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गीत

देख रे आंखी, सुन रे कान: भगवती लाल सेन

बोले मं परही चटकन तान, देख रे आँखी सुन रे कान।
दही के भोरहा कपसा खायेन।
गजब साल ले धोखा पायेन।
गोठ गढ़ायेन, बहुत ओसायेन।
तेखरे सेती आज भोसायेन।
सीधा गिन के मिले खाय बर, खोजे कोनो डारा-पान।
जनम के चोरहा बनिन पुजारी।
सतवादी बर जेल दुआरी।
सिरतोन होगे आज लबारी।
करलई के दिन, झन कर चारी।
बड़ गोहार पारे सेवा के, भीतरी खायं करेजा चान।
कहिथे महंगी, होही सस्ती।
हाँसत गाँव के हो ही बस्ती।
अब गरीब के हो ही हस्ती।
हर जवान में हो ही मस्ती।
थोरको नइये तंत गोठ में, लबरा काला धरे उखान।
चोरहा मन सँग करें मितानी।
जइसे दूध में मिलथे पानी।
चौपट कर दिन आज किसानी।
पेरे सब ला उल्टा घानी
पर के बुध में चले राज जे, धारे-धार बोहाथे जान।

भगवती लाल सेन