काली खप्परवाली आगे ,काली खप्परवाली लप लप लप जीभ लमावत, रूप धरे विकराली सब दानव ल मरत देख के, शुम्भ… Read More
दिन कइसन अच्छा आ गे जी। मरहा खुरहा पोक्खा गे जी ।। बस्ती बस्ती उजार कुंदरा महल अटारी तना गे… Read More
रचना कोनो बिधा के होवय रचयिता के अपन विचार होथे। मैं चाहथौं के मोर मन के बात लोगन तीर सोझे… Read More
नेवता हे आव चले आव मोर गाँव के होवथे बिहाव। घूम घूम के बादर ह गुदुम बजाथे मेचका भिंदोल मिल… Read More
पानी हॅ जिनगी के साक्षात स्वरूप ये। जीवन जगत बर अमृत ये। पानी हँ सुग्घर धार के रूप धरे बरोबर… Read More
मोर गाँव ले गँवई गँवागे बटकी के बासी खवई गँवागे मुड़ ले उड़ागे पागा खुमरी पाँव ले पनही भँदई गँवागे… Read More
कोनो भी बाबा के सफलता के पछीत म कोर्ह न कोई बवइन के पलौंदी जरूर होथें। मैं अपन चोरी चमारी… Read More
अहिल्या हॅं दुये चार कौंरा भात ल खाये रिहिस होही। ओतकेच बेरा परमिला झरफिर झरफिर करत आइस । ओरवाती के… Read More
छत्तीसगढी सहज हास्य और प्रखर ब्यंग्य की भाषा है। काव्य मंचों पर मेरा एक एक पेटेंट डॉयलाग होता है, 'मेरे… Read More
1.नशा हॅ नाशी होथे नशा हॅ नाशी होथे सुख के फाॅसी होथे घिसे गुड़ाखू माखुर खाए दाँत हलाए मुँह बस्साए… Read More