Categories
व्यंग्य

व्‍यंग्‍य : जनता गाय

सरग म, पिरथी के गाय मन ला, दोरदिर ले निंगत देखिस त, बरम्हाजी नराज होगे। चित्रगुप्त ला, कारन पूछिस। चित्रगुप्त किथे – मरे के पाछू, गाय कस परानी मन अऊ कतिहां जाही भगवान, तिहीं बता भलुक ? बरम्हाजी पूछिस – अतेक अकन, एके संघरा मरिस तेमा ? चित्रगुप्त किथे – भाग म, जतका दिन जिये के हे, तेकर ले जादा, कन्हो ला जियन देहस का तेमा …..? रिहिस बात कारन के ….., कन्हो किथे, भूख ले मरे हे, कन्हो किथे, जाड़ म मरे हे …काकर ला पतियांवव। गाय ला भेजत हंव, तुहीं मन पूछ लव।




बरम्हाजी के चेमबर म गाय के पेसी होगे। गाय किथे – हमन का जानबो भगवान के, कइसे मरे हाबन। फेर मनतरी जी कहत हे के, जाड़ ले मरे हन, ता सहींच कहत होही। दूसर मन काला जानही, ओकर ले बड़का, कोनहो डाकटर हो सकत हे तेमा …। रिहीस बात भूख ले मरे के ……, अइसन कहवइया मन लबारी मारत हे, उहां खाये के अतेक परे हे के, हमन खा नी सकन, तभे तो मनखे मन घला, हमर चारा ला खा खा के मोटावत हे। हमर पेट बिलकुलेच नानुक हे बरम्हाजी, जे दिखथे भले बड़े जनिक फेर, ओमा कहिंच निये। मनखे कस पेट थोरेन हे हमर तिर, जे कतको खावत हे पचिच जावत हे। हमन अपन भूख ले, अभू तक एक बेर नी मरे हन बरम्हा जी। मनखे ला जब भूख लागथे न ……तब हमन मरथन …..। बरम्हा मुहुं ला फार दिस, त गाय बताये लगिस – मनखे के अतेक अकन पेट बना देहस तेहां, जे कभू एती भुखाये ताकथे, कभू ओती। ओकर आंखी के भूख, दई बहिनी के इज्जत म डाका डारथे, पइसा के भूख म, देस निलाम हो जथे अऊ सत्ता के भूख म, हमर असन मन बरबाद होथन……..। बरम्हाजी, चित्रगुप्त ला किथे – येमन अपन भूख ले नी मरे हे, मोला लागथे के, जाड़ बहुतेच परत हे, येमन ला बचाये बर, इंकर चमड़ी ला अऊ मोठ कर देव …..। चित्रगुप्त किथे – जेकर चमड़ी मोठ हे, तेकरे मन के सेती अइसन होवत हे ………। येकरो मनके चमड़ी ला मोठ कर देबो त, दुनों के फरक कइसे पता चलही …..? फेर एक बात अऊ हे बरम्हा जी, मोठ चमड़ी वाले मन, तोप ढांक के किंजरथे। गाय गरू बर, नानुक कोठा बनवाये नी सकत हन, कतिन्हा ले तोपे बर, लानबो…….।




तभे नावा खभर अइस – गाय मन बिमारी ले मरे हे। गाय किथे – बिमारी ले कइसेच मरबो भगवान, हमन ला मनखे के असपताल म थोरेन भरती करथे तेमा ? बरम्हाजी पूछिस – तूमन जानवर अव, तूमन ला मनखे के असपताल म, कोन लेगही तेमा ? गाय किथे – तेंहा पिरथी म रहिते अऊ बिमार परतेस, तब जानतेस भगवान, उहां मनखे के असपताल म, मनखे मन, जानवर कस परे रहिथे, अऊ जानवर के असपताल म, जानवर के इलाज मनखे कस होथे। बरम्हा किथे – अतेक सुभिता म, तूमन ला मरना नी चाही ? में होतेंव ते, कभू नी मरतेंव अऊ जब मरतेंव, गाय जनम धरतेंव। चित्रगुप्त ला तिर म बलाके किथे – उहां के सधारन जनता ला, गाय कस बना दव, ताकि वहू मनके इलाज अऊ सुख सुबिधा के धियान, जानवर असन होवय। गाय के बात, बरम्हाजी नी समझिस। बरम्हाजी को जनि, बरदान दिस, के सराफ ……. जनता, गाय बनगे, बिगन मउत, कन्हो कहिं म मरत हे कन्हो कहिं म …….।

हरिशंकर गजानंद देवांगन, छुरा
[responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये रचना ला सुनव”]



Photo: The Hindu