1- बन्दना
1-
कदंब तरी नंद के नंदन, धीरे धीरे मुरली बजाय।
ठीक समे आके बइठ जाय, घरी घरी तोला बलाय।।
सांवरी तोर मया मा, बिहारी बियाकुल होवय।
जमुना के तीर बारी मा ,घरी घरी तोला खोजय।।
रेंगोइया मला देख के ,आपन हाथ ला हलाय।
गोरस बेचोइया ग्वालिन मला,बनमाली पूछय।
कान्हा के मन बसे हस,तोला मया करय।।
ष्यामा तोर संग बिहारी,रस रास रचाय।
सुमति मोर बचन ला सुन,तोर मति मा थोरकन गुन।
चाहना पूरी कर दे तैंहर,पाबे गोरी तैंहर रसरास पून।।
जमुना के लहरा घलो,मजा मा हल्ला मचाय।
2:-
राधा के रूप अपार हे,कान्हा करे ओला पिंयार हे।
बिंधना ओला सुग्घर बनाय हे,माधव ओला भाय हे।।
जमो भुंइया के सार हे,राधा के रूप अपार हे।
राधा के रूप अपार हे,कान्हा करे ओला पिंयार हे।
चमकत अंग ला देख,अनंग झांवा मारत हे।
राधा के रूप ला देख ,माधव चीख पारत हे।।
कोटि लक्ष्मी जाए बलिहार हे,राधा के रूप अपार हे।
राधा के रूप अपार हे,कान्हा करे ओला पिंयार हे।

2:- लइकन-जोबन जोट
1:-
लइकन जोबन मिलगिन,कान के बान नयन लेगिन।
बचन चतुरी अबड़ मुचमुचासे,चंदा कस करे परगासे।
दरपन देख करय सिंगार,सखि ला पूछे सूरत बिहार।
निरजन छाती देखे घेरी घेरी,हांसे आपनपयो हेरी हेरी।
पहिली बोइर फेर संतरा,कान फूंकय काम देवे मंतरा।
माधव देखिस अपूरब बाला,लइकन जोबन एके हाला।
तोला कोन कहे अगियानी,दुनों एके योग कहे सयानी।
2:-
लइकन जोबन दरसन मेर,दल बनाइन दुनों झन फेर।
कभू बांधे चूंदी कभू बिछार,कभू झांपे अंग कभू उघार।
कभूथिर नयन अथिर देर,लालीहावय उरोज जामे मेर।
चंचल चरन चित चंचल भान,जागे काम मुंदित नयान।
जयराम कहे सुन भर कान,धीरज धर मिलही जान।
3:-
लइकनजोबन दरसन देय, दुनों डहर हेरत काम गेय।
काम करे पहिली परचार,भिने भिने दिस हे अधिकार।
कमर के गौरव पाइस चूतर,छीनके निधि बनिस दूसर।
गुपत होइस आप हास परगट,रच होइस दूद परगट।
चरन चपल गति लोचन पाए,लोचनधीरज पदतलपाए।
नवकवि षेखर का पाही पार,भिने राज भिने बेवहार।
4:-
कछुकछु जामय सूली लेय,चरनचपल गति लोचनलेय।
आपसबछन रहय अंचरा हाथ,लाजसखि नी पूछयबात।
का कहो माधव वयःसंधि,देखय काम मन रहय बंधि।
हिरदे करिस सुग्घर काम,रोपिस घट उंच करिस ठाम।
रसकथा सुने लगाए चित,जिसने हिरनी सुने संगीत।
लइकन जोबन झगरा झार,कोन्हो नी माने जीत हार।
जयराम होवे कौतुकबलिहार,लइकन भागिसमुड़ा छार।
5:-
पहिलीबोइर दूद फेरनारंगी,दिनदिनबाढ़े कामकरे तंगी।
फेर होइस लिमउ बिजोर,आपदुद बाढ़य नरिहर जोर।
माधव खोजय रमनी जात,घाट मा भेंटय ओला नहात।
मलमल बसन हिरदे लाग,जो नर देखे ओकर भाग।
हिरदे हालय छिछराय केस,चंवर झांपे सोन महेस।
कहे विद्यापति सुन मुरारी,सूना बिलासे ए बर नारी।
6:-
अंखियाय छन छन नयन,धुर सनाय छन छन बसन।
छनछन दसनछवि छूटहास,छनछनअधर आघूकरे बास।
चैंकतचले छनछन चलेमंद,मनमथ पाठपहिला हे छंद।
हिरदे कली हेरे हेरे थोर,छन अंचरादेवे छन देवे खोर।
बाला भेंटिस लइकनजोबन जोट,जानय कोन रोटछोट।
जयरामकहे सुनभर कान,लइकनजोबनचिन्हा नी जान।

3:- एड़ी-चोटी
1:-
पोट दूद पातर तना,पहरी जामय सोन सना।
कान्हा कान्हा तोर दुहाई,अपूरब देखे न जाई।
मुख मनोहर होंठ रंगी,फूले गुलाल कमल संगी।
लोचन जुगल भंवरा अकारा,मंदपीमाते नीपायपारा।
टेपरा के कथा पूछा झना,काजर धनुस जोरय मदना।
2:-
अहा रे नव जोबन अभिरामा।
जस देखय तस कहे नी जाए,छैओ अनुपम ठामा।
हरिन हथिनी सोम सोन कमल कोयल बुझो जानी।
नयन गति मुख तन महक उपमा अति सुग्घर बानी।।
दू दूद छुअय छूट्टा केस दिखय ओमा उलझय हारा।
जिसने सुमेरू उपर मिलउइस चांदबिना चमकय तारा।
लाल गाल सुग्घर मनि कुंडल,आठ कुंदरू अधजाई।
भौंह भंवर,नाक के सुग्घरता देख सुआ हर लजाई।
विद्यापति कहे सुग्घर गोरी, तोला आने कोन पाही।
कंसदलन नरायन के रासेस्वरी सुगघरता ला पाही।।
3:-
माधव का कइबे सुग्घर रूप, हावय ओ तो उअत धूप।
कतक जतन बिधि लान पदारथ,देखला नयन सरूप।।
कमल सही दुनों चरन सोभित,चाल हथिनी समान।
सोन केरा जांघ सिंह कनिहा,उपर हवेे मेरू समान।।
मेरू उपर दू कमल फूले,बिना नाल ओहर रूचि पाय।
मनिमय हार धार बहय गंगा,तभे कमल नी सुखाय।।
होंठ कुंदरू, दांत दरमी बीज, रवि ससि उगय पास।
राहू दूरिहा रइथे नियर नी आय,ओ नी बनाय गरास।।
हरिन नयन बयन कोयल,कामदेव हावय संधान।
ललाट उपर उगे दस लट,केलि करथे मधुपान।।
4:-
दू पहर के तीर चंदा देखें,एक कमल दू जोति रे।
फूले गुलाल फूल सेंदूर लोटय पांती गजमोती रे।
आज जात देखे पतियाये, अपूरब बिधि निरमान रे।
उल्टा सोनकेरा तरी सोभित थल कमल के रूप रे।
तभे सुग्घर घुंघरू बाजे,मानो जगाय काम भूप रे।
कहे विद्यापति रसवन्ती पाही जे करही बड़ पून रे।
5:-
चंदा के सार लेके मुख गढि़स,देखय चकित चकोर।
अंचरा ले पोंछ अमरित बोहाइस,दसोदिसाहोय अंजोर।
जुगजुग के बूढ़ाबिधि नीरस,दिलकामिनी कोन गढि़स।
रूप सरूप मोला कहे असंभव,आंखी हर लागे रहिस।
भारी चूतर मा रेंग नी सकय,कनिहा लापातर बनाइस।
भाग जाही काम धर राखिस,त्रिबली नारमा अरझाइस।
6:-
कोन बिधि बनाइस सुधामुखी बाला।
अपूरब रूप मनोज मंगल,त्रिभुवन बिजयी माला।।
सुग्घर मुख सुग्घर आंखि,ओमा काजर आंजय।
कनककमल मांझ कालसांप बीजकमल खंजन खेलय।
बोर्री बिल मा,रांवा नार नागिन निकलिस पियासा।।
तीन बान मदन भेजय तीनभुवन बांचय हावय दू बान।
बिधि बड़निठुर बेधे बर रसिक मला सौंपे तोर नयन।।
7:-
डगर माजात देखें सहरिन सजनी बुधियारिनसयानिन।
सोननार साही सुग्घर सजनी,बिधि हाथआपन बनाइन।
हथिनी साही रेंगत हावय,लागत हावय राजकुमारी।
जेहर पाइस सुहागिन सजनी,पागिस पदारथ चारी।।
नीला सारी तन मा पहिरे,सिर के चूंदी हावय कोरय।
ओमा भंवरा रस पिए सजनी,आपन दू पांख फैलाय।।
8:-
चूंदी हावय अंधियार साही,मुख तोर पूनम ससी।
नयन कमल कोन पतियाय,एकठान ऐमन बसी।।
आज मोला दिखिस बाला,जे हावय सोन माला।
मोहाय मोरो मानसमीठी,कामकरिस ओकर हवालात।।
सहज सुग्घर पंड़री रंग,रोट रोट दूद फल सिरी।
सोन नार मा बड़ बिपरीत फरे हवय जोड़ी गिरी।।
9:- सजनी अपरूप देखे रामा।
सोन नार के सहारा ले उइस,निःकलंक चंदधामा।।
कमल आंखी मा काजर आंजय,भौंह बिभग बिलासा।
चकोर जोड़ी मला विधि बांधय, केवल काजर पासा।।
पहर सही गरू दूद छूअत,गला गजमोती के हारा।
काम संख भर सोन संभु मा ढारत गंगा के धारा।।
परयाग जाके सौ जग करही,सो पाही जन बड़भागी।
विद्यापति कहे गोकुलनायक गोपी जन हे अनुरागी।।
10:-
सोननार सरोजनी ,दोना मा उइस जिसने चांदनी।
कोन्हों कहे काई छिपिस,कोन्हों कहे नी बादर ढकिस।
कान्हों कहे घूमय भंवरा,कोन्हों कहे नीही चरे चकोरा।
संसय परे सबो देखे,कोन्हों कहे आपन जुगती बिसेखे।
विद्यापति कहे गाबे,गुणवती ला बड़ पून पूनवान पाबे।
11:-
चूंदी ला डराके चंवरी लुकाइस पहरी के गुफा,
मुख ला डराके चंदा लुकाइस अगास ।
नयन हरिन डरिस,सूर डराइस कोयल,
चाल ला डराके हथिनी लुकाइस बनवास।।
सुन्दरी !कर मोर करा गोठबात, ओकर पाछू तैं जात।
तोला डराके सबो धुरिहा पराइन,तैं काला हस डरात।
दूद डराके कमलकली जल भीतर,घघरी आगी समात।
दरमी ,नरिहर करे अगास बास,संभु बीखपीइस हटात।
भुजाडराके चिखलालुकाय नाल,कोपलकांपे कर डरात।
कवि सेखर कहत हावय,ये सबो मदन के हे परताप।।
12:- रामा अउ सुग्घर दिखय।
कतका जतन कर कतका बिचितर बिधि तोला देय।
सुन्दर बदन मा सेन्दुर बिन्दु,करिया केसके दिस भार।
चंदा सूरूज संग उये हावय,करकेपाछू अपन अंधियार।
चंचन नयन तिरछा निहारे,काजर आंजय सोभा पाय।
मानों पवन पेलके कमल फूल भंवरा समेत उलटाय।।
उन्नत उरोज ला अंचरा लुकाय,फेर फेर दिख जाय।
कतको जतन कर ले गोरी तैंहर,हिमालय नी लुकाय।।
13:-
सहज परसन मुख,दे हिरदे सुख,लोचन तरल तरंग।
अगास पताल बसे,कइसे मेल,चंदा कमल दुनों संग।
बिधिबनाइस रामा दूसर लछमी समान तुलना निरमान।
दूद मंडल सिरी देख ,सुमेरू लजाके आने लंग जाय।
कनहों इसने कथे ,मेरू हर अचल हे चाल कहां पाय।
कनिहा ला देख के टूटजाही कके बिधि चिन्ताकरिस।
नीलडोर मजबूत जान रांवा रांवा ला ओमा फंसादिस।

4:- नहात नारी
1:-
कामिनी करे सनान ,करे सनान।
देखे ला हिरदे मा मारे पांचों बान।।
चूंदी गिरे जलधारा, गिरे जलधारा।
मंुहू चंदा के डर रोवय अंधियारा।।
दूद सुग्घर करेवा, सुग्घर करेवा।
अपन कुल मिलही,आने कोन देवा।।
तेकर संका भुजपास,संका भुजपास।
बांध दिस हे उढि़या जाही अगास।।
भीगे बसन तन लागे,बसन तन लागे।
मुनिमन के मानस मा मनमथ जागे।।
कहे विद्यापति गाब ,विद्यापति गाब।
गुनमति धनि ला पुनमत जन पाब।।
2:-
आज मोर बर सुभ दिन हेला।
कामिनी देखे सनान के बेला।।
चंदी ले गिरे जलधारा,जलधारा।
बादर बरसाय मोती के हारा।।
बदन पोंछय बनेकन बनेकन।
मांजय पोंछय सोन के दरपन।।
उहां उए हे दूद जोरा,दूद जोरा।
पलट बिठाए कनक कटोरा।।
साया नारा ढिल्ला करिस,करिस।
विद्यापति कहे बर बांचे नी रिहीस।।
3:-
नहाके जावत देखय गोरी।
कति ले आनिस रूप धनी चोरी।।
केस निचोय बोहाय जलधारा।
चूंदी गिरे मानो मोती के हारा।।
भींजे चूंदी हावे बड़ सोभा।
भंवरा कमल घेरे मधुलोभा।।
नीर निरंजन नयन राता।
सेंदूर मंडित मानो पंकज पाता।।
सजल चीर रहे पयोधर सीमा।
सोन नार मानो पड़गिस हीमा।।
ओ लुकाय बर चाहय देहा।
आप छोड़ दिही झन नेहा।।
इसने रस नी पाबो अउरा।
इसने लगे रोए गिरे जलधारा।।
4:- नहाके तीर आइस कमलमुखी राधा,सम्मुख देखिस कान्हा।
गुरू संग लाज धनि तरी मुंहू, कइसे देखय जाना।।
सखी हे अपरूप चतुरी गोरी।
जल्दी रेंगत सबो ले अघुवाइस, आड़ होके मुड़ी मोरी।।
मोती के हार तोड़ के फेंकिस, किहिस हार टूटगिस टोरी।।
सबोझन एक एकठन बीने संकेले, स्याम दरस लेवे धनी छोरी।।
नयन चकोर कान्ह मुख चंदा बर,करे अमरित रसपाना छोरी।।
दुनों दरसन कर रस परसाइन, कवि विद्यापति ला हे भान छोरी।।

5:- मया मिलन

1:- कान्हा के मया
1:-
रेंगत रेंगत नयन मिलाइन,मन मा मदन ला बान मरवाइन।
मुंहू ला देखत दुनों भुलाइन,गंवार चोर समय नी जनाइन।
रसिका संगिनी सबो रस जान,नागर नयन करिस सावधान।
राजपथ मा दुनों उलझ के रेंगिन, कहे सेखर दुनों सयानिन।
2:-
सजनी बने नी देखे तोला।मेघमाला मा बिजली नार सही,
हिरदे साल गयिस मोला।।आधा अंचरा खसकिस,आधा मुचमुचाय,
आधा आंखी मटकाय।।आधा दूद हेर,आधा अंचरा डार,
काम ले हौं मैंहर अकुलाय।।एक तन गोरा ओमा कनक कटोरा,
काम दिस मोरा मन टोरा।हार मा मोरो मन हारिस,
काम फंसाइस हावय आपन फांदा।मोती दांत ले ओंठ मिलात,
मीठ मीठ गोठियाथे ओतो भासा।।मोरअतकी दुख रह गिस,
घरि घरि निहारे पूरा नी होइस आसा।।
3:-
पवन उढि़याइस अंचरा ,देखे गोरी के संचरा।
नवा बादर के कोहरा,सोन बिजली के मोहरा।
गोरी ला देखे आजा,मया समाइस दिल राजा।
भुंइया मा रेंगे सोननारा,देखे मोला काम मारा।
अउ अपूरब देखे रे गोरी,कमल सही दुद जोरी।
फूले नी हावय ओ कली,मुंहू ला देखंे हाथमली।
4:-
कोन्होंनी देखिन मैंदेखे,हांसिस थोर।रतिहा होइस चांद अंजोर।
आंखी मटकाय माथा मा पडि़स।भंवरामन अगास छाता धरिस।
काकर सुन्दरी काकर पहचान।देखके आकुल होइस मो परान।
सोनकमल ले भंवरा खेद खार।चमक चली गोरी चकित निहार।
देखे फेर परगट मैं दूद केसोभा।सोनकमल देख नी होही लोभा।
आधा लुकाय अउ आधा बताय।दूद गघरी देखाके आसा बताय।
अमोल खजाना संदेस दिस मोला।बांचेनी हावय कछु रस तोला।
कहे विद्यापति दुनों के मन जागे।मदन फूल बान काहे नी लागे।
5:-
उघरिस तोर अंचरा गोरी,हाथ मा छाती ला लुकाय।
सोन सिव सबो सुग्घर तोर,दू कमल दस चंदा पाय।।
कतका रूप कहों बुझावे।
मोर मन चंचल लोचन,बियाकुल होवे अनते नी जावे।
अंचरा के आड़ मा तरी मुड़ी करके गोरी हे मुचमुचावे।
ओंधा कमल कांन्ति नी पूरय,देखत जुग जुग बीत जावे।
विद्यापति कहे सुन ओ गोरी,भुंइया नवा पांच बान आवे।
6:-
गिस कामिनी,गजगामिनी,हांसिस पलट निहारी।
जादूगर फूलधनुधरोइया,जादू करिस हवय नारी।
जोरी भुजा दुनों ला मोड़,छेंकिस हवे मुख सुग्घर।
चंपामाला काम पूजा बर,चढ़ाइस हवे सरद चंदर।
हिरदे अंचरा ले तोपिस,आधा दुद ला दिस हे हेर।
पवन हेरिस सरद बादर,परगट कर दिस हे सुमेर।
दरसन पाके जी जुड़ाइस,टूटिस हे बिरहा के डोर।
चरन महावर हिरदे आगि,दहकत हे सबो अंग मोर।
7:-
सहज सुग्घर तोर मुंहू रे,टेपरा हे उपर आंखी।
कमलमंदरस पी भंवरारे,उढ़े बर खोलिस पांखी।
ओती गिस मोर आंखी रे,जेती गिस हे वो नारी।
आसा परे नी छांड़े रे,जइसने सूम करा भिखारी।
इसारा कर आंखी मारे,डेरी टेपरा मा मिलाय दंग।
तीसर कोन्हों नी जाने रे,गुपुत कामदेव केलि रंग।
चंदन चुपरे हावय दूद रे,गला मा गज मोती हारा।
भसम लगाय हे षंकर रे, सिर मा गंगा जलधारा।।
डेरी गोड़ हे उठाइस रे,जवनी उठाइस लगिस लाजा।
काम के बान घायल रे, चाल लजाए आभी गजराजा।
रेंगत डगर मा देखिस रे,रूप ला देख के मन लागा।
ओ छन सब गुन गौरव रे,धीरज बांध फोर के भागा।
रूप देख के मन कूदिस रे,दूद सोन पहरी के मांझा।
ओई अपराध मा कामदेव रे,ओला उहां लेके हे बांधा।
8:-
डहर मा जात देखे मैं राधा।
ओइबेरा भाव ले परान पिराइस,चंदा देखे के रहीस साधा।
नलिनी साही अति सुग्घर नयन,टेढ़ा निहारत हावय थोरा।
संखरी मा बांधे हावय खंजन ला,दीठी लुकाइस हावे मोरा।
आधा मुख ससि हांसत दिखाइस,आधा तोपिस आपन बाहू।
कछु एक भाग बादर ले तोपिस,कछू ला खादिस हावे राहू।
ओ हाथ मा तोपिस दुनों दूद, तरी देख चंचल चित भोला।
मानो सोनकमल लाल सूरज के तरी सूतत हावय वो गोला।
कहे विद्यापति सुना मधु कान्हा,इ रस मा कोन दिही बाधा।
हास दरस रस सबो समझ गिन,नाल कमल हे आधा आधा।
9:-
जिहां जिहां दुनों पांव धरे।उहां उहां कमल झरे।
जिहां जिहां झलकय अंग।उहां उहां बिजुरी तरंग।
देखे हावों अपरूप गोरी।बैठिस हे हिरदे मा मोरी।
जिहां जिहां नयन बिकास।उहां उहां कमल परकास।
जिहां जिहां मंदहास संचार।उहां उहां अमरित बिकार।
जिहां जिहां कुटिल कटाख।उहां उहां मदनसर लाख।
गोरी के दरसन होही थोर।तीनों भुवन ओकर अगोर।
फेर फेर किए दरसन पाव।अब मोरे इ सब दुख जाब।
विद्यापति कहे कान्हा जान।तोर गुन देबब मोला आन।

2:- राधा के मया
1:-
ए सखि देखे एक अपरूप।सुनत मानबे सपना सरूप।
कमल पांव नख के माला।ओमा उपजे तरून तमाला।
ओमा लपटिस बिजुरी लता।जमुनातीर मा रेंगत जाता।
साखा सिखर मा चंदा पाना।ओमा हावय लाली पाना।
सुग्घर कुन्दरू दुनों बिकासा।जेमा सुआ थिरा बासा।
ओमा चंचल खंजन जोरा।ओमा सांपिन झपटे मोरा।
सखि रंगिनी कहे निसान।हेरिस मोर हरिस गियान।
कवि विद्यापति ये रस जान।सुपुरूस के मरम तहूं जान।
2:-
का लागि सखी चहक के देंखे,एकटक आंखी आधा।
मोर मन मिरिग मरम बेधे,बिसे बान मा बियाधा।।
गोरस बिनरस बासी बिसेस,छिंका छांड़े मैं गेह।
मुरली धुन सुन मोर मन मोहय,बेचाय होय संदेह।।
तीर तरंगिनी कदंब कानन,तीर जमुना के घाट।
लहुंट के देखे गिर गयोंव,चरन चीरीस कांट।।
सुकिरती सुफल सुन सुन्दरी विद्यापति तत सार।
कंसदलन गोपालसुन्दर मिलही तोला नंदकुमार।।
3:- मुंहू तरी करके मैंहर रहेंव,रोके रहेंव आंखि चोर।
पिया मुख छबि पीए बर कूदिन,जिसने कूदे चांद बर चकोर।।
उहां ले हटाके लाएं ओला,पांय मा धर राखे।
भंवरा मात के उड़े नी सकय,तभू फैलाए पांखें।
माधव बोले मधुर बानी,सुनके मूंदे मोर कान।
बैरी होइस अवसर ठान,काम धरिस धनु बान।।
पछीना ले बोहाइस पउडर,ठाढ़ होगिस सब रांवा।
चोली चिरा गिस,चूरी फूट गिस, मार दिस झांवा।
4:- सामसुन्दर इ डगर ले आत रिहिस,मोर लड़गिस आंखी।
बियाकुलता मा अंचरा नी संभाल सके,सब सखी हे साखी।।
कहा मोला सखी कहा मोला ,काहां करा हावे ओकर निवास।
दुगुना दरिहा होही तभू ले,आए हावों फेर दरसन के आस।।
का मोर जिनगी,का मोर जवानी,का मोर सियानी,दे तियान।
मदन के बान मा मूरछित हावों मैं,सहिओं आपन तन परान।।
आधा पांव धरत मोला देखिन हावय ,हामर नागर जन समाज।
मोर कठिन हिरदे फट नी गइस,मैंहर जाओं रसातल लाज।।
इनदर करा नयन मांगिहौं अउ गरून करा मांगिहौं पांखी।
नंद के नंदन कान्हा ला देख अइहों, मन मा मनोरथ राखी।।
5:- कान्ह दरसन के मोला रिहिस साध।देखे मा हागिस मोला परमाद।।
ओ बेरा अबुध अउ मोहाय रहें नारी।का कहे,का सुने,का बुझे,नी जानी।
सावन घन सही बोहाय दुनों नयन।धक धक धक धक करत रहे परान।
काबर ओकर सो होइस दरसन।दूसर हाथ मा दे देवे हौं आपन परान।
नी जानों का करही मोहन चोर।देखते देखत परान चोराके लेगिस मोर।
अतकी आदर करदिन मोर बर। भुलाय नी सकों करथों भुलाय बर।
विद्यापति कहे सुन ओ भोली नारी।धीरज धर मिलही तोला मुरारी।।
6:-
का कहो सखी दुख मोर, बेसुध बदन हे बंसी के सोर।
जबरन पहुंचिस कान आवाज।छन मा भागिस मोरे लाज।
पुलकित होगिस मोर तन बदन।नयन नी देखें कोन्हों देखे झन।
भावना के छुपाए मैंहर गुरूजन।तनबदन लुकाए मैंहर बसन।
आएं घर मंद मंद चरन ला राख ।बिधाता राखिस मोर लाज।
तन मन बिबस छूटिस नाड़ाबंधन।का कहे विद्यापति हे चिंतन।
7:-
काबर बेदना देत हावस मदना। हर नीहों अबला युवती जना।
भसम के लेप नी होय चंदन धूर।बाघछाली नी होयबसन चूनूर।
जटा के भार नी होय बालबेनी।गंगा नी हावय, होय फूल सेनी।
चंदन के बिन्दु मोर नी इन्दु छोटा।माथा मा आगी नी सेन्दूरफोटा।
नी मोर कालकूट ,सुग्घर कस्तूरी बार ।नाग नी होय, हे मोती हार।
विद्यापति कहत हवय सुन देव कामा।एक ठन दोख नाम मोर बामा।
8:-
मदन तोला का कहो जादा।
ओला देखे भर मा पीरा पात हावौं मैंहर गादा गादा।
जवनी नयन नी देखें दुस्टमनबर, डेरी नी देखें परिजन।
नयन के कोन्टा ले हरि देखय,होगिस अतका अपराधा।
गां बाहिर डगर रेंगत आतजात,नी देखों कहे तभू ले देखें कान्हा।
तोर फूल के बान कन्हों कोति नी जाय,आथे हमर हिरदे पंचबाना।।
9:-
एक दिन देख देख हांस हांस जाय।दूसर दिन नाम धरे मुरली बजाय।
आज नियर आके करिस परिहास।नी जाने गोकुल मा काकर बिलास।
सखी हावय ओ नागर सामराज।मूल बिना परधन मांगे बियाज।
परिचय नी करे ओहर आनें के काज।नी डराय अउ नी करे कछु लाज।
आपन ला निहारत देखे तन मोर। आपनेच ला पोटार होवत हावय बिभोर।
छन छन देखाय बिदग्ध कला।जादा उदार दे, होवय परिनाम भला।
विद्यापति कहे बेदना के हद हावय।सब समझत समझत नी समझावय।

6:- दूती

क:- माधव के दूती
1:-
धन धन रमनी धन जनम तोर।
सबझन कान्ह कान्ह करे,बियाकुल हवय भाव बिभोर।।
चातक चाहे पियासा बादर,चकोर चाहत हवय चंदा।
रूखवा मा नार सटाय हावय,मोरो मन लागय धंदा।।
केस छोर के तैंहर राखय,छाती मा बसन हवय आधा।
एला सुमर कान्हा होय आकुल,कह धनि एकर समाधा।।
हांसत कब तोर दांत दिखाय,हाथ ले हाथ जोड़ दे मोड़।
बिना देखे ओकर हिरदे समाए, देख के सखी दे पोटार।।
अतकी इसारा का हावय सुन्दरी,तैं करबे उचित बिधान।
हिरदे पुतली तोर ले,सून हे काया,कबि विद्यापति भान।।
2:-
सुन सुन ए सखी कहे न जाए।
राधा राधा कहे तन मन खोए।।
मया मा तोर हावय भाव बिभोर।
पुलकत कांपय तन ढरकय नोर।।
गदगद बचन कहत हवय कान्ह।
राधा दरस बिन निकलत हे परान।।
जब नी देखौं ओकर मैंहर मुख।
तब जीव भार काहां हावय सुख।।
तोर बिना आने इहां कोन्हो नी चाहे।
बिसारना चाहे तोला बिसार नी पाये।।
कहे विद्यापति नीए यहां बिबाद।
पूरा होही तोर जमो मन के साध।।
3:-
कांटा के मांझा मा फूल करे परकास।
भंवरा बिकल नी पावत हावय बास।।
भंवरा घूम आइस हावय सबो ठाम।
तेर बिना मालती नी हावय बिसराम।।
रसमती मालती तोला घरी घरी देखय।
पीना चाहे मंधरस जी के उपेक्षा करय।।
ओ मंधरस जीवी अउ तैं मंधरस रासि।
आपन मन गुन बूझ ले लेबे तैंहर थाह।
ओकर बध के अपराध लागे हावय चाह।।
कहे विद्यापति तब माधव पाए जी।
अधर अमरित रस जब पाए ओ पी।।
4:-
आज मैंहर देखें जमुना के तीर।
तोर बिना माधव होवत हे अधीर।।
कतक सौ रमनी,मन नीए आन।
करे बिख दाह समे जलदान।।
मदन भुजंग डसे हवय कान्ह।
बिना अमरित रस का करे आन।।
कुलबती धरम कांच के समतुल।
मदन दलाल हे तोर अनुकूल।।
बेचे लाने हवय नीलमनी हार।
जेला पहिन करे जाबे अभिसार।।
नीला चोली मा ढंके तोर देह।
जिसने बादर भीतर बिजुरी रेख।।
चारों दिसा चतुर सखी चले संग।
आज निकुंज मा कर रस रंग।
5:-
आज देखें मैंहर नंदकिषोर।
आप केलि बिलास सब छांड़,दिन रात रहत बिभोर।।
जे घरि तैं चकित हो देखे ,बिपिन तट चल दे मुख मोड़।
ते घरि ले मदनमोहन रूख तरी,घुंडलेे धीरज ला छांेड़।।
फेर तैं उसने नी देखबे,ओला नी आए चेतन राधा मोर।
सांप चाबही एक घा फेर नी चाबही नी उतरे बिख ओर।।
आप सुभ घरी आय हावय,गहना पहिन मिले जा ओ ओर।
अभिसार मा बल्लभ हिरदे बिराज जिसने मनी सोन डोर।।
6:-
परथम नरिहर गरब गंवाए ,जो गुनगाहक आए।
गए जोबन पलट नी आए,केवल रइबे पछताए।।
सुन्दरी अवसर फेर नी आए,कर कछु तैं समाधान।
तोर सही नारी बहुत दिन रहे,महूंला हवय भान।।
जोबन रूप तभे सोभा पाए,जब हावे मदन अधिकार।
दस दिन जाए मा अहू पराही,सकल जगत परिचार।।
विद्यापति कहे जुबती लाखें लाभ पाबे है दूद तुला।
दिन ऐसे आही तोर सखी,ग्वालीन के मही के मूला।।
7:-
ए धनी कमलिनी सुन हित बानी।
मया करबे ओला सुपुरूस जानी।।
सुजान मया हावय सोना समतुला।
जलाने मा सोन दुगुना होए मूला।।
टोरे नी टूटे मया हावय अद्भुत।
जिसने बढ़े कमलनार मा सूत।।
सबो हाथी मा मोती नीही मानी।
सबो कंठ मा नीही कोयल बानी।।
सबो समय नी रहे रीतू बसंत।
सबो पुरूस नारी नी रहे गुनवंत।।
कहे विद्यापति सुन ओ नारी।
मया के रीत आप सोच बिचारी।।

ख:- राधा की दूती
1:-
सुन मनमोहन का कहों मैंहर तोया। मुगधा रमनी तोर बिना लागे रोया।।
रात दिन जाग जाग जपय तोर नाम। थर थर कांपे परे सोए हवय ठाम।।
रात आधा ले अधिक जब होवय। लाज ला छांड़ के उठे तब रोवय।।
सखीगन सब जब परबोधय जाय। तापिनी के ताप हर बढ़ते जाय।।
कहे कबि सेखर ओकर उपाय। इसने रात बितत बिहान पहाय।।
2:-
माधव का कहो ओकर दसा बिपरीत।
तन हे जरजर सुन्दरी मन,चित बाढ़य वइसने पिरीत।।
नीरस कमल मुख हाथ सहारा,सखी मांझा बैठि लुकारा।।
नयन के नीर थीर नी बांधय,चिखलाकरे भिंया जो रोया।।
मरमक बोल बयन नी बोलय,तन अमास ससी सा खीना।
धरती उपर धनी उठ नी पाय,भुजा धरे धरी उठाय दीना।।
तपता सोन सही,काजर होइस तन,अति होइस बिरह आग।
कबि विद्यापति मन अभिलासा,कान्हा चलेकरे बर अनुराग।
3:-
घुंडले धरती,धरती मा धनी सोवय। छने छन सांस,छने छन रोवय।।
छने छन मुरछा कंइ परान। अतकी मा का होही गति देव जान।।
हे हरि देख ला ओ नारी। नी जी सके तुंहर छुए बिचारी।।
कान्हों कोन्हों जपे बेद नजर जान। कोन्हों नवगिरह पूजय जोतिस लान।।
कोन्हों कोन्हों हाथ धर पाड़ी बिचार।बिरह ले छीन कोन्हों पाए नीही पार।।
4:-
अबिरल नयन गिरे जलधारा। नव जल बिंदु कोन पाए पारा।।
का कहिबे सजनी ओकर कहानी। कहे नी जबानी देख ओकर जवानी।।
दूद दुनों के उपर आनन हेरू। चंदा राहु के डर चढ़े सुमेरू।।
आगि पवन उछरे चंदन बीख। कभू छन सीतल कभू छन तीख।।
चंदा सताए सूरूज सा जीनी। नीए जीवन मा एक मत तीनी।।
कछु उपचार मान नीए आन। ओकर बियाधी ओखद पंचबान।।
तोर दरसन बिन तिल भर नी जीव। भले कलामती पेंयूस पीव।।
5:-
लाख रूखवा,करोड़ो लता,युवती कतक हवय लेख।
सबो फूल मधु मधुर नीए,फूलथे कोन्हों फूल विसेस।।
जे फूल ला भंवरा नींद मा सुमरे,बास नी भुलाए पार।
जे भंवरा उड़ उड़ के बइठे,वोई हर संसार मा सार।।
तेज रचे हे नयन नूर तोर,सुन्दरी आप बचन मोर सुन।
सबो पहान तोर इच्छा करे हरि,आपन सराह तैंहर पुन।।
तोरेच चिन्ता तोरेच कथा,सेज मा हावय तोरचे चाव।
सपना मा हरि फेर फेर कहय,लेवे उठे लेवे तोर नांव।।
पोटार के तोला पाछू निहारे,तोर बिना सुन्ना कोरा।
अकथ कथा आप होइस अवस्था,आंसू निकले नयन कोरा।
राधा राधा जेकर मुख सुने ,ओ बाख दे देवे ओहर कान।
सिरी सिवसिंह रस जानय,कबि विद्यापति ला हवय भान।।
6:-
आसा के मंदिर मा रात गंवाए,सुख नी सूते संयान।
जब जहां जिसे देखय,ताहि ताहि तोरेच होवय भान।।
मालती सफल जीवन तोर।
तोर बिरहा भुवना घूमय,भटकय मधुकर भोर।।
जातकी,केतकी के सही कतका हे,सबो के रस समान।
सपना मा घलो नी निहारे,मधु के नी करे पान।।
बन उपवन कुंज कुटीर,सबो मा तोर निरूप।
तोर बिना फेर फेर मुरछा,अइसन हे मया सरूप।।
आमा मौर के गंध नी सहे सके,गुंजार भरा गीत नी गाय।
चेतना ला पापी चिन्ता करे आकूल,मजा मा सब सोहाय।।
जेकर हिरदे जहां रइथे,उहां वो पेलकर जाए।
चाहे जतका बांध के ओला राख,तरी मा पानी थिराए।।
इ रस राय सिवसिंध जानय,कबि विद्यापति ला हवय भान।
रानी लखिमा देवी के बल्लभ,हावय सबो गुन निधान।।

7:- छेड़-छाड़
1:-
हाथ धर के कर मोला पार।दिहां मैंहर अपूरब हार, कन्हैया।
सखी सब छांड़ के चल दिन।नी जानो कति गिन, कन्हैया।
हम नी जान तुंहर साथ।औघट घाट तैंहर जात, कन्हैया।
विद्यापति के हवय बान।गोपी तैंहर भज भगवान,कन्हैया।
2:-
कुंज भवन ले निकले रे ,रोके गिरधारी।
एक नगर माधव बसे हे,झन कर बटमारी।
छांड़ कन्हैया मोर अंचरा रे,फाटत नवसारी।
अपजस होवत जगत भर हे,झनि कर उघारी।
संग के सखी अघुवाइन रे,हम एकझन नारी।
बिजुरी चमके अगास हे,फेर रात अंधियारी।
कहे विद्यापति गाओ रे,सुन गुनमती नारी।
हरि के संग कछु डर नी हे,तैं परम गंवारी।
3:-
तेर गुन गौरव सील सुभाव।सुन के चढ़े रहें तोर नाव।
हठ न कर कान्हा कर मोला पार।सबले बड़खा हे परोपकार।
आई सखी सब साथ हमार।वो सबो निकल गिन हवे पार।
हमरो तो कान्हा तोरेच आस।जे करे स्वीकार झन हो उदास।
भला मंद जान कर परिनाम।जस अपजस दुनों रहे एके ठाम।
हम अबला कतक कहब अनेक।बिपत पड़े मा होथे परख बिबेक।
तैं पर नर मैं पर नार।कांपे हिरदे तोर सुभाव बिचार।
कबि विद्यापति गावे।
राजा सिव सिंध रूपनारायण।इ सबो रस ला पावे।
4:-
डोंगा डोले अहीरे,जीयत नी जा पावों तीरे,तेज नीरे रे।
उतराई नी लस मोरे,हांस हांस के का बोले,जी डोले रे।
काबर बिके मैं आपे,घेरलिस मोला सापे,मोरे पापे रे।
करौं पर उपहासे,परे उसी ले बिधि फांसे,नीए आसे रे।
नी बूझे अबूझ गंवारी,भज तैं मुरारी ,झन दे गारी रे।
कबि विद्यापति भाने,राजा सिवसिंघ रस जाने,नव कान्ह रे।
सीताराम पटेल
8:- मया के मंजरी
1:- सखी सिखोय राधा ला
पहिली चूंदी टिकली लेबे साज। चंचल आंखि लेबे काजर आंज।।
जाबे बसन जमो अंग ढांक लेबे। चाहना करिही तैंहर दूरिहा रइबे।।
मोड़ बोलबे सखी रबे लजाए। तिरछी नयन ले देबे काम जगाए।।
तोपबे दूद अउ दिखाबे तैं आधा। छन छन मा तैं साया ला बांधा।।
मान के कुछू करबे तैंहर भाव। रस राखबे मयारू घरि घरि आव।।
का सिखाहां महू तोला रस रंग। गुरू बन सिखाही तोला अनंग।।
कहत बिदियापति इ रस गाब।सहरिन सखी तोला सब भाव बताब।।
2:-
पहिली सुन्दरी कुटिल कटाख। जीव जोंख नागर दिही दस लाख।।
कोन्हों दे हास सुधा साही मीठ।जइसने बोहनी तइसने जाए बीक।।
सुन सुन्दरी मदन बियापार तैं। झन लुकाबे बिपारी आही तेला तैं ।।
रीस देखाबे भीतर रस राखय। संचरय रतन अबड़ कीमत होय।।
हिरदे के चाह ला बुतोबे नीही। बियाकुल गाहक मंहगा बिसोही।।
कहत बिदियापति सुन सयानी।सुहित बचन राखबे हिरदे मा लानी।।
3:-
सुन सुन सखी बचन बिसेस। आज हमू देवंव तोला उपदेस।।
पहिली बइठबे सय्या के तीर। देखे पिया मुंहू मोड़ पाही पीर।।
छुंही दूनों हाथ छेंकबे पानि। कलेचुप रइबे पिया करही बानि।।
जब सौंपिहा हाथ मा तोला। डरत कांपत धरबे उलटा मोला ।।
बिदियापति कहे मयारस के ठाठ। गुरू कामदेव तोला पढ़ाही पाठ।।
4:- सखी ला राधा कहय
छांड़ ये सखी, तोला परनाम। हम नी जाब बिलवा पिया के ठाम।।
बचन चातुरी हम कुछू नी जान। इसारा नी जानन नी बूझन मान।।
सखीमन मिलके बनाथे मोर भेस। बांधे नी जानव मैं आपन केस।।
कभू नी सुने हौं मै सुरत बात। कइसे मिलव मैंहर माधव के साथ।।
वो बड़नागर हे रसिक सुजान। हम अबला अति अलप हे गियान।।
बिदियापति कहे का बोलय तोला। आजे मिलेहर ठीक होही तोला।।
5:-
काबर डराथस चलिहा हामू संग।माधव नी छुअय सखी तुंहर अंग।।
इ रतिहा सखी फूलबन मा आज।कोन एकेझन फिरे सम्हरके साज।।
काम घोर धनुस धरे हाथ आपन।मारत हावय बान जान बालाजन।।
एकरे बर चली सखी भीतर कुंज। जिहां रहे श्रीहरि महाबली पुंज।।
एती आइस धनि श्रीहरि के तीर।पूरा खाइस बल्लभ सुख के खीर।।
6:-
छांड़ मन नी कर कुछू तरास। डरा झन सखी चल पिया के पास।।
कहों दूरिहा कर दूरमति तोय। बिना दुख सुख कभू नी होय।।
तिल आधा होही जनम भर सुख।इकरे बर धनि काबर होत बिमुख।।
तिल एक मूंद दे दूनों नयान। रोगीमन करथे जइसने ओखद पान।।
चल चल सुन्दरी कर सिंगार। बिदियापति कहे एही बने बिचार।।
7:- सखी सिखोय माधव ला
हमनला देखके कति भेस करथे, हमनला देखके तन ला ढांक जाथे
आज सुरत सिंगार बर धनि आइस,हामर ले चिपकथे अउ कांप जाथे
सुन निस्चय करत कहत हन बिहारी
सकल काज ला हामन समझ गे हन, नी बूझे हन हामन अंतर नारी
नवा काम फेर हावा उदबसिया, गुन ला मन बस कर रीस दिखाथे
बइरीसाही दुरगति कर फेर हांसथे,आपन मनोरथ सिध जो होत पाथे
अन्तरमन ले तुंहला अबड़ चाहथे, बाहिर परगट नी करय, वो डराथे
कहे कबि सेखर करिहा सहज बिसे , केलि बिलास हर अबड़ भाथे
8:-
सुना सुना सुग्घर कन्हाई। तुंहला सौंपत धनि राई।।
कमलिनी कांेवर काया। तैं भूखा भंवरा बाया।।
सहज करिहा मंधरस पान। भूलाहा झन तैं पांचबान।।
समझा बूझा के दूद छूहा। हाथी कमल साही नी करिहा।।
गनत मोतीयन के हार। छल ले छूहा छाती भार।।
नी बूझे हवय रति रस रंग। छन मा राजी , छन मा भंग।।
सिरीस फूल जइसने तनु। थोरे सहही वो फूल धनु।।
बिदियापति कबि गांय। दूती परत हवय पांय।।
9:-
पहिली मिलन अउ भूखाय अनंग। धनि बल जान करिहा रति रंग।।
हठ नी करिहा अबड़ आरति पाए। बड़ भूखर्रा दूनों हाथ नी खाए।।
चेतना कान्हा आथे काम सवा। को नी जाने महावत हाथी नवा।।
तुंहर गुन ला समझात बुझात। पहिली इहां लाय हावों बतात।।
हठ नी करिहा रति परिपाटी। कोंवर कामिनी बिगड़ जाती।।
जभे रभस रहे तभे बिलास। बिमति बूझबे झिन जाबे पास।।
एक घ छांड़ नी धरबे बाहू। उगल के चंदा नी लीले राहू।।
कहय बिदियापति कोंवर कांति। कौसल सिरीस सुमन भंवरा भांति।।
10:-
बूझिहां छैलापन मैंहर आज।
राधा मनी रतन, आने हावों जतन, छल सबो रमन समाज।।
सिरिस कुसुम जानि, बड़ सुकांेवर धनि, आलिंगन दिरिढ़ अनुराग।
निरभय करा केलि, कोन नी बूझे गेलि, भंवरा भार नी टूटे मंजरी।।
पिरीत बोलिहा, नियर बइठाहा, नख ले कोकमिहा, आनिहा कोरा।
नीही नीही करिही धनि, कपट भुलावा जानि,यदि किही कातर बोल।

9:- पिया मिलन
1:-
सुन्दरी चली पिया के घर ना। चारों लंग सखी बइठे घेर ना।।
जात लागे तोला परम डर ना। जइसे ससि कांपे राहु डर ना।।
जात जात ह हार टूट गिस ना। भूसन बसन मैला हो गिस ना।।
रो रो के काजर बोहा गिस ना। डर मा संेन्दूर हर मेटा गिस ना।।
कहे जयराम गाओ बजाओ ना। दुख सहि सहि सुख पाओ ना।।
2:-
कौतुक चले, भवन को सजनी गे, संग दस चैदस नारि।
मांझ मा सोभित सुन्दरी सजनी गे, जे घर मिलही मुरारि।।
गहना सोरा सिंगार करे सजनी गे, पहिरे बने रंग के चीर।
सकल मन काम उपजे सजनी गे, मुनि के मन नीए थीर।।
नील बसन तन घेरे हे सजनी गे, सिर ले हे घंूघट सारि।
तीर तीर पिया के तीर सजनी गे, संकुचाय कोरा मा नारि।।
सबो सखी घर करीन सजनी गे, घर आइन सबो झन नारि।
हाथ धरिस पिया तीर करिस सजनी गे, देखे बसन उघारि।।
सोके पिया आघू बोले सजनी गे, करे बर लागिस सबिलास।
नवा रस रीति पिरीति के सजनी गे, दुनों मन परम हुलास।।
बिदियापति कबि गाओ सजनी गे, येहर हवय नवा रस रीति।
उमर दुनों के हे ठीक सजनी गे, दुनों के मन परम पिरीति।।
3:-
ये सखी,ये सखी, मत ले जाव साथ। हम नान बालिका आकुल हे नाथ।
एक एक सखी गिन बहाना बनाय। बजर किवाड़ पिया दिन लगाय।।
ओइ अवसर काम जागिस हे कन्त। चीर संभारत जीव के होइस अन्त।।
नीही नीही करय नयन ढरे झोर। कंइचा कमल ला भंवरा करे झिकझोर।।
जइसने डगमगाथे कमलपान नीर। उइसने डगमगात हे राधा के सरीर।।
कहो बिदियापति सुनो कबिराज। आगि जलाथे फेर आगिच आथे काज।।
4:-
कतका अनुनय खुषामद बुझाय। पिया के घर सखीमन सुताय।।
बिमुखि सुतय धनि समुखि नी होय। भागे दल ला फिराय कोय।।
बालम बेसनी, बिलासिनी छोटि। भेल नी मिलय देवा हेम कोटि।।
बसन ढांपे बदन अपन लुकाय। बादर तरी चंदा परगट नी होय।।
भुज जुग दबा जीव जो सांचा। कुच कंचन कोरी फल हे कांचा।।
तीर नी आए, करे लेबर कोरा। हाथ ले हाथ छेंकके हाथ जोरा।।
अतक दिन सैसव रिहिस साथ। आप भए मदनमोहन पढ़ाही पाठ।।
गुरूजन परिजन दुनों मेर नेबार। मोहर बंद हे आभी मदन भंडार।।
कहय बिदियापति इ रस के भान। राय सिवसिंघ लखिमा बिरमान।।
5:-
सखी परबोध सयनतल लानि। पिया हिया हरसि धरे ओकर पानि।।
छुअत बाला मलिन होगिस गोला। चंदा किरन मलिन कमलिनी होला।।
नहीं नहीं कहे नयन झरे नीर। सूत जाथे राधा सय्या के तीर।।
पोटारे निबिबंध बिना छोर। हाथ छुए छाती इच होइस थोर।।
अंचरा ले बदन करे झांप। थिर नी रहे थर थर कांप।।
कहे बिदियापति धीरज सार। दिन दिन मदन के होय अधिकार।।
6:-
परथम गिस धनि प्रीतम पास। हिरदे जादा लाज डर तरास।।
ठाढ़े आघू धनि अंग नी डोले। सोन मूरती साही मुख नी खोले।।
दूनों हाथ धर पिया तीर बिठाइस। रूठिस धनिस अपन बदन सुखाइस।।
मुख ताके एकटक भंवरा तोप ला। गोद मा लेलिस कमलमुखी ला।।
बिदियापति कहे सुमति ला देवा मति। रस बुझे हिन्दुपति हिन्दुपति।।
7:-
जतकी आईस धनि सयन के तीर । पांय ले कोकड़े भिंया गला तरी कर।।
सखी हे पिया तीर बैठिस राहि । तिरछी नजर कर देखथे कति कांहि।।
नवीना बने नारि पहिली पिया मेली। अनुनय करत आधा रतिहा होलि।।
हाथ धर बालम बइठाइस कोरा। एक पइंत कहे धनि नहीं नहीं बोलय।।
कोरा करत मोड़े सबो अंग। परबोध नी माने जइसने बाल भुजंग।।
कहे बिदियापति नागरी रामा। अन्तर जवनी बाहिर बामा।।
8:-
चूमे के खानि तरी कर दिस माथ। सहे नीही पीरा पयोधर हाथ।।
खुल्ला नीबी हाथ धरे जात। सूली आई मदन, धरे कोन भांत।।
कोंवर कामिनी नागर नाथ। कोन परकार होय केलि निरबाह।।
थन कली ला फेर हाथ धर लिस। कइंचा बोइर लाल होगिस।।
ओकर चाहत नखछत बिसेस। टेपरा आगिस चंदा के रेख।।
ओकर मुख सौ लोभ भर हेरि। चंदा लुकाए बसन कतका बेरि।।
9:-
जतकी बेरा हरि चोली दिन छोर। कर उपाय धनि करिस अंग ला मोड़।।
आंेई बेरा के कहिनी कही न जाय। लजीली सुमुखि धनि रहे लजाय।।
हाथ नी बुताय दूरिहा जरे दीप। लाज नी मरे नारी कठ जीव।।
सहे नी पाय धनि जोर से पोटार। कोंवर हिरदे मा चिन्हा पडि़स हार।।
कहे बिदियापति ओ समे के अनुमान। कोन कहत सखी कब होही बिहान।।
10:-
ए हरि बल मा यदि छूबे मोला। तिरी बध के पाप लागही तोला।
तैंहर रस आगर हावस ढीठ। हम नी जानब रस झार हे कि मीठ।।
रस परसंग उठाता मैं जाथों कांप। बान हरिनी जइसने जाथे झांप।।
असमय आस नी पूरा होय काम। भल जन करे नी बिरस काम।।
बिदियापति कहे बुझगे सच्चा। फर नी मीठा होय कंइचा।।
11:-
रतिरस बिसारद तैंहर राख मान। बाढ़ही जोबन तोला दिहूं दान।।
आभी कमती हे रस, नी पूरे आस। थोरे पानी मा नी जाए पियास।।
थोर थोर रति यहीच चाहे नीति। परेवा चंदा कला सम रीति।।
नानू पयोधर नी पूरे पानि। नी देवा नख रेख हरि रस जानि।।
कहे बिदियापति कइसन हे रीति। कंइचा दरमी बर ऐसन प्रीति।।
12:-
नीबी बंधना हरि काबर दे छोर। इसने मा का होही मनोरथ पूर तोर।।
हेरने मा कोन सुख नी बुझों बिचारी। बड़ तैंहस ढीठ बुझें बनमाली।।
हमर सपथ जो हरिहा मुरारी। धीरे धीरे तब हम पारबो गारी।।
बिहार ले मतलब हेरे के का काम। ऐसन ला नी सहे हमर परान।।
कहूं नी सुने इसने परकार। करे बिलास अउ दीया लेे बार।।
परोसी सुनहीं करही निनास। धीरे धीरे रमो सखीजन रहे पास।।
कहे बिदियापति एही रस जान। राजा सिवसिंघ लखिमा बीरमान।।
13:-
सुनु सुनु नागर नीबी बंध छोर। गंइठ मा नीही सुरत धन मोर।।
सुरत नांव सुनत हम आज। नी जानों सुरत करे कोन काज।।
सुरत खाज करब जिहां पाब। घर मा हे की नीही लिहां सखी सुझाब।।
एक घरि माधव सुन मोर बानि। सखी संग खोजि मांगि देब आनि।।
बिनती करे धनि मांगे अब जांब। नागरि चातुरि कहे कबि कंठ बनाब।।
14:-
हरि हाथ हिरनीनयनी तन सौंप। सखिगन गिन आने ठाम।
अवसर पा धनि हाथ धरे नागर। बिनती करे अनुपाम।।
हिरनीनयनी धनि रामा।
कान्ह सरस परस संभासन। मेटय लाज ला धामा।।
सुखद सेज मा नागरी नागर। बइठे अउ रति साधे।
सब अंग चमे रस बढ़ाय बर। थर थर कांपे राधे।।
मदन सिंघासन करे आरोहन। मोहन रसिक सुजान।
भयगढ़ टोड़ीस थोरे संतोस। राखिस सकल सम्मान।।
कह कबि सेखर जादा भूख मा। करबे जब थोरे अहार।
अइसन दूनों मन तड़फे घरि घरि। उपजे अधिक बिकार।।
15:-
सुरत खतम सूते बर नागर, पानि पयोधर राख।
सोन संभू जान पूजे पुजारी, धरए कमल झांप।।
हे सखी माधव केलि बिलास।
मालती रमे भंवरा ओला अगोरे, फेर रति करे के आस।।
बदन हे मिले सटाय हे मुखमंडल, कमल मिले जइसने चंदा।
भंवरा अउ चकोर दूनों अलसाय, पीके अमरित मकरंदा।।
कहे मंत्री अमीकर सुनो मथुरापति, राधा के चरित हे अपार।
राजा सिवसिंघ रूपनारायन, सुकबि सेखर के हावय कंठहार।।
16:-
हे हरि, हे हरि सुना कान भरि भरि, अब नीए बिलास के बेरा।
गगन नछत्तर रिहिन लुका गिन, कोयल कूह कुह के करे फेरा।।
चकवा मोर सोर करे चुप होगिन, उठा मलिन होगिस चंदा।
नगर के गाय चरे जात हवें, कुमुदिनी के बस मा मकरंदा।।
मुख मा पान के रंग मलिन होइस, अवसर भल नीए मंदा।
बिदियापति कहे एको नीए ठीक, जग भर करथें निंदा।।
17:-
रतिहा बीत गिस फूले सरोज। घूम घूम भंवरी भंवरा खोज।।
दीया मलिन हो अंबर मा रात। जुगति ले जानत हों होत प्रात।।
अब छांड़ा परभू मोला नी सुहाय। फेर दरसन होत मदन दुहाय।।
नागर राख नारि मन रंग। हठ करे ले होय परभू रस भंग।।
तत करिहा जत फबहे चोरी। परजन रस लेके नी राख अगोटि।।

10:- काकर करा कामिनी करे केली
1:-
आज बिपरीत धनि देखत हन तोला। बुझा नी पात हावे संसय मोरा।।
तोर मुखमंडल पूनम के चंदा। का लाग गिस हावे ऐसन छंदा।।
नयन जुगल मा काजर बिछार। अधर नीरस करे कोन गंवार।।
पोठ पयोधर नख रेख दे हवे। सोन कलस जइसने टूट गिस हवे।।
अंग बिलेपन कुंकुम भार। पीताम्बर धरे हें एकर का बिचार।।
सुजनि रमनि तैंहर कुलवती कहाथस। काकर संग भोग करे हिरदे सधास।।
कामिनी कहिनी कहे संबाद। कबि सेखर कहे नीहोय परमाद।।
2:-
आज देखत हों अउ काल देखे रहेंव, आज काल मा कतका भेद।
सैसव बेचारा सीमा छाड़य, जोबन बांधय कन्हिया फेद।।
सुग्घर सोनाली मूरती गोरी।
दिन दिन चांद कला साही बांढ़य, जोबन सोभा तोरी।।
बाल पयोधर होइस गिरि के सहोदर, अनुपमा अनुराग।
कोन पर पुरुस परस पाइस, जो तन जीते पराग।।
धीरे हांस टेढ़ी करिस नजर, सुग्घर टेपरा करिस बिभंग।
लाज के खातिर आधू नी देखय, आइस नयन मा तरंग।।
बिदियापति कबि ये गाए, नवा जोबन नवा कन्ता।
सिवसिंघ राजा ये रस जाने, मधुमती देवी सकन्ता।।
3:-
स्यामा सुन्दरी काबर मलिन तोर देह। का काकरो से होइस हे नेह।।
उसनिंदा लागत हे आंखि तोर। कोंवर बदन कमल रूचि के चोर।।
नीरस धूसर करे अधर प्रवाल। कन्हो कुबुद्धि लुटिन मदन भंडार।।
कोन कुमति कुच नखछत देइस। हाथ संभू भगन होय गइस।।
दमन लता साही तन सुकुमार। फूटे चूरी टूटे गला के हार।।
केस के फूल तोर सिर के सेन्दूर। महावर तिलक हो गइस दूर।।
कहे बिदियापति रति अवसान। राजा सिवसिंघ ई रस जान।।
4:-
ए धनि ऐसन कहंव मैंहर। आज कैसन दिखत हस तैंहर।।
नयन बयन आने भांति। कहत कहिनी भूलाय सही पांति।।
लाल अधर बेरंग होइली। काकर करा कामिनी करे केली।।
परगट होइस तोर गुपुत काज। आप कहे मा काकर लाज।।
पोठ पोठ जांघ कांपे तोर। मदन मथे ओला जोर जोर।।
गोरा पयोधर लाल होइस गात। नखछत अंचरा मा ढांके हाथ।।
अमरित सागर तैंहर हस राधा। मुकुन्द हाथी बिहार बर साधा।।
कहे कबि सेखर झन कर लाज। कह न कहिनी सखी समाज।।
5:-
आज देखे सखी बड़ अनमनी सही, बदन मलिन सही तोर।
बुरा बचन तोला कोन कहिस हे काबर नी कहत हस सोर।।
आज रात सखि कठिन बीतीस हे, कान्हा रभस करिस गंदा।
गुन अवगुन परभू एको नी गुने, राहू ग्रसे जइसने चंदा।।
अधर सुखादिस केस उझारदिस, पछीना मा टीका बगरगिस।
बालिका बिलासिनी केलि नी जानो, भाल सेन्दूर उढि़यागिस।।
कहे बिदियापति सुन ओ बने जुबती, ओला काबर दे बाधा।
जो कुछू परभू दिन तेला अंचरा बांध धर लेबे, सखी सब करे उपहास।।
6:-
नी कर नी कर सखि मोला अनुरोध। का कहों हामू तोला परबोध।।
कमती उमर मोर कान्हा हे तरुना। अति लाज डर अति करुना।।
लोभे निठुर हरि करिस केली। का कहों रतिहा जतका दुख देली।।
हठ ले करिस रस मोर हरिस गियान। नीबी छोरिस कतका बेरा जान।।
दिस पोटार भुजा जुग चांप। ओइ समे हिरदे मोर गिस कांप।।
नयन जल गिराके मैंहर रोंय। तभू ले कान्हा सांत नी होय।।
अधर रस कर पान करिस मंदा। राहू ग्रस के रात छोड़य चंदा।।
कुच दूनों ला दिस नख के प्रहार। सिंह जइसने हाथीमाथ करे बिदार।।
कहे बिदियापति रसबती नारी। तैंहस चतुरा तभे सोभायमान मुरारी।।
7:-
का कहों हे सखी आज के बिचार। ओ कान्हा मोला करिस सिंगार।।
हांस हांस के परभू पोटार लेवें। कामदेव अंकूर फूलगिस हवे।।
अंचरा छुअत पयोधर देखें। जनम पंगु मानो सुमेरू भेंटे।।
जब नीबी बंध खिसकाइन कान्हा।तोर सपथ हम कुछू नीही जाना।।
रति चिन्हा जान जाने कठिन मुरारी। तोर पून जीएं हम नारी।।
कहे कबि रंजन सहज मीठ राहि। नी कह सुधामुखी गईस चतुराई।।
8:-
पोट पोटारे पीरा पाय मदन। उबर आय सखी पूरब पून।।
टूट के छिटकगिस मोती के हार। सेन्दूर लोटाइस लाल प्रवाल।।
सुग्घर कुच जुग नखछत भरी। जइसे गज कुंभ बिदीरन हरी।।
अधर दांत चाबे जीव मेरा कांपे। चांदमंडल जइसने राहू झांपे।।
सागर ऐसन रात नी पांए पार। कब उए मोर हित मा सूरजार।।
मैं नी जाओं सखी आप पिया के ठाम। भले ही मोला मार डारे काम।।
कहे बिदियापति छोड़ भय लाज। आगि मा जरबे फेर आगि के काज।।
9:-
का कहों हे सखि रात के बात। मानिक पडि़स कुबनिक के हाथ।।
कांच अउ कंचन के नी जाने मूल। गुंज अउ रतन करे समतूल।।
जे कुछू कभु नीही कला रस जाने। नीर अउ खीर करे एके समाने।।
ओकर सो काहां पिरीत रसाल। बेंदरा के गला मा मोती के माल।।
कहे बिदियापति इस रस जान। बेन्दरा के मुंहू मा नी फोबहे पान।।
10:-
पहिली परिचय परेम संकेले, रतिहा आधा बीतिस।
सकल कला रस बने नी होइस, मोर लाज बैरिन होइस।।
सखी सखी पछतावा रह गिस बहुत।
ओकर सुबंधु ले कहा पठावा, जइसने भंवरा होय दूत।।
छन चीर धरे छन केष धरे, करे चाह कुच भंग।
एकेझन नारि हम कइसे परेम निभाउं एके बेर सब संग।।
ओई बेरा बिनती करत कतकी हवे कहिन कहे बर चाहिन हाथ जोर।
नवा रस रंग भंग होगिस सखी, अंत तक कुछू नी मुख ले फूटिस बोल।।
कहे बिदियापति सुन बने जुबती, परभू अभिमत अभिमान।
राजा रूपसिंघ रूपनारायन, लखिमा देवी बीरमान।।

11:- चंदा के चोर
1:-
उठ उठ माधव काबर सूतत मंद। गरहन लागिस हे पूनम चंद।।
हार अउ रांवावली जमुना गंगा। त्रिवेली त्रिबेनी बिप्र अनंगा।।
सेन्दूर टीका सूरज सम भास। धूसरहा मुख ससि नीए परगास।।
इही समे पूजो पंचबान। होय उगरास देह रतिदान।।
कोयल भंवरा गांव कहत बोल। अलप अबसर दान अतोल।।
बिदियापति कहे हो रस भान। राजा सिबसिंघ सब रस निधान।।
2:-
त्रिवली नदिया पुर दुरगम जान, मदन पाती पठोए।
जोबन दलपति तोला लड़ाई लागिन, बसंत दूत पठोए।।
माधव आप देखा साजे हे बाला।
जो सैसव तोला सताए हे, वो सबो ठाढ़े उलटा पाला।।
कुंडल चक्का टीका अंकुस हे, चंदन कवच अभिरामा।
नयन धनुस कटाक्ष बान हे, साजे हवय बने बामा।।
सुग्घर साज के रनखेत आइस, बिदियापति कबि भान।
राजा सिबसिंघ रूपनारायन, लखिमादेवी परमान।।
3:-
अंचरा मा चेहरा लुकाले गोरी। राजा सुनिस होगिस चंदा के चोरी।।
घर घर पहरी भले बने जोगि। आप दोख लागत हवय मोहि।।
कहां लुकाही चंदा के चोर। जतकी लकाही ततकी अंजोर।।
हांस सुधारस झन कर अंजोर। बनिया बिपारी धन बोलही मोर।।
हांेठ के तीर दांत करे जोती। सेन्दूर के तीर बिठाही मोती।।
कहे बिदियापति हो निरसंक। चांद मा लगे हवय भेद कलंक।।
4:-
सुग्घर मुख सिरी बने धनि तोर। नी कहे तोला चंदा के चोर।।
देख के हट जा नी देख काहू। चांद भरम मा मुख गरसत राहू।।
धवल नयन तोर जान तलवार। तेज तरल ओकर कटाक्ष धार।।
भली निहारे गुन फांस जोर। बांध ले जाही तोला खंजन बोल।।
सागर सुधा चोराइस चंदा। ता लागिस राहू करा बड़ द्वन्दा।।
कहे बिदियापति हो निरसंक। चांद मा लगे हवय भेद कलंक।।
5:-
संझा के बेरा उइस नवा चंदा, भरम होइस हावय सबिताहू।
कुंडल चक्का देख डर मा लुकाइस, दूरिहा ले देखथे राहू।।
मुंहू मा हाथ राख के झन बइठ रे।
कतका पहन ले धरबे लुकाई, तोर मुंहू अउ सुग्घर लागे रे।।
लालकमल मा कमल बइठे हे, नीलकमल पंखुरी तरि तरि।
तिल के फूल ओकर मांझा देख, भंवरा आत हे घरि घरि।।
पानि पल्लव गात अधर कुंदरू सम, दांत दरमी बीज तोर।
सुआ दूरिहा ले देखे तीर नी आय, भरम टेपरा धनुस तोर।।
6:-
बड़ चतुरा हस तैंहर राधे। बिसाए कान्हा लोचन आधे।।
बसंत तौलवइया नी हे परमादी। मदन मांझा ठीक मूलबादी।।
द्विज पिक लेखक मैस मकरंदा। कलम भंवरा पांव साखी चंदा।।
बहि रति रंग लिखापन मान। श्री सिबसिंघ सरस कबि भान।।

7:-
सोन गढ़ हिरदे हाथीसार। जे थिर खम्भा पयोधर भार।।
लाज सांखर धर दिरिढ़ लुकोर। आने बचन सुन झन देबे छोर।।
दूर कर अउ सखी चिन्ता आन। जोबन हाथी के करा समधान।।
मदन मदजल ले जइसने बौराय। प्रीतम आंकुस ले धर लाय।।
जाबे नीही सुमत तबहे अगोर। छोरे मना करे मा चुराही चोर।।
कहे बिदियापति सुन मतिमान। हाथी महावत नयथे को नी जान।।
8:-
पइसा देबे पाबे नीही छाछ। घी उधारी मांगथे बिहारी मांछ।।
निवास नी पाय अउ मांगथे खाना। नर के जाति लोभ के खजाना।।
का कहों आज के कौतुककिस। खीखठान मा कनु के गौरव गिस।।
आइस बैठिस पाय हावय पंइरा । सेज के बात कइथे कइरा।।
चिरहा सरकी पलंग के चाह। अउ कहों कतका गोपीरमन नाह।।
कहे बिदियापति अहूमन गुनमंत। रिसी सिबसिंघ लखिमादेवी कंत।।

12:- बिजली संग बादर
1:-
धनि धनि चल चल अभिसार।
सुभ दिन आज राज पाइस मदन, मया की रीति बिस्तार।।
गुरूजन नयन अंध करि आये, बांधव अंधियार बिसेस।।
तोर हिरदे फरकत डेरी कुच लोचन, बहुमंगल करही लेख।।
कुलबती धरम करम भय अब सब , गरू मंदिर सब राख।
मयारू संग रंग कर चिर दिन,फले मनोरथ साख।।
बादर संग बिजली बिजली संग बादर, करधन गरजन जान।
रस बरसे फूल सबो साखी, मंजूर दूनों के करही गुनगान।।
2:-
कह कह सुन्दरी नी कर बहाना। आपन ला काकर बर हे सजाना।।
कस्तूरी के करे हस अंगराग। कोन नागर के हावय जागिस भाग।।
उठथस बूड़ती लंग देखथस। दिन कब बूड़ही घरि घरि पूछथस।।
सांटी उपर कर करे हस थीर। पहिने हस अंधियार कस चीर।।
उठय बइठय हांसय छांडय़ सार। तोर मन के भाव सघन अंधियार।।
कहे बिदियापति सुन बने नारी। धीरज धर मन मा मिलही मुरारी।।
3:-
माधव धनि आइस कोन भांति।
मया सोन परखथे कसौटी, भादों के अमास की राती।।
गगन गरजे घन तभू नी गिस मन, बजर नी सकिस मुख बंका।
अंधियार अंजन जलधर धो न देवे , ते उपजत हावय संका।।
भागत सांप के सिर मा नाचे तोपे सांपमनि दीप।।
जान सजल घन ले देवे चुम्मा, तैंहर मिले बर आय हस समीप।।
नारी धन रतन नागर बरजरतन, रस अउ गुन के पहिने हार।
गोबिन्द चरन मन कह कबिरंजन, सफल होय अभिसार।।
4:-
चंदा झन उबे आज के रात। पिया बर लिखिहा पठोइहां पांत।।
सावन के संग हम करब पिरीत। अब अभिसारक रीत।।
फेर तोर राहू बुताही हांसी। पीबे झन उगलबे सीतल ससी।।
कोटि रतन जलधर तैं ले ले। आज के रात धन तम दे दे।।
कहे बिदियापति सुभ अभिसार। भलजन करथें पर उपकार।।
5:-
मोला हरि ले मिले जाना हे, मनोरथ करे बर पूरा ।
घर मा गुरूजन नी सूते हे, अउ चंदा उइस इ बेरा।।
च्ंादा भली नीए तोर रीति।
एकरे बर तोला कलंक लागिस, कुछू नी गुनस भीति।।
जगत नागरी मुख जितिन जब ता, गगन चल दे हारी।
उहां राहू के ग्रास मा परगे, देवंव तोला का मैं गारी।।
एक मास बिधाता तोला सिरजे, देवे सकला अउ बल।
दूसर दिन फेर पूरा नी रहस, तैंहर इहिच पाप के फल।।
कहे बिदियापति सुन तो जुबती, झन कर चंदा के साति।
दिन सोरह चंदा आवत हवय, फेर तोर हवय भली राति।।
6:-
गगन अब घन मेघ दारुन, सघन बिजली चमकय।
बजरपात सबद झन झन, हवा अति तेज बोहाय।।
सजनी आज दुरदिन के बेला।
कंत हमर बड़ पहिली ले अगोरत हें, संकेत कुरिया मेरा।।
चंचल बादर बरसे झर झर, गरजे धन घनघोर।
साम नागर एकेझन कइसन, डगर देखंय मोर।।
सुमिरन कर तन बस मा नीए, अथिर थर थर कांपय।
इ बेर गुरूजन नयन दारुन, घोर अंधियारी तोपय।।
तुरत फल अब का बिचारत हस, जिनगी मा बढ़ आघू सार।
धनि धनि चल चल अभिसार, झन कर मैंहर बिघन बिचार।।
7:-
रतिहा काजर बने फुंकारे भीम भुजंग, बजर परे दुरबार।
गरज डरय मन बड़रोस बरसे बादर, संसय परे अभिसार।।
सजनी बचन छांड़त लागे मोला लाज।
जे होना हे हो जाय सबो हे स्वीकार, साहस मन दे आज।।
अपन अहित समझ के कइबे संतोस, हिरदे नी पाए छोर।
चंदा हिरन ला धरे करथे राहू ग्रसे सहन, मया पराजय थोर?।।
चरन चघे सांप ला धन्य मानथे धनि, नुपूर नी करे षोर।
सुमुखि पूछ हों तोला सच कइबे मोला, मया कतक दूर छोर।।
ठाम रइथों घूमि छूके चिन्हथों भूमि, दिसा डगर उपजे संदेह।
हरि हरि सिव सिव हेरे जाए जीव, जेमा नी उपजे सनेह।।
कहे बिदियापति सुन सुचेतनि, जाय बर झन कर बिलंब।
राजा सिबसिंघ रूपनारायन , सकल कला अवलंब।।
8:-
हे सखी, आज जइहां मैंही।
घर गुरूजन नी डरांव, बचन चूकों नीही।
चंदन लान लान अंग लगाहां, भूसन पहनों गजमोती।
बिना काजर दूनों आंखि, धरही धवल ज्योती।।
धवल बसन तन पहिरके, जइहां मैंहर मंदा।
जइहों सबो गगन उए, सहस सहस चंदा।।
नी मैं कोनो ला देखे बर रोकिहां, नी मैं करों ओट।
अधिक चोरी पर संग होथे, इहीच सनेह सरोत।।
कहे बिदियापति सुन जुबती, साहस सकल काज।
बूझे सिबसिंघ इस रस रसमय, रमथे देवी समाज।।
9:-
परथम जोबन नव, गरू मनोभव, छोटी मधुमास रजनी।
जागे गुरूजन गेह, राखे चाहे नेह, संसय परे सजनी।।
नलिनीदल नीर, चित न रहे थिर, तत घर तत हो बाहर।
बिधाता मोर बड़ मंदा, उग झन जाय चंदा, सुत उठ गगन निहार।।
पथ पथिक संका, पग पग धरे पंका, का करथिस ओ नव तरूनी।
चलिहा कहे धसि, फेर फेर फंसि, जाली मा छेकाय हरिनी।।
सखी सखी कोन बदन तहू जान।
निकुंज वन मा हरि, जाथे कोन कति, आपन मारथे पंचबान।।
बिदियापति कहे का करही गुरूजन, नींद सताय बर लागी।
नयन नीर भरि ,नी झपकाए एको घरि, रतिहा गंवागिस जागी।।
10:-
आभी ले राजपथ पुरुजन जागी। चंदा किरन नभमंडल लागी।।
सह नी पावों नवा नवा नेह। हरि हरि सुंदरी परे संदेह।।
कामिनी करे कतका परकार। पुरूस बनके जांव करे अभिसार।।
लंबी केस के खोपा बांध। पहिने बसन आने समान।।
बसन कुच नी समरिस हवे। सितार ला हिरदे मा ले हवे।।
आगिस मिले ले धनि कुंज के मांझ। देखके नी चिन्हीस ये राज।।
देखके माधव परगिस दन्द। छूके भागिस हिरदे के द्वन्द।।
कहे बिदियापति सुन बने नारी। गोरस सागर के हस राजमराली।।
11:-
चरन नुपूर उपर सारी। मुखर करधन हाथ निबारी।।
करिया बसन देह लुकाय। अंधियार डगर समा जाय।।
सागर फूल रभस रसी। आप उही कुमत ससी।।
आय बर चाही सुमुखि तोरा। दुस्ट लोचन घूमत चकोरा।।
महावर टीका झन लगा राधे। अंगराग बिलेपन करही बाधे।।
फूले जंगल जमुना के तीर। तिहां चले आइन गोकुलबीर।।
तैं अनुरागिनी ओ अनुरागी। दूसन लागे भूसन लागी।।
कहे बिदियापति सरस कबि। राजा के कूल सरोज रबि।।
12:-
जागत रिहिन घर नींद बिभोर। सेज छांड़ उठिस नंदकिसोर।।
सघन गगन देखिस नछत्तर पांति। अवधि नी जानि छूटिस राति।।
बादर रुचिहर करिया कांति। जुबती मोहनी भेस धरे किस भांति।।
धनि अनुरागिन जान सुजान। घोर अंधियार करे प्रस्थान।।
पर नारी पिरीत ऐसन रीति। चले निरभय पथ पी माने भीति।।
फूले जंगल जमुना के तीर। तिहां चले आइन गोकुलबीर।।
कबिसेखर पथ मिले ला जाई। आए नागर भेंटे राई।।
13:-
सूरज ताप तपथे बड़ महितल, तपत बालू आगि समान।
चढ़े मनोरथ गोरी चले पथ, ताप तपे नीही जान।।
मया के गति दुरबार।
नवीन जोबन धनि चरन कमल जइसने, तभू ले चले अभिसार।।
कुल गुन गौरव सती जस अपजस, तिनका साही नी माने राधे।
मन मांझा मदन महोदधि उछलय, बूड़य कुल मरजादे।।
कोन कोन बिधि ले जीतय अनुरागिनी, साधय मनमथ तंत्र।
गुरूजन नयन बचाके सुबदनि, पाठ करे मन मंत्र।।
केली कलाबती फूल तरिया के तीर, कौसल करिस प्रस्थान।
जो रिहिस मदन करिस पूरा, इहीच कबि सेखर भान।।
14:-
घर ले निकलिस पांय दू चार। पानी बरसिस हे मुसवाधार।।
डगर बिच्छल बड़ गरू चूतर। कतका बिच्छलगिस भार चूतर।।
बिजली चमके बरसाए बादर। अउ बरसाए घनघार बादर।।
एक गुना अंधियार होय लाख गुना। उती बुड़ती के नीए गियान।।
ए हरि झन करिहा मोला रोस। आज बिलंब देव दिहा दोस।।
15:-
माधव करा सुमुखि समाधान।
अभिसार बर कस्ट करिस सुन्दरी, कामिनी करही अउ आन।।
बरसिस पानी भिंया पानी भरिस, रतिहाकन महा भय भीमा।
चलिस धनि तोर गुन मन गुनि, ओकर साहस के नीए सीमा।।
देखे भवन भिथि लिखे भुजंग पति, ओकर मन परम तरास।
सुबदनि हाथ मा लुकाके सांपमनि, हांस के आइस तोर पास।।
आपन पति छांड़ आइस कमलमुखी, छांड़ आपन कुल गारी।
तुंहर मया मीठ मंद मा मताय, कुछू नी गुनिस बने नारी।।
इ रस रसिक बिनोद बिंदक, कबि बिदियापति सेखर गाए।
काम मया दूनों एके मत होके, कोन छन का नी कराए।।
16:-
राहू बादर बन ग्रसे सूरज। डगर जाने हर दिन होगिस दूभर।।
नी बरसे आसान नी होय। पुर परिजन संचर नी होय।।
चल चल सुन्दरी कर तैं साज। दिन मा मिलन होही आज।।
गुरूजन परिजन डर कर दूर। बिन साहस इच्छा नी होय पूर।।
इ संसार मा सार चीज एक। तिल एक संगम जाब जीव नेह।।
कहे बिदियापति कबि कंठहार। कुछू नी घटे दिन अभिसार।।
17:-
आज पूनम तिथि जान में आय हों, उचित तोर अभिसार।
देह जोति ससि किरन समाथे, कोन भिने कर सकथे पार।।
सुन्दरी आपन हिरदे बिचार।
आंखि पसार जगत हम देखे, जग मा कोन तोर सम नार।।
नी जानो तैंहर अंधियार ला हित मानथस, चेहरा तोर तिमिरारि।
सहज बिरोध दूर छांड़ धनि, चल उठ जा जिहां मुरारि।।
दूती के बचन हितकर मानिस, चलिस फेर पांचबान।
हरि अभिसार चलिस बने कामिनी, बिदियापति कबि भान।।

13:- बोलय कोयलिया आमा के डारा
1:-
माघ मास सिरी पंचमी गरुवाइस। नवमा मास पंचमी हरुवाइस।
अघोर पीरा दुख बड़ पाथहावय। बनस्पति धाय बनके आइस हवय।।
सुभ छन बेरा अंजोरी पाख हावय। सूरज उये के आभी समय हवय।
सोलह अंग बत्तीस लक्षण साथ। रितुराज हमर जनम लीस हवय।।
नाचे नाचे जुवतीजन हांसत मन। जनमीस बाल माधव साही हवय।
महामीठ महारस मंगल गाएं। मानिनी के जमो मान उड़ाइन हवय।।
बोहाय मलयानिल ओत उचित हवय। नवा घन करिस उजियारा।
माधवी फूल लगय हावय मुक्ता साही। वहीच बनीन बंदनवारा।।
पींयर पांड़री जनमगीत गात हावय। तूरही बजात हावय धतूरा।
नागकेसर कली संख धूनि फूंकत हे। देत हावय ताल समतूरा।।
मंधरस लाइस भंवर बालक ला दिस। कमल पंखुरी आपन लाइस।
कमलनाल टोड़ सूत बांधिन कन्हिया। केसर बाघनख पिनहाइस।।
नावा नावा पाना के सेज सजाइन। सिर कदंब माला पिनहाइन।
देखिस सुग्घर ला भंवरी लोरी गाइस। चक्का चंद निहारिन।।
हेम टेसू सूतिपत्र लिखिस हावय। रासि नछत्तर करके लोला।
कोयल गनित गूनित बने जानके। रितू बसंत नाम धरिस ओला।।
बाल बसंत अब जवान होयय। बाढ़य सकल संसार देइन आसीस।
दक्षिण पवन उबटन चुपराय बर। किसलय कुसुम पराग लेके गीस।।
सुललित हार मंजरी पिनहात हे। घन काजर आंखि अंजन लगाय।
बसंत रितू जुबती आघू कर आइस। बिदियापति कबि सुग्घर गाय।।
राजा सिबसिंघ रूपनारायन हावय। सकल कलामन ला ओहर भाय।
बसंत रितुराज के ये गाना हावय।जमो कोन्हों बड़ मजा के गांय।।
2:-
आइस हवय रितुपति राज बसंत। कूदिन भंवरामन माधवी पंथ।।
सूरज किरन थोरक गरमाइस हे। केसर कुसुम धरिन सोन दंड हे।।
सिंघासन बनिस नवा पीठल पात। चंपा फूल छत्र धरे हावे माथ।।
सिरी आमा मन मंजरी हे धराय। आघू मा जा कोयल पंचम गाय।।
मोरमन नाचय भंवरामन बजाए। चिरई चरगुन मन आसीस पढ़ाए।।
चंदोवा फूल ले उढि़याय पराग। मलय पवन संग होइस अनुराग।।
कुंदबल्ली रूख धरे झंडा धारन। गुलाब पान तरकस असोक बान।।
परसा अउ लवंग लता एके संग। देख सिसिर रितू आघू दल भंग।।
सेना सजा मंधरस माछीमन । सिसिर ला खतम करिन सबो झन।।
कमल के उद्धार पाइस परान। आपन नवादल करिस आसन दान।।
नवा बिरिन्दाबन राज बिहार। बिदियापति कहे हवय इ समय सार।।
3:-
नवा बिरिन्दाबन नवा नवा रूखमन, नवा नवा फूलय फूल।
नवा नवा बसंत नवा नवा हवा , मातय भंवरामन के कूल।।
बिहार करे नबलकिषोर।
यमुना तट कुंज बन सोभे, नवा नवा मया बिभोर।।
नवा के बौर के रस पी मातके नवा कोयल कुल गाय।
नवजुवती गन चित उतयाइल, नवा रस बर कानन जाय।।
नवा जुवराज नवा बढि़या नागरी, मिले नवा नवा भांति।
रोज रोज ऐसन नवा नवा खेल, बिदियापति मति माती।।
4:-
नार अउ रूख मंड़वा बनिन। चंदा के चांदनी भीति बनिन।।
कमल नाल सब चैंक पूरिन। लाली बस्तर कोंवर पान बनिन।।
अरी माई देख मन चित लाय। बसंत बिहा करे बर कानन आय।।
भंवरा रमनी मंगल गाय। चिरईबर कोकिल मंत्र पढ़ाय।।
फूल पराग हांथा देविन। चंदा अउ पवन बराती सजाइन।।
सेप परसा फूल मोती जड़े तोरन। बेला नार लाई बिछराय।।
केसर फूल करे सेन्दूर दान। जमकी दइज पाइन मानिन मान।।
खेले बिनोद नवा पांचबान। बिदियापति कबि दिरिढ़ करिस मान।।
5:-
नाचा रे तरूनी छांड़के लाज। आइस बसंत रितु बनिक राज।।
हस्तिनी चित्रिनी पद्मिनी नारी। गोरी सांवरी बुड्ढी मुटियारी।।
बिबिध भांति के करे सिंगार। पहिरे पटोल गला झूल हार।।
अगर चंदन घिसे भर कटोरा। कोन्हों खोंचे कपूर तम्बूला।।
कोन्हों कुमुकुम मले अपने आंग। कोन्हों मोती ले सजाए मांग।।
6:-
नावा पाना मा बइठे बा दिन। सेत कमल फूल कलस बन गिन।।
करा पराग गंगा के पानी। लाल असोक दीया ले आनी।।
हे माई आज के दिन पूनमंत। करा चुमाओन राज बसंत।।
पूरा चंदा दही साही पियारी । घूम घूम भंवरी हंकारी पारी।।
परसा के फूल सेन्दूर साही आज। केतकी पराग बिछाय आज।।
कहे बिदियापति कबि कंठहार। रस बूझे सिवसिंघ सिव अवतार।
7:-
दक्षिनपवन बोहाइस दसोदिसा अरारोल। मानो बादी भाखा बोल।।
मदन के साधन नीही आन। नीरस कर दीस मानिनी मान।।
माई हे सीत बसंत बिबाद। कोन बिचारब जय अबसाद।।
दुनों के मांझा सूरज होइस। चिरई बने कोयल साखी देइस।।
नव पल्लव जयपत्र के भांति। भंवरा माला आखर पांति।।
बादी ले प्रतिबादी डराइस। ओस बूंद हो अंतर सीत।।
कुंद कुसुम अनुपम बिकसंत। सतत जीत कइथे बसंत।।
बिदियापति कबि एही रस भान। राजा सिबसिंघ एही रसजान।।
8:-
नवा सुग्घर कोंवर पात। सबो जंगल मानो पहिरिन लाल।।
मलय पवन हालय बड़ भांति। अपन फूल रस ले अपन माति।।
देख देख माधव मन हुलसंत। बिरिन्दावन मा आइस बसंत।।
बोलय कोयलिया आम के डारा। मदन पाइस जग मा अधिकारा।।
दूत भंवरा करे मंधरस पान। घूम घूम जोहे मानिनी मान।।
दिसा ले घूम बन ला निहारी। रासलीला बुझाए मुदित मुरारि।।
कहे बिदियापति इ रस गाव। राधा माधव के हवय नवा भाव।।
9:-
चल देखे जाबो रितु बसंत। जिहां कुंद कुसुम केतकी हसंत।।
जिहां चंदा निरमल भंवर कार। जिहां रात उजागर दिन अंधियार।।
जिहां मुग्धा करय बड़ मान । मान बइरी ला देखय पांचबान।।
कहे सरस कबि सेखर कंठहार। मधुसूदन राधा करे बन बिहार।।
10:-
मीठ रितु भंवरा पांति। मीठ फूल मीठ माति।।
मीठ बिरिन्दाबन मांझा। मीठ मीठ रस साजा।।
मीठ जुबती मन संग। मीठ मीठ रसरंग।।
मीठ मुरदूंग रसाल। मीठ मीठ करताल।।
मीठ नाच भाव भंग। मीठ नट नटिनी संग।।
मीठ मीठ रस गान। मीठ बिदियापति भान।।
11:-
बाजत दिग दिग धिनक धिया।
नाचे कलावती माति स्याम संग, करे करताल मस्त ध्वनिया।।
डम डम डफरा डिम मांदर, रून झून मंजीरा बोल।
किंकिनी रनरिनि कंगन कनकिनि, रतिरास तुमुल उतरोल।।
बीन रबाब मूरज स्वरमंडल, सा रे ग म प ध नि सा बहुबिधि भाव।
घटिता घटिता ध्वनि मुरदंूग गरजनि, चंचल स्वरमंडल करे राब।।
श्रम भर गलित ललित कबरीयुत, मालती माला बिछाये मोती।
समय बसंत रास रस बरनन। बिदियापति मति चंचल होति।।
12:-
रितुपति रात रसिक रसराजा। रसमय रास रभस ससि मांझा।।
रसमती रमनी रतन धनि राही। रास रसिक संग रस पाही।।
रंगिनीमन सबो रंगही नचई। रनरनि कंकन किंकिन रटई।।
थोर थोर राग रचय रसवंत। रतिरत रागिनी रमन बसंत।।
रबाब बीना पिनास बजात। राधा रमन करे मुरली बजात।।
रसमय बिदियापति कबि भान। रूपनारायन भूपति जान।।
13:-
मलय पवन बहे। बसंत बिजय कहे।।
भंवरा करथे सोर। कहर नीए छोर।।
रितुराज रंग बेला। हिरदे रभस हेला।।
अनंग मंगल मेली। कामिनी करथे केली।।
तरुन तरुनी संग। रतिहा खेलथें रंग।।
बिहार बिपत लागी। परसा उगले आगी।।
कबि बिद्यापति भान। माननी जीवन गान।।
राजा सिबसिंघ बरू। मेदनी कलप तरू।।

14:- रस सागर

1:- सरस बसंत समय भले पांय, दक्छिन पवन बोहाय धीरे।
सपना मा एकझन मोला किहिस, मुख ले हटा तोर चीरे।।
तोर बदन साही चंदा नी हवय, जतको जतन बिधि देइस।
कतका घा बनाइस नवा फेर, तभू ले तुलना नीही होइस।।
आंखि मेर कमल नी ठहरत हवय, ओकर ले जग नी जाने।
फेर लुकाय फिरे चिखला पानी मा, कमल हर आपन ठाने।।
कहे बिदियापति सुन सुग्घर सुन्दरी ये सब लछमी समाने।
राजा सिवसिंघ रूपनारायन, लखिमा देवी के पति हा जाने।।
2:-
सुतत रहेंव हम घर मा रे, गला मा मोती हार।
रात जे समे कुकराबस्ता रे, पिया आइन हमार।।
हाथ कुसलता हाथ कांपय रे, हार हिरदे ले टार।
हाथ कमल हिरदे छपकय रे, मुख चंदा निहार।।
कइसी अभागिनी बैरिनी रे, भागगिस मोर निन्द।
भला मैंहर नी देख पाएं रे, गुनमय मोर गोबिन्द।।
बिदियापति कबि गाए रे, धनि मन धर तैंहर धीर।
समे पाए तरूवर फर दे रे, कतको सींचबे तैं नीर।।
3:-
मोर अंगना मा चंदन के गाछी, ओमा चढ़य कुररय रे।
सोन चोंच बांध दिहां कौआ, जो पिया आही आज रे।।
गाओ सखी सब झूमर लोरी, मदन आराधन जाओं रे।
चारो दिस मांेगरा चम्पा फूले, चंदा अंजोरी रात रे।।
कइसे करिहां मैं मदन आराधन, होत बड़ रति पीरा रे।
बिदियापति कबि गाए तोर, परभू हवय गुन निधान रे।।
राजा भोगेष्वर सब गुन आगर, पदमादेवी के रमान रे।
इसने परकार ले आही मयारू, तोर हवय घनस्याम रे।।
4:-
अंगना मा आही जब रसिया। पलट चलिहां हम धीरे धीरे हंसिया।।
रसनागरि रमनी कतकी कतकी। जुगति करत रइथे कतकी कतकी।।
आवेस मा पिया अंचरा धरही। जाओं नीही मैं जतन कतको करही।।
चोली धरही ता हठाहां हाथ मैंहर। कुटिल नजर ले निहारों मैंहर।।
जब पिया मोर रभस मांगही । मुख मोड़ हांसि बोलव नीही नीही।।
सहज मा सुपुरुस होत भंवरा। मुख कमल के मंधरस पीवत हमरा।।
ओ समे हर लेथें मोर गियान। बिदियापति कहे धनि रखो धियान।।
5:-
पिया जब आही इ मोर गेह। मंगल जतका करिहीं आपन देह।।
कनक कुंभ साही कुच दूनों राखि। दरपन धर काजर देवों आंखि।।
बेदी बनाहा आपन अंक ला मैंहर। बहेरी बहारिहा पलक उघार।।
केरा जगाहां मैंहर गरु चूतर। आमा पाना लागे बाजत किंकनी हर।।
दिसा दिसा लानिहा कामिनी ठाट। चारों दिसा बिछाहां चंदा हाट।।
बिदियापति कहे होही पूरब आस। दूएक पल मा मिलही तोर पास।।
6:-
दुरलभ दरसन दूनों के होइस। विरहा के दुख हर दूर होइस।।
हाथ धरके बैठाइस बढि़या आसन। रमन रतन स्याम रमनी रतन।।
बहु बिधि बिलास बहु बिधि रंग। कमल भंवरा मानो पाइन संग।।
नयन नयन दूनों बोली बयान। दूनों गुन दूनों गुन दूनों जन गान।।
कहे बिदियापति नागरी बिभोर। त्रिभुवन बिजयी नागर हवय चोर।।
7:-
चिर दिन ले बिधि करिस अनुकूल रे। दूनों सुख देखत दूनों हे आकूल रे।।
बांहा पसार के दूनों दूनों धरत हे रे। दूनों अधरअमरित दूनों मुख भरे रे।।
दूनों तन कांपय मदन उछलत हे रे। किन किन किन करे किंकनी रूचे रे।।
जाते जात हांसत नव बदन मिले रे। दूनों खुसी ले रांवा ठाढ़ेठाढ़ होय रे।।
रस मा मात दूनों के बसन खसले रे। बिदियापति कहे रससिंधु उछले रे।।
8:-
सुन रसिया सुन रसिया, अब न बजाओ बिपिन बांसुरिया।
घरि घरि चरन कमल मैं धरों, सदा रहिहां बनके दासिया।।
अनुभव ऐसन मदन बन भुजंग, हिरदे ला लिस मोर डसिया।
नंद नंदन तुंहर सरन नी छांड़ों, भले हो जग मा दुरजसिया।।
बिदियापति कहे सुन बनितामनि, तोर मुख जीतत हे ससिया।
धन्य धन्य तोर भाग गुआलिनी, हरि भज ता हिरदे हुलसिया।।
9:-
सखी का पूछत हस अनुभव मोय।
जइसने पिरीत अनुराग बखानों, पल पल नूतन होय।।
जनम अवधि हम रुप निहारत, नयन नी तिरपति होत।
ओकरे मीठी बोल कान सुनत, कानपथ परस नी होत।।
कतका मधुयामिनी रभस गंवाय, नी बूझों कइसे खेलाय।
लाख लाख जुग हिय मा राखय, तभू ले हिय नी जुड़ाय।।
कतका बिरहा रस भोग करय, अनुभव कोन्हों नी जानय।
बिदियापति कहे परान जुड़ाय, लाख मा एक नी मिल पाय।।

15:- पिनाकी पूजा
1:-
जय सिवसंकर जय त्रिपुरारि। जय अध पुरुस जय अध नारि।।
आधा धवल तन आधा गोरा। आधा सहज कुच आधा कटोरा।।
आधा हड़माला आधा गजमोती। आधा चंदा सोहे आधा बिभूती।।
आधा चेतन मति आधा भोरा। आधा पटोरा आधा मूंज डोरा।।
आधा जोग आधा भोग बिलासा। आधा परिधान आधा नगबासा।।
आधा चंदा आधा सेन्दूर सोभा। आधा बिरुप आधा जग लोभा।।
कहे कबिरतन सेखर बिधाता जान। दू कर बांटिस हे एक परान।।
1:-
भला हर भला हरि भला तुंहर कला। छन पीतबसन छन बघछला।।
छन मा पंचानन छन मा भुजचारि। छन सिवसंकर छन मा मुरारि।।
छन मा गोकुल जाके चराए गाय। छन भीख मांग के डमरू बजाय।।
छन गोबिन्द होके लेवे महादान। छन भसम भरे कांख अउ कान।।
एक सरीर लेके दू ठान निवास। छन मा बैकुंठ छन मा कैलास।।
कहे बिदियापति बिपरीत बानि। ओ नारायन अउ ओ सूलपानि।।
3:-
सखी ऐसन पगला दुल्हा लाए, हिमालय देख लक्छन रंग।
ऐ पगला दुल्हा घोड़ा नी चढ़य, जांे घोडा़ संग हवय जंग।।
बैला के पीठ मा बाघछाल के जीन पिन्हा सांप डोरी ले तंग।
डिम डिम डिम डिम जे डमरू बजाइन खटर खटर करे अंग।।
भकर भकर जे भांग भकोसथें, छटर पटर करत हवय गाल।
चंदन ले अनुराग एकोरच नीए, भसम ला लगाए हावय भाल।।
भूत पिसाच अबड़ दल साजके, सिर मा बोहात हावय गंगा।
कहे बिदियापति सुन ओ मैना, येकर हावय दिगम्बर अंगा।।
4:-
घेरि बेरि अरे सिव मैं तोला कहों फिरत रइ्रथस मनमाना।
बिना संका के भीख मांगथस, पाय गुन गौरव दूर जाना।।
निरधन जन बोलके सबो हांसथे, नी करे आदर अनुकम्पा।
तोला सिव आक धतुरा फूल मिलिस, अउ पाए फूल चम्पा।।
पीठासन काट के हर नांगर बनाबे, तिरसूल टोड़ के फार।
बैला बलवान ले नांगर जोतबे, पलोबे गंगाजल के धार।।
कहे बिदियापति सुनबे महेसर, का इकरे बर करे तोर सेवा।
इहां जे बर ले बर मिलिस हे, ओती जाके दुख झन देवा।।
5:-
मैं नी रहो इ अंगना मा माई जे बूढ़ा होत जमाई।
एक तो बइरी होइस बिधाता दूसर मा बेटी के बाप।
तीसर होइस नारद बाम्हन जे बूढ़ा खोजिस जमाई।
पहिली टोडि़हा डमरू बाजा दूसर टोडि़हा मुड़माला।
बैला खेदिहा बरतिया खेदिहा बेटी ले जाहां पराई।
धोती लोटा पथरा पोथी इ सबो ला लिहां छिनाई।
जे कुछू किही नारद बम्हना दाढ़ी ला दिहां उखड़ाई।
कहे बिदियापति सुन ओ मैना दिरिढ़ कर अपन गियान।
सुभ सुभ कर सिरी गौरी बिहाव ला महादेव एक समान।।
6:-
नी करों मैंहर बर हर निरमोहिया।
बिता भर बसन नीए तन मा, बाघछाल कांख रहे धरिया।।
बन बन फिरथे मसान जगाथे, घर अंगना कहूं बनाइस कहिया।
सास ससूर नीही नंनद जेठानी, जाही बइठी बेटी काकर ठहिया।।
बूढ़ा बइला ढके हवय पाल ढोल, एक संपति भांग के झोलिया।
कहे बिदियापति सुन ओ मैना, सिव सम दानी हावे कोन कहिया।।
7:-
काहां गिन हवे मोर बुढ़वा जती। पी भंग होइस उनकर का गती।।
आने दिन बने रेहें मोरे पती। आज लगिस उनला कोन उदगती।।
एकेझन जाओं जोहों कोन कती। ठोकर खा गिरिंहा होही दुरगती।।
नंदनबन मांझा मिलिन महेस। देखके होइस खुसी कटिस कलेस।।
कहे बिदियापति सुन हे सती। इ जोगिया हर हावय त्रिभुवन पती।।
8:-
जोगिया एक हम देखें ओ माई। अद्भुत रूप कहा नी जाई।।
पंच मुख अउ तीन नयन बिसाला। बिना बसन पहने बाघछाला।।
सिर बोहाय गंगा टीका साही चंदा। देख सरूप मिटाय दुखदंदा।।
जाही जोगिया करा रिही भवानी। मन बसाइस कोन गुन जानी।।
कुल नीही सिल नीही तात महतारी। अवस्था हे लाख जुग चारी।।
कहे बिदियापति सुन ओ मैना रानी। इ जोगिया हे त्रिभुवन दानी।।
9:-
सिव हो कोन बिधि उतरिहां पारा।
धतुरा फूल चढ़ा बेलपाना। गौरीषंकर करों पूजा तुंहारा।।
बैला चढ़के घूमता मसाना। भांग पीके मोर दरद नी जाना।।
जप तप नी करे नित दाना। भागगिस तीनोंपन करत आना।।
कहे बिदियापति सुन हे महेसा। निरधन जानके हरिहा कलेसा।।
10:-
जब ले देखें हर हो गुननिधि। पूरा होइस सकल मनोरथ बिधि।।
बइला चढ़े हर हो बूढ़वा पाती। काने कुंडल सोहे गले गजमोती।।
बइठे महादेव चैका जा चढ़ी। जटा छिरियाय हावय माथा भरी।।
बिधि करा बिधि करा बिधि करा। बिधि नी करे हर हो हठ धरा।।
बिधि करत हर हो घूम गिर परत। सांप खसल गिस सिरी हंसत।।
कोन्हों नीही कुछू झन किहा इनला। पूरबल लिखिस पांए पति ला।।
कबि बिदियापतिसेखर हे गाइस। सिरी गौरी उचित बर ला पाइस।।
11:-
हरि झन भूलाहा हामर मया ला, हामन नर अधम परम पतिता।
तुंहर साही अधम उद्धारक नीए, हामर साही जग मा नीए पतिता।।
जम के द्वार जवाब का दिंहा, जे छन बूझत निजगुन बतिया।
जब जम के सेवक रीस करिही, ते छन कोन होही धरहरिया।।
कहे बिदियापति सुकबि पुनीत मति, संकर बिपरीत बानी।
असरन सरन चरन सिर नवाओं, दया करा यि सूलपानी।।
12:-
अतकी जपतप हामन काबर करेन, काबर देवेन नित दान।
हामर बेटी बर इच बर होही, अब नी रहत हे हामर परान।।
हर के दई ददा घलो नी हवय, नी हवय एकर सहोदर भाई।
मोर बेटी जो ससुराल मा जाही, काकर सो बइठे जाही।।
घास काट के लाही बइला चराही, पीसही भांग अउ धतूरा।
एकोपल मोर गौरी बइठ नी पाही, ठाढ़े रिही बनके हजूरा।।
कहे बिदियापति सुन ओ मैना, दिरिढ़ कर आपन गियान।
तीनों लोक के इच हावें ठाकुर, गौरी ला तैंहर देवी जान।।
13:-
कब हरिहा दुख मोर, हे भोलानाथ।
दुख जनमें दुख गंवाए, सुख सपना मा नी पाएं, हे भोलानाथ।
अछत चंदन अउ गंगाजल, बेलपान तोला चढ़ाएं, हे भोलानाथ।
इ भवसागर थाह कुछू नीए, भैरवरूप धरके आहा, हे भोलानाथ।
कहे बिदियापति भोलानाथ गति, दिहा अभय मोला, हे भोलानाथ।
14:-
यहि बिधि बिहा करे आइन, ये हवे बइहा जोगी।
टपर टपर करे बइला, खटर खटर करे मुंडमाला।
भकर भकर सिव भांग भकोसे, हाथ मा डमरू धरा।
झूटी मिटाइस, कलस फोरिस, कोन मा राखि दीप।
षिवा लानिन मंड़वा मा बैठाइन, गाइन सखि गीत।
कहे बिदियापति सुन ओ मैना, वो हावे त्रिभुवन ईस।
15:-
आज नाथ बात बड़ सुख लागत हे।
तूं धरा नटवर भेस डमरू बजावा हे।
भला नी कहे गउरा आज नाचबो हे।
सदा सोच होथे कोन बिधि बांचबो हे।
जे सोच मोला होत काहां समझावों हे।
तूं जगत के नाथ कोन सोच लगावो हे।
नाग सरीर ले खसक भुंइया मा आही हे।
कातिक पोसे मंजूर ओला धर खाही हे।
अमरित चूहके गिरही बाघम्बर जागही हे।
बाघ चाम बाघ बन बइला धर खाही हे।
टूट गिर के रुदराछ मसान ला जगाही हे।
तब गौरी भाग पराबे नाच कोन देखाही हे।
कहे बिदियापति गाइन सब गा सुनाबो हे।
राखिन गौरी के मान त्रिलोक बचाइन हे।
16:-
माई हे जोगिया मोर जग सुखदायक दुख कोन्हों ला नी देय।
दुख कोन्हों ला नी देय मोर महादेव दुख कोन्हों ला नी देय।
इ जोगिया ला भांग मा भुला दिन धतूरा ला खवा के धन लेय।
माई हे कातिक अउ गनेस दूझन बालक जग भर के मन जान।
थोरकन गहना कुछू नी हावय, रतिमासा सोना नीए ओकर कान।
माई हे सोना रूपा पूत गहना आने बर आपन बर रुदराछ माला।
आपन बेटा बर कुछू नी जुरे हे आने बर उठाथे महादे जंजाला।
माई हे छन मा हेरथे कोटि धन देथे ओला देवा नीही थोड़ा।
कहे बिदियापति सुन मैनावती रानी हावय मोर दिगम्बर भोला।।
17:-
जोगिया भांग खाइस बढि़या रंगिया भोला हावय बौड़मवा।
सबला ओढ़ाथे भोला साल दुसाला आपन ओढ़े मिरिगछाला।
सबला खवाए भोला पांच पकवाना आपन खाए भांग धतूरा।
कोनें चढ़ावे भोला अछत चंदन कोन्हों चढ़ात हवे बेलपाना।
जोगिन भूतिन सिव के संगतिया भैरो बजात हवे मुरदंगिया।
कहे बिदियापतिसेखर जय जय संकर पारबती तुंहर संगिया।
18:-
जो हम जानथें भोला बड़ ठगना, होथे राम गुलाम गे माई।
भाई बिभीसन बड़ तप करीस, जपिस राम के ठाम गे माई।
उत्ती बूड़ती एको कति नी गइस, अचल होइस ठाम गे माई।
बीस भुजा दस माथा चढ़ाएं, भांग देंवें भर भर गाल गे माई।
नीच उंच सिव कुछू नी गुने, हांसत दे दिस मुंड़माल गे माई।
एक लाख पूत सवा लाख नाती, कतका सोना के दान गे माई।
गुन अवगुन सिव एको नी गुने, राखिस रावन के नाम गे माई।
कहे सेखर सुकबि पुनित मति, हाथ जोर मनाओ महेस गे माई।
गुन अवगुन हर मन नी मानय, सेवक के हरथे कलेस गे माई।

सीताराम पटेल

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