मा आथें
किसन – रोत कइथे- गोपीमन के हिरदे ले मोर मया ला निकालबे अउ ओमा बरह्म गियान ला भरबे। ता मैंहर स्वीकार कर लिंहा, निरगुन बरह्मा के उपदेस आनंद के निधि हावय। मया के ठौर मा गियान ला मान्यता दिंहा, ता फेर चन्दरमुखी गोपीमन के धियान ला आंसू ले धो लिंहा। गोपीमन के मया ला आपन हिरदे ले निकालके भूला दिंहा। मैं बरह्म के जोत ला जला लिंहा। एक घ तैंहर गोकुल के गलीमन के धुर्रा लेके आबे, ता मैंहर इ बरह्म बिचार के बिसवास ला धर लिंहा, स्वीकार कर लिंहा। मन ले, हिरदे ले, कान ले , सिर ले, आंॅखि ले, उधव तोर सीख ला भीख साही ले लिंहा।

दिरिस्य: 3
रत्नाकर – बिरज के गांव मा उधव के आय के समाचार गोपीमन पाइन, ता आपन मनभावन के भेजे समाचार ला सुने बर गोपीमन झूंड के झूंड कूदत कूदत नंदबाबा के अंगना मा आय बर लागिन, उचक उचक के आपन पांय के कमल साही पंजा के बल ठाढ़ होके भेजे पाती ला आपन छाती मा छुआय बर लागिन, अउ सबो कहे बर लागिन हामर बर का लिखे हावय, हामर बर का लिखे हावय, हामर बर का लिखे हावय, इसने कहके सिरीकिसन के संदेस जाने बर आतुर हो गिन।

दिरिस्य: 4
गोपीमन अउ उधव मंच मा आथे।
राधा:- हे उधव! तैं मथुरा ले योग के बात सिखाय बर आय हावस, ता हामन ला किरपा करके किसन बियोग के बचन झन बता, दया करके हमनला दरसन दे हावस, बियोग के बात करके हामर दुख दरद के ताप ला जादा झन बढ़ा, हामर मन रूपी दरपन कुटी कुटी हो जाही, एमा आपन कड़ा बानी रूपी पथरा झन मार। एके मनमोहन हर बसके हामनला उजाड़ दिस हावय, हिरदे मा कतका मनमोहन झन बसा।
ललिता – कान्हा के दूत बनके पधारे हस या फेर बरह्मा के दूत बनके, तोर परिचय सफ्फा पी हावय। बिरजबाला मन के बुध ला फेरे बर परन धारन करे हावस, तैंहर मया के रीत नी जानत हस, नीति लेके अनीति लाने बर ठानत हस, तैंहर इ डहर के अनारी हस, फर हामन तोर बात मान लेन, जे किसन अउ बरह्मा ला एके कथस, हमनला अनियायी के भाव नी ीाात हवय, पानी के बूंद के मिले ले महासागर के कुछु नी बिगड़े, पर बिबस होके बेचारी बूंद महासागर मा मिल जाथे।
अनुराधा – हे उधव! तैंहर आपन गियान के गौरव ला आपनेच तीर संभाल के राख। काबर कि तोर अवई, निराकार बरह्मा के उपदेस देवई, हामर मन ला बने नी लागे, तैं बियर्थ के टांय टांय झन कर, इहें कोन्हों तोर बात ला नी सुने। काबर कि सबो मुंहचढ़े हावें। हे उधव! तेर योग गियान के उपदेस ढंग के नी हावय। तैंहर एकर छांड़ के अउ कोन्हो बने उपाय बता दे, तोर बरह्म गियान सांस रोके के साही हावय। तोर गियान के उपदेस कुटिल कटारी हावय, तोर संग जमुना नदी के तरंग हावय, जे आपन तेज बोहाय मा सबो ला बोहा के ले जाथे।

दिरिस्य: 5
रत्नाकर – गोकुल आय के पीछू उधव मया के मद मा सराबोर हो गिन, आंेकर पांव ऐती तेती परत हावय, ओकर सरीर थक गे रिहिस, आंखि सिथिल हो गे रिहिस, उधव इसने जात रिहिन, मानो वो भुलाय भावना ला सूरता करे के परयास करत रिहिन, वो गोपीमनला निरगुन बरह्म के उपदेस दे बर आय रिहिन, फेर ओ गोपीमन के मया ले लबालब भरे बात ला सुन के आपन गरब चमर चमर हो गिस, बरज ले जात समे ओकर एक हाथ मा माता जसोदा के दे माखन सुसोभित होत रहय, अउ दूसर हाथ मा राधा के दे बंसरी रिहिस। इ दोनों भेंट ला जादा आदर भाव के सेती भुंइया मा नी राखत रिहिस, मया के जादा होय के सेती ओकर आंखि ले बोहात आंसूमन ला आपन कुरता ले बांहां करा पोंछत रिहिन। उधव के इ अपूरब दसा के बरनन नी करे जाय सकय। येहर गियान मा मया के जीते के रूप् रिहिस।
उद्धव प्रसंग – जगन्नाथ प्रसाद रत्नाकर से

सीताराम पटेल सीतेश
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