अमरू- बाईक ल फर्राटा स्पीड मँ चलावत गेंट ले अँगना भीतरी घुसरीच। थथर-थईया करत धरा-रपटी बाईक खड़ा करके अँगना मँ बइठे अपन बबा कोती दौंड़ीच।
जुगुल दास- ओकर बबा हर ओकर हालत ल देख के अपन पढ़त किताब ल बंद करके कइथे, अरे धीर लगा के गाड़ी चलाय कर अराम से आव। तोला आज का होगे हे ?
अमरू- तीर म आके कहत हे,का बतावँ बबा आज तो जउँहर फंसगेवँ।
जुगुल दास- हो का गे तेला तो बता ?
अमरू- आज हमर बी.ए. सेकेण्ड ईयर क्लास के पहिला दिन रहिस, हमर कॉलेज मँ हिंदी पढ़ाय बर दिल्ली ले नवा मैडम आय हे।
जुगुल दास- त का होगे?
अमरू- पुरा बात ल तो सुन बबा।
जुगुल दास- ले न बता न ग।
अमरू- का हे न कक्षा मँ आईस सबसो परिचय पुछिस अउ परिचय बताईस तहाँ पढ़ाय ल चालू करिस।
पढ़ात-पढ़ात का कथिच का मथिच छत्तीसगढ़ी के बारे मँ पुछे ल धरलीस।
जुगुल दास- त बता दे रइते न।
अमरू- जतका पुछिस सब बतायेवँ कक्षा के अउ संगी मन घलो बताईन। फेर…?
जुगुल दास- फेर का ?
अमरू- बबा मैडम ह पुछिस धन्यवाद ल छत्तीसगढ़ी मँ का कइथें ? जतका झन कक्षा मँ रहेन सब के बोलती बंद होगे कोनो उत्तर नइ दे पायेन।
मैडम सब झन ल कहे हे अपन-अपन घर मँ पुछ के आहव कइके।
जुगुल दास- त तोला ए जानना हे की धन्यवाद ल छत्तीसगढ़ी मँ का कइथें ?
अमरू- हव बबा बता न ग ?
जुगुल दास- अमरू ल तरेरत आँखी करके कइथे हत रे जोजवा अतका ल नइ बता सके।
अमरू- कहत हे नइ बता सकेवँ तभे तो पुछत हवँ।
जुगुल दास- अपन भाव ल बदलत कइथे अरे जोजवा धन्यवाद ल छत्तीसगढ़ी मँ धन्यवाद ही कइथें धन्यवाद के छत्तीसगढ़ी मँ अउ कोनो आखर नइहे। एहर छत्तीसगढ़ी भाखा मँ आगत आखर आय, हिंदी ले मंगनी लेके बउरत हन।
अमरू- अइसन काबर ग बबा धन्यवाद ल धन्यवाद ही कहत हन एला नवा रूप तको तो देहे जा सकत हे धन्बाद घलो तो कइ सकत हन ?
जुगुल दास- अरे यार तुम नवा जमाना वाले मन करा इही तो गलत बात होथे। सोंचना न समझना, अपने अपन हाँकना, भला कोनो आखर के स्वरुप अउ अर्थ ल बिगाड़ के का मिलही।
अमरू- मुँह ल लटकाए खड़ा होगे।
जुगुल दास- बात अइसे हे बेटा हमर छत्तीसगढ़ के संस्कृति सबले अलग अउ निराला हे, इहाँ अपनापन के भाव बहुत जादा हे।
एक ठन बात घोख… तुम आजकल के पढ़ईया लिखईया मन कइथव न दोस्ती म नो सॉरी नो थैंक्स, अपन बीच मँ का धन्यवाद कहना यार छोड़ न।
अमरू- हव बबा अइसना तो कइथन।
जुगुल दास- हाँ अइसना कइथव बस अउ सबले जादा थैंक्स सॉरी धन्यवाद ल बोहाथव घलो, फेर हमर छत्तीसगढ़िया संस्कृति ह ए सैध्दांतिक बात ल व्यवहारिक जिनगी मँ उपयोग करथे।
अमरू- वो कइसे बबा ?
जुगुल दास- अरे अमरू बेटा हमर छत्तीसगढ़िया व्यवहारिक जिनगी बड़ मयारू हे सबके बीच भारी अपनापन हे मया हे , हमन कोनो ल दूसर नइ मानन तेकरे सेतिर धन्यवाद, थैंक्स जइसन आखर के निर्माण नइ होइस अउ ओकर उपयोग घलो। हमर पुरखा मन के सोंच ल देख कतका बढ़िया रहिस। एक बात अउ सामने वाला हमर बर कुछु करे रइथे त ओकर उपकार अउ सहयोग ल छोटे नइ करना चाहिन कोनो हमर बर भलाई के काम करिन त ओकर भविष्य बर दुआ करे के काम करिन … जेन तुमन दोस्ती म नो सॉरी नो थैंक्स कइथव वो सैध्दांतिक वाक्य ह छत्तीसगढ़ के व्यवहारिक जिनगी आय।
अमरू- का बबा आप तो गजब के बात बतायेव, अब इही बात ल मैडम ल काली बताहूँ काहत अमरू घर डाहर घुसर जाथे।
जुगुल दास- मुस्कावत फेर अपन किताब ल पढ़े ल धर लेथे।
अमरू- दूसर दिन अपन कक्षा म बबा के बताये बात ल मैडम ल बताथे मैडम अउ कक्षा के सबो संगी ए बात ल जानके बहुँत खुश होथे अउ अमरू घलो ल बताके हाय जीव लागथे, मैडम सो साबासी घलो मिलथे।
असकरन दास जोगी
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