छत्तीसगढ़ मा छन्द-जागरण
ये जान के मन परसन होईस कि नवागढ़ (बेमेतरा) के कवि रमेश कुमार सिंह चौहान, दोहा छन्द ऊपर “दोहा के रंग” नाम के एक किताब छपवात हे। एखर पहिली रमेश चौहान जी के किताब “सुरता” जेमा छत्तीसगढ़ी कविता, गीत के अलावा कई बहुत अकन छंद के संग्रह हे, छप चुके हे. कुछ दिन पहिली ईंकर छत्तीसगढ़ी के कुण्डलिया छंद संग्रह ““आँखी रहिके अंधरा” के विमोचन घलो होय हे।
हमर देश के साहित्य अमर साहित्य आय. कई बछर पहिली गढ़े रचना मन ला आज भी हमन पढ़त औ गूनत हन. भक्ति रस, वीर रस, सिंगार रस, करुण रस, वात्सल्य रस जइसे जम्मो रस के समुन्दर समाय हे हमर तइहा के जमाना के साहित्य मा. जीये के रीत अउ सत चरित के नीत घला सिखाय हे हमर पुरखा कवि मन ह। वो जमाना मा छापाखाना के सुविधा नइ रहिस. फेर ऊँकर कविता मा गेयता रहिस. ये गेयता उनकर छंद के अनुसासन मा बंधे के कारन आइस ते पाय के ऊँकर कविता सुनइया मन के मन मा रच-बस के आज हमर तीर पहुँच सकिस. काव्य के अमरता बर अनुसासन जरुरी हे अउ अनुसासन बर छन्द जरुरी हे।
अब छत्तीसगढ़ के बात करे जाय त इहाँ घला बड़े-बड़े कवि मन जनम ले हे अउ अमर साहित्य के सिरजन करीन हे। इही साहित्य हमर थाती आय। मोर अपन जानकारी मा पण्डित सुन्दरलाल शर्मा के छन्द युग जनकवि कोदूराम “दलित” के युग तक बढ़िया चलिस तेखर बाद छन्द मा लिखे के चलन बिलकुल बंद तो नइ होइस फेर बहुते कमती होगे. पण्डित दानेश्वर शर्मा, लक्ष्मन मस्तुरिया, रघुवीर अग्रवाल पथिक, मुकुंद कौशल जइसे कवि मन छन्द विधा ला आज भी बचा के रखे हें। हमला इंकर साहित्य ला सुन के, गून के छत्तीसगढ़ी साहित्य ला अउ समरिध करे के उदिम करना चाही।
छत्तीसगढ़ी साहित्य मा छन्द के नवा पीढ़ी तैयार करे बर महूँ सरलग उदिम करत हंव, आज जिहाँ छत्तीसगढ़ी त छत्तीसगढ़ी, हिन्दीँ म घला छंद विधा नंदावत हे उहाँ अचरिज के बात आय कि रमेश चौहान जइसे कवि छन्द के धरोहर ला बचाय बर रात-दिन उदिम करत हे. वोमन फेसबुक, वाट्स-अप, ब्लॉग जइसन नवा साधन के उपयोग करके नवा पीढ़ी ला छन्द लिखे अउ सीखे बर प्रेरित करत हें।
पर साल ओमन नवागढ़ मा छंद ऊपर कार्यशाला आयोजित करीन उही कार्यक्रम मा इंटरनेट तको बर विशेषग्य संजीव तिवारी जी ला बुलाके एक कार्यशाला कर डारिन जेमा नवागढ़, मुंगेली, थान खम्हरिया अउ बेमेतरा के कवि मन छन्द अउ इन्टरनेट के बारे में जानकारी पाइन. ये प्रोग्राम मा रमेश चौहान जी ले भेंट होइस. तेखर बाद ले हम दुन्नों छत्तीसगढ़ मा छन्द-बद्ध कविता रचौया के नवा फसल तैयार करे बर , छन्द के माहौल बनाए बर भिड़े हन।
आज ये देख के मन परसन होवत हे कि वाट्स-एप के बहुत अकन ग्रूप मा छन्द के बढ़िया माहौल बन गे हे। रमेश चौहान जी छत्तीसगढ़ी मंच बनाके नवा पीढ़ी ला प्रेरित करे बर छन्द के जानकारी देवत हें अउ प्रतियोगिता आयोजित करके उनला प्रोत्साहित भी करत हें।
“दोहा के रंग” मा दोहा छंद के बारे में कई तरह के जानकारी दे गे हे । दोहा काला कहिथें, दोहा के विधान का हे, दोहा कतिक किसिम के होथे, दोहा कइसे लिखे जाथे, के संगेसंग ये किताब मा छन्द लिखे बर स्वर- बियंजन, लघु-गुरु के जानकारी, मात्रा गिने के नियम, गेयता बर नियम, तुकान्त के नियम जइसे मूलभूत जानकारी विस्तार से उदाहरण सहित समझाए गे हे। ये किताब छन्द सिखइया बर व्याकरण किताब के काम घलो करिही। दोहा छन्द के नवा-नवा प्रयोग जइसे दोहा-गीत, दोहा-मुक्तक, दोहा-ददरिया, दोहा-fसंहावलोकनी ये किताब मा पढ़े बर मिलही।
दोहा के रंग मा जउन जउन विषय ऊपर रमेश चौहान जी दोहा लिखे हें वोला देख के मानी दंग रहिगेंव. आपमान छत्तीसगढ़ के परम्परा, संस्कार, संस्कृति के अलावा भी विषय ला चुने हव। नदिया, तरिया, जंगल-झाड़ी, महतारी, भुइंयाँ के महिमा, खेत-खलिहान जइसन विषय मा तो सब लिखथें, फेर ये किताब मा मोला जउन विषय बिल्कुलेच नवा लागिस ओला रेखांकित करे बिना मन नइ माढही, आपो मन देखव –
दाई नवगढ़हिन –
दाई नवगढ़हिन हवय, माना तरिया पार।
नाव महामाया हवय, महिमा हवय अपार।।
दाई खमरछठ –
जय हो दाई खमरछठ, महिमा तोर अपार।
लइका मन बर दे असिस, करत हवन गोहार।।
दामाखेड़ा धाम के महिमा–
दामाखेड़ा धाम मा, हे साहेब कबीर।
ज्ञानी ध्यानी मन जिहां, बइठे बने फकीर।।
देव उठानी –
आज देवउठनी हवय, चुहकबो कुसीयार।
रतिहा छितका तापबो, जुर मिल के परिवार।।
पितर पाख –
पितर पाख मा देवता, पुरखा बन के आय।
कोनो दाई अउ ददा, कोनो बबा कहाय।।
तीजा-पोरा –
लइकापन मा खेल के, सगली भतली खेल।
पुतरा-पुतरी जोर के, करे रहिस ओ मेल।।
ओखर दीया चुकिया, राखे हंव मैं जोर। तीजा पोरा आत हे…
छेरछेरा –
आज छेरछेरा परब, दे कोठी के धान।
अन्न दान ले ना बड़े, जग मा कोनो दान।
गुरु घासीदास –
सतगुरू घासी दास के, हवय अमर संदेस।
सत्य अfहंसा धैर्य ले, मेटव मन के क्लेस।।
शिर्डी के साईँ बाबा –
शिरड़ी के सांई कहय, सबके मालिक एक।
जात धरम काहीं रहय, मनखे होवय नेक।।
सतनाम –
जय बोलव सतनाम के, जय जय जय सतनाम।
जय हो घासीदास के, जय जय जय जतखाम
धन्वन्तरी –
जय जय हे धनवंतरी, दव हमला वरदान।
स्वस्थ रहय तन मन हमर, स्वस्थ रहय सम्मान।।
लाल बहादुर –
लाल बहादुर लाल हे, हमर देश के शान।
सीधा-सादा सादगी, जेखर हे पहिचान।।
जंगल मन नंदावत हें ते पाय के बेंदरा मन बस्ती मा आवत हें, अइसन विषय मा घलो कवि के चिंतन दिखत हे-
जंगल झाड़ी काट के, मनखे करे कमाल।
रहय कहां अब बेंदरा, अइसन हे जब हाल।।
छाती मा ओ कूद के, लड़त हवे ना जंग। डहत हवे गा बेंदराबेजा
कब्जा –
गली गली हर गांव मा, बेजा कब्जा घात।
जेला देखव ते करे, जगह जगह उत्पात।।
अउ सहिष्णुता जइसे ताजा अउ नवा विषय घलो ये किताब मा मिलही –
टी.वी. भूकय रात दिन, काखर पइसा पाय।
सहिष्णुता आय का, कोनो नई बताय।।
आजकाल अपन-आप ला साहित्यकार बताये के खातिर कुछ मन दूसर के कविता अउ लेख ला चोरा के अपन नाम मा छपवात हें, एखरो ऊपर चौहान जी दोहा गढ़ डारिन हें –
एक डाड लिख ना सकय, कवि कहाय के साध।
पढ़े लिखे वो चोर हा, करत हवे अपराध।।
शारद के परसाद के, करे ओ तिरस्कार। चोर चोर ओ चोर हे
रमेश चौहान जी नवा जमाना के संग चले बर कहूँ-कहूँ मेर अंगरेजी के चलन संग चले मा परहेज नइ करीन हे –
मेनी हेप्पी बड्ड डे, आज जनम दिन तोर।
हवय मोर शुभकामना, होवय तोरे शोर।।
सच्चा कवि वो होथे जेन अपन गाँव, शहर, राज, देस अउ बिदेस के खोज-खबर रखथे.रमेश चौहान जी के कविता अउ छन्द मा एक सच्चा कवि दीखत हे, गरीबहा मन के दुःख पीरा के संगेसंग छिनइया मन बर उनकर छाती मा आगी घलो धधकत दिखथे. दारू, तम्बाखू, जुआ जइसन सामाजिक बुराई ले सचेत कराये बर भी उनकर कलम चले हे. मोला पूरा भरोसा हे कि अइसन कविता अउ छन्द के किताब मन छत्तीसगढ़ी साहित्य ला समरिध करिही संगेसंग नवा पीढ़ी ला घलो संस्कारवान बनाही. भाई रमेश चौहान ला अइसन सुग्घर उदिम बर मानी गाड़ा-गाड़ा बधाई देवत हौं ।
– अरुण कुमार निगम
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