अभिच के समे म देखले बेटी अऊ बेटा म लोगन मन फरक नई समझय,फेर तभो ले मोला लड़की आंव कईके मोर मन ह रहि रहि के जियानथे। मेंहा नानपन ले मोर महतारी के दुख अऊ तकलीफ ल देखत आवत हौ, हमर नानकुन परवार में मोर माँ,बाबू,तीन झन बहिनी अऊ चौथईया मा नानुक सबले छोटे भाई,माने तीन तीन बहिनी के बाद तको लड़का अवतरही कहिके फरक करईया वोकर सोच ल गुनथव त मोला अबड़ पीरा होथे। फेर काय करबे भाई के जनम के दू साल बाद मोर बाबु ह सरगवासी हो जथे,मोर महतारी ह ले देके बनी भूति,बिगारी करके हमन ल पालिस पोसिस, महू घर मा सबले बड़े रेहेव त महतारी के समे समे मा काम मा हाथ बटावत रेहेव। पानी,पसिया,पेज खवा के खुदे लाँघन भूखन रहिके पढईस लिखईस,त वो जमाना रिहिस जेमे मोर महतारी ह न समाज के चिंता करिस न पईसा कौड़ी के,गाँव ले बेटी मन ल बाहिर भेज भेज के पढईस लिखईस,छोटे भाई ल काबिल बनाइच। फेर जेन बन सकिच तिहा तिहा हमर मन के बर बिहाव तको कर डारिस,छोटे भाई के तको बिहाव हो जथे,वोहा अपन बाई ल गाँव से ले जथे अऊ दुरिहा शहर मा बस जथे। मोर महतारी अकेल्ला के अकेल्ला,भाई ह सुध नई लेवत रिहीस,बुढत काल में महतारी के पीरा ह बड़ बियापत रिहिस मोला,इहि चिंता मा घेरी भेरी मेंहा अपन महतारी करा चल दव,शुरू शुरू में ससुराल वाले मन काहीं नई काहत रिहीस,फेर अबड़ जवई अवई होजय त उहूँ मन मोला ताना मारय। काहय, तीन तीन बहिनी अऊ एक भाई में तोरेच ठेका हे का कहिके कऊवाजय, त मोला लड़की होय के पीरा ह अबड़ मने मन ल कचोटत रहाय। मोर महतारी ल काहव चल दाई मोर करा रहिबे कईके त उहूँ ह बोल दय बेटी घर कईसे रईहूँ ,का करबे हमन ल पढईस लिखईस,अपन पैर मा खड़ा करईस,आत्मनिरभर बने के रद्दा दिखाईस आज उहीं महतारी अपन जीवन के आखिरी पड़ाव म मया अऊ दुलार बर तरसत हे। इहीं पीरा ह मोला अबड़ जियानथे,ओकर बुढापा के लौठी के सहारा बनहूँ कहिथव त ससुराल वाले मन हिजगा पारी म मरत हे। जेन महतारी ह अपन लईका लोग के बाधा भगाय बर अपन जिंदगी ल खपा दिस,आज ओकर जिंदगी जीवई ह वोकरे बर, खुदे बाधा होगे हे,आज बेटी बचावव,बेटी पढ़ावव के नारा जम्मो कोई लगा थे,फेर कोनों नई काहय बेटी ल घलो अधिकार देवव,भले काहत फिरही शिक्षा अऊ संसकार दव,अईसने सहीच मा मोला अधिकार मिलतिस त मोर महतारी ह मोर करा रईतीस अऊ जिनगी के आखिरी पड़ाव मा मया दुलार बर नई तरसतित। का करबे बेटी अव कईके इही पीरा ह बड़ जियानथे।
– विजेंद्र वर्मा ‘अनजान’
नगरगाँव (जिला-रायपुर)