हमर पुरखा मन के बनाय परमपरा हा आज तिहार बहार के नाँव धरागे हे। अइसन तीज-तिहार हा हमर जिनगी मा खुशी के रिंगी-चिंगी रंग ला भरथे। तिहार-बहार समाज मा एकता अउ भाईचारा के गुरतुर चासनी घोरथे।अइसन गुरतुर चसनी ले बंधाय एकता हा कभू छरियाय नहीं। हमर गवँई गाँव मा तिहार के अलगेच रंग-ढ़ंग हा दिखथे। सिधवा मनखे के जिनगी जीये के रंग-ढ़ंग घलाव सिधवा सोज बाय रथे। ए बात के प्रमान हमर गवँई-गाँव मा सोज्झे दिख जाथे। सुमता के एकठन अइसनहे तिहार हरय “जेठउनी तिहार” जउन हा धार्मिक अउ समाजिक एकता के सुग्घर संदेश बगराथे। हमर नान्हे-नेवरिया राज छत्तीसगढ़ के लोकजीवन मा रचे बसे लोक परब अउ तिहार के नाँव “जेठउनी तिहार” हरय। कारतिक महीना के अँजोरी पाख मा एकादशी के दिन ए तिहार ला मनाय जाथे। देवारी तिहार के ठीक गियारा दिन बाद मा ए जेठउनी तिहार हा आथे। हमर गवँई-गाँव मा जेठउनी तिहार ला छोटे देवारी कहिथें। गवँई-गाँव मा छोटे देवारी के खुशी भारी होथे। जादा उछाह अउ उमंग के संग ए तिहार ला लइका,जवान अउ सियान सबो झन ए तिहार ला मनाथें। ए तिहार के महत्तम हा सिरिफ खुशी अउ मनोरंजन भर नइ हे बरन पुरखा मन ले चले आवत सरद्धा अउ आस्था के साखी-गवाही जेठउनी के रुप मा हरय।
जेठउनी के दिन मुंधरहा ले असनाँद करके गाँव के बइगा बबा हा अपन-अपन गाँव-गवँई के गाँव देवता “साहड़ा देव'” के बिसेस पूजा-अर्चना करथे। साँहड़ा देव ले गाँव भर के सुरक्छा अउ समरिद्धी के आसीरबाद माँगे जाथे। संगे-संग गाँव भर के जम्मों देवी-देवता मन के घलाव मान मनउका करके असीस ला माँगे जाथे।
जेठउनी तिहार ला देवउठनी ,अकादशी के नाँव ले घलाव जाने जाथे। चार महीना के अराम ले देवी-देवता मन हा जेठउनी के दिन उठथें जागथें तभे ए तिहार ला देवउठनी अकादशी के नाँव ले जाने जाथे। ए परब के मानियता हे के ए शुभ दिन हा सबो शुभ काज बर शुभ माने जाथे। जम्मों शुभ काम बर देवउठनी हा शुभ घड़ी आय। ए दिन कोनो भी शुभ काम बुता बर शुभ माने जाथे। जम्मों नवा-नवा काज के शुरुवात देवउठनी के दिन ला होय ला पूरा होय ला धर लेथे। जेठउनी के आवत ले किसनहा भाई मन के धान-पान के लुवई-टोरई के बुता काम हा पूरा हो जाथे या फेर पूरा होय ला धर लेथे। किसनहा भाई मन हा अपन बच्छर भर के महिनत के सोनहा फर ला कोठार-बियारा मा पा के मने मन अब्बड़ खुश होथे। अपन इही खुशी ला किसनहा भाई मन के मन ले ए तिहार मा छलकथे। हाट-बजार अउ दुकान मन हा घलो नवा-नवा समान भराके , सज धज के किसान के नवा खुशी मा संगवारी बनथे। मड़ई-मेला मा नाचा गम्मत , गीत संगीत अउ खेल तमाशा के सुग्घर बेवसथा करे जाथे।
जेठउनी तिहार ले हमर छत्तीसगढ़ राज के हमर चिन्हारी “राउत नाचा” के रिंगी-चिंगी श्री गणेश हो जाथे। ए तिहार हा राउत जात मन बर अड़बड़ खुशी अउ उमंग लेके आथे। राउत भाई मन अपन अनदाता किसान(मालिक) बर वफादारी अउ मंगलकामना के प्रदर्शन ला करथे। अपन पशुधन माल-मत्ता के गनती सरेखा अउ सुरक्षा करे बर “सोहई” बाँधे के शुरुवात हो जाथे। सादा रंग के रिंगी-चिंगी “सोहई” हा मंजूर पाँख अउ सनई के राउत भाई मन के हाथ ले गुँथें रहिथे। एदिन बर एखर तियारी महीना भर ले आगू-आगू करत रथें। इही दिन “रउतईन दीदी” हा अपन मालिक (किसान) के घर कोठी-डोली मा “हाँथा” लिख के सुख-समरिद्धी के वरदान माँगथे। राउत भाई हा अपन मालिक के घर मा मा दोहा पार के अन-धन अउ जन-जन के सुख के असीस ला माँगथे।
देवउठनी अकादशी के इही दिन ले देवता मन चार महीना के विसराम ले जाग उठथें। देवी-देवता मन के जागरन ले जम्मों नवा अउ शुभ काज हा मंगल अउ सिद्ध होथे। इही दिन ले बर बिहाव के बाजा बाजे के सरी उदिम के शुरुवात हो जाथे अउ परवार मन के खोज-खबर अउ पूछ-परख बाढ़ जाथे। इही दिन ले घर के सियान दाई-ददा मन हा अपन घर के बाढ़े बेटी अउ बेटा बर दमांद अउ बहू के खोज खबर मा भीड़ जाथें। देखे-सुने , जँचई-मँगई अउ फलदान, सगई के चालू हो जाथे। हाट-बजार, लेन-देन, कपड़ा-लत्ता, गहना-गुरिया, मया-मयारु, नता-लगवार, पारा-परोसी, परिहा-परवार, गियानी-धियानी , सुजानी, सियान, मितान, हितवा अउ पंडा,पंडित, मन के मान-गउन अउ सरेखा बाढ़ जाथे। इही दिन ले जम्मों जनता मन के मन मा नवा जोश-नवा उछाह हा भर जाथे जेखर ले वो हा सरी नवा नवा कारज ला करे बर लग जाथे। ए तिहार हा एकठन सोज्झे तिहार भर हा नइ होके हमर धार्मिक आस्था अउ विश्वास के दरपन आय। अपन गाँव-गवँई के रखवार हमर देवता-धामी मन के प्रति सरद्धा अउ आदर के भाव इही तिहार के चिन्हारी आय। हमर गवँइहा जीवनशैली मा नवा जोश अउ नवा उछाह जेठउनी तिहार के दिन ले भराथे। देवउठनी तिहार हा हमर परंपरा के सुग्घर संरक्छक आय जेखर बिन हमर छत्तीसगढ़ के रहन बसन हा अधूरा हे। ए तिहार हा पुरखा के बनाय तीज-तिहार ला परमपरा के रुप मा आज ले घलो बचाय राखे हावय। संसार के सरी जीनिस मा परिवर्तन होगे या फेर होवत हावय फेर हमर जेठउनी तिहार हा आधुनिकता के अतिक्रमण ले आरुग बाँचे हावय। परमपरा के जबर रखवार इही जेठउनी तिहार हा हरय। “राउत नाचा” सोहई बँधई, हाथा अउ दोहा पारे के परमपरा आज घलाव हावय। तुलसी माता के बिहाव के नेंग, बोइर, चना, तिवरा, चनौरी भाजी, बीही, कुसियार अउ उपास रहीके पूजा पाठ सरी जीनिस पुरखा ले चले आवत हे। तुलसी माता के बिहाव के संगे संग गाँव के सरी देव-धामी के मान गउन अउ आदर करे के सुघ्घर रिवाज आज घलो हावय। ए तिहार मा पुरखा मन के के बनाय चलाय परमपरा आस्था अउ विश्वास के मशाल ले जुरमिल के जला के थाम्हे रहे के जरुरत हे। अइसन सुग्घर तिहार हमर देश अउ समाज के सुमता बर बड़ महत्तम राखथे।
कन्हैया साहू “अमित”
शिक्षक-भाटापारा(छ.ग)
संपर्क~9753322055
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