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कहानी – देवारी के कुरीति

गाँव म देवारी के लिपई-पोतई चलत रिहिस। सुघ्घर घर-दुवार मन ल रंग-रंग के वारनिश लगात रहिस। जम्मो घर म हाँसी-खुशी के महौल रिहिस। लइका मन किसम-किसम के फटाका ल फोरत रिहिस। एक झन ननकी लइका ह अपन बबा संग म घर के मुहाटी म बइठे रिहिस। ओ लइका ह बड़ जिग्यासु परवित्ति के रहिस। लइका मन ह बड़ सवालिया किसम के रहिथे। उदुक के अपन बबा ले पूछिस – बबा हमन देवारी तिहार ल कब ले अऊ काबर मनाथन। बबा ह ओ लइका ल राम भगवान के अयोद्धया लहुटे के कहानी ल सुनइस कि इही खुसी म देवारी के तिहार ल उही समे ले मनाते। राम भगवान के जम्मो कहानी ल सुनिस त ओखर मन म बड़ अकन सवाल अऊ आईस, जम्मो ठन ल पूछत गिस कि काबर ओला वनवास भेजिस? रावण ल काबर मारिस? बबा ह जम्मो ठन के जुवाब दिस।
देवारी के रतिहा कुन जम्मो घर म लक्ष्मी माई के पूजा-पाठ करके परसाद अमरईक अमरा होईस, परसाद पईस। ताहन लइका ह अपन बबा संग गउरा-गऊरी ठउर म पहुँचीस। ऊहाँ जम्मो लोगन मन ह सकलाय रिहिस। नोनी जात अऊ माई लोगन मन ह चऊरा म फूल कुचलत रहय, गउरा-गऊरी पार के बाजा बाजत रहय। लइका ह बड़ खुस होईस। लइका, जवान मन फटाका फोड़त रहाय। एकेच कनि होईस ताहन कलसा परघाय बर निकलिस। कलसा परघावत-परघावत गाँव भर म घुमिस। ओखर बाद म गउरा-गऊरी परघाय बर गिस। बबा ह लइका ल गउरा-गऊरी के कहानी घलो सुनाइस। रतिहा बड़ होवत रिहिस, घर जावत रिहिस त लइका ह देखिस कि सियान मन ह बाजू म दारू के निशा म ताश, खड़खाडिया, जुआ खेलई म भुलाय हवै अऊ आनी-बानी के गारी एक-दूसर ल बकत हवै। लइका के मन म फेर एक ठन सवाल ह उठिस कि देवारी के जम्मो पूजा-पाठ के कहानी त सुनेव फेर ये ताश, जुआ, दारू पियई के कहानी का होही? रतिहा होगे रिहिस त बबा ह लइका ल सुतेबर कहिस। फेर लइका के मन म ईही सवाल ह घुमत रिहिस।
दुसरईया दिन खिचरी खवाय के दिन रहिस। मंझनिया कुन रऊत मन ह घरो-घर म गिस अऊ बइला-बछरू ल सोहई बाँधिस। ताहन बइला-बछरू मन ल खिचरी खवाईस। भात खायके बेरा म घलो मखना-कोचई ल खावत-खावत लइका के दिमाक म उही सवाल ह दिमाक म भटकत रहिस। भात खईस ताहन ओ लइका ले अब नि रहिगिस। बबा तिर म गिस अऊ पूछ परिस – “देवारी के जम्मो ठन कहानी समझगेव, फेर ये दारू पियई अऊ ताश खेलई के पाछू का कहानी हवय गा बबा?” लइका के सवाल म बबा ल बड़ दुख लागिस। ओखर मुड़ी हा समाज के अईसन कुरीति अऊ लइका के आघू म झुक गिस। लइका के सवाल के आघू म बबा घलो निरूत्तर हो गिस। बबा ह अतके भर कहिस – “बेटा! इही जम्मो बुरई अऊ पाप के सेती त राक्षस मन के नाश होईस, अईसन बुरई तै कभू झन करबे।”
सिक्छा:- देवारी म जुआ खेलई, दारू पियई जइसन बुरई अऊ कुरीति ल नाश करबो, तभे हमर समाज अऊ नवा अवइया पीढ़ि ल आघू बढ़ा पाबो। निहि त बुरई करईया मन के सबो जगा नाशेच होथे।

पुष्पराज साहू “राज”
बोइरगांव-छुरा (गरियाबंद)

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