उनसे चर्चा के दौरान मैने सोशल मीडिया और इंटरनेट में पाठकों की आवाजाही, ब्लॉग और साइटों के सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन पर मेरे निजी अध्ययन की बातों को शेयर किया। इंटरनेट में छत्तीसगढ़ी भाषा के प्लेटफार्मों के आ रहे पाठकों, उनकी रुचियों, उनके भौगोलिक क्षेत्रों, उनके डिवाइसों का अध्ययन मैं विगत कई सालों से लगातार कर रहा हूं। जिससे आधार पर मुझे भी प्रतीत होता है कि छत्तीसगढ़ी गानों और वीडियो पर सबसे ज्यादा क्लिक हो रहे है क्योंकि यह सहज है, सरल है उसे पढ़ना नहीं पड़ता। छत्तीसगढ़ी भाषा की वेबसाइट या ब्लॉग पर पाठकों की बेहद कमी है, इंटरनेट के पाठक उसे पढ़ना नहीं चाहते। जो गिने-चुने छत्तीसगढ़ी भाषा के ब्लॉग या वेबसाइट हैं उसमें वही लोग आते हैं जो रचनाकार हैं या स्वयं लेखन धर्मी हैं। उसमें से भी अधिकांश, सिर्फ अपनी रचनाएं पढ़ते हैं दूसरों की रचनाओं को पढ़ने का ज़हमत भी नहीं उठाते। इस लिहाज से आज भी छत्तीसगढ़ी इंटरनेट में पूरी तरीके से विपन्न भाषा है।
डिजिटल इंडिया में भी छत्तीसगढ़ी भाषा के जो थोड़े बहुत पाठक हैं वे समाचार पत्रों में निकल रहे परिशिष्ट के सहारे ही बचें हैं। इस प्रकार यह मान लिया जाए समाचार पत्रों के परिशिष्ठों में जो छप रहे हैं वही असल में छत्तीसगढ़ी के लेखक हैं। आयोग से भीख (आयोग के सचिव महोदय नें कई बार मंचों में कहा है कि, आयोग गरीब साहित्यकारों को पुस्तक छपवाने के लिए सहायता प्रदान करता है) में प्राप्त रूपयों से या अपनी गाढ़ी कमाई के हिस्से से प्रकाशित सर्वश्रेष्ठ किताब को भी सामान्य पाठक वर्ग नहीं मिलते क्योंकि वह महान साहित्य सहज रूप से उपलब्ध नहीं हो पाता जबकि समाचार पत्रों के परिशिष्टों से आपकी रचना सामान्य पाठक वर्ग तक सहजता से पहुंचती है।
इससे बेपरवाह, फेसबुक में छत्तीसगढ़ी के बाना संभालने वाले और छत्तीसगढ़ी पर बात करने वाले लाखों लोगों का हुजूम है। कई ग्रुप और कई पेज हैं जिसमें छत्तीसगढ़ी के लिए मरने-मारने पर उतारू युवाओं की भीड़ है। वे सिर्फ छत्तीसगढ़ी संस्कृति व लोक कला के फोटो और चार लाइनों के कमेंट को लाईक-शेयर करके उंगली कटा के शहीदों की सूची में नाम लिखवाने को उतारू हैं। फेसबुक के ये तथाकथित भेंड छत्तीसगढ़ी भाषा को पढ़ना ही नहीं चाहते, साहित्य का अध्ययन तो दूर की बात है। वे डिजिटल इंडिया में जी रहे हैं, कट-पेस्ट-शेयर सब सटा-सट, बिना देखे-पढ़े। शिक्षा में छत्तीसगढ़ी जब लागू होगा तब होगा, सबसे पहले हमें इन मोबाईल धारी जिनमें से कुछ बाप के पैसे से टेस मार रहे लोग भी हैं, को छत्तीसगढ़ी पढ़ने का अभ्यास कराना होगा तभी हम लोगों का छत्तीसगढ़ी छत्तीसगढ़ी चिल्लाना सार्थक होगा।
– संजीव तिवारी