सियान मन के सीख ला माने म ही भलाई हे। संगवारी हो तइहा के सियान मन कहय-बेटा ! दुसर के दुख ला देख रे! फेर संगवारी हो हमन उॅखर बात ला बने ढंग ले समझ नई पाएन। काबर उमन कहय के दुसर के दुख ला देख। संगवारी हो ये दुनिया में भांति-भांति के मनखे हे। कोनो मन दुसर के दुख ला नई देखे सकय त कोनो मन दुसर के सुख ला नई देखे सकय यहू हर अड़बड़ सोचे के बात हरय।
तइहा के मनखे मन के मन में जम्मों जीव-जन्तु बर दया-मया राहय काबर कि उमन एक बात ला गठिया के धरे राहय कि जइसे हम करम करबो तेखर वइसे फल हमन ला खच्चित मिलही अउ एखरे सेती उमन दूसर के जीव ला सुख पहुॅचाय के उदिम करय जेखर से अपनो आत्मा ला सुख मिलय।
तइहा के मनखे मन धरम करम ला घलाव जिनगी के एक अहम हिस्सा मान के चलय। जघा-जघा रामायन अउ गीता, भागवत जइसे धरम ग्रन्थ के पाठ होते राहय जउन हर मनखे ला सोझ रद्दा में रेंगे के सीख देवय।
आखिर अब अइसे का हो गे कि हमन ला ये सुने बर मिलथे कि अब के मनखे न पाप ला डेरावय न पुन ला। संगवारी हो ये बात हर कोनो छोटे बात नो हय। हमन ला एखर उपर गंभीरता से विचार करना चाही के आखिर आज के मनखे अतेक निडर काबर हो गे कि वो हर पाप अउ पुन दुनो ल नई डेरावय अउ एखरे सेती आज के दुनिया में कोनो मनखे अपन आप ला सुरक्षित महसूस नई करय काबर कि वो हर जानत रहिथे कि कब काखर भीतर के शैतान जाग जाय अउ कब कोन कुकर्मी हो जाय तेकर कोनो भरोसा नई हे।
अब न कोनो लइका सुरक्षित हे, न जवान अउ न सियान। एक जमाना रहिस हे जब मनखे हर जंगल के जीव ला डेरावय। अब मनखे हर मनखे ला डेराथे यहू हर बड़ सोचे के बात हरय।
एक जमाना रहिस हावय जब हमर देस म दूध अउ दही के नदिया बोहावय। अब हमर राज म खाली नसा के नदिया बोहाथे। जउन चीज ला तइहा के मनखे बस्ती ले दुरिहा राखय तउन हर आज हमर बीच बजार म घर कर ले हावय। मंदिर ले जादा भीड़ अब हमन ला नसा के दुकान म देखे बर मिलथे। दुख तब होथे जब छोटे-छोटे उमर के लइकन मन ला ये दुकान में बेधड़क खड़े देखथन। आखिर हमर भविष्य के का होही तेखर पता नई हे। हमन अपन ऑखी ले अपने लइकन मन ला के भविष्य ला बरबाद होवत देखत हावन।
पहिली हमन रूख-राई के विनास करेन, अब रूख-राई लगावत हावन। पहिली हमन तरिया-नदिया ला पाट डारेन अब ओला जियाये खातिर ओखर सफाई में लगे हावन। पहिली हमन चिरइ-चुरगुन ला मार डारेन ओखर धियान नई करेन अब उमन ला बचाए खातिर भिड़े हावन। पहिली हमन गउ माता के घलाव धियान नई रखेन अब नकली दूध के जहर पिये बर हमन ला परत हावय। अतका होय के बावजूद आज हमन अपने ऑखी में छोटे-छोटे लइकन मन ला नसा के रद़दा में रेगत देखत हावन बीच बजार में नसा के दुकान ला चमकत देखत हावन। जब हमरे जनमाय लइकन मन हमरे बर टंगिया उबाही तब हमन ला कोन बचाही एखर चिंता अभी हमन ला नई घेरे हावय। कभू-कभू लगथे के दुनिया हर आगे जावत हे कि पीछू तेखर पता नई हे या फेर हमन जान-बूझ के अनजान बने के कोशिश करथन।
आजकल हमन ला दुसर के दुख-पीरा हर कमती जनाथे तभे तो हमन देरी ले जागथन। गोस्वामी तुलसी दास हर रामायण में लिखे हावय-
का वर्षा तब कृषि सुखानी। समय चूक पुनि का पछतानी।।
हमन अपन भाखा म कहिथन के पूरा आय ले पार बांधे के कोनो मतलब नई होवय। समय रहिते हमन ला जागे बर परही नही तो जइसे हमन करबो तेखर फल ला तो भोगे बर परबेच करही एखरे सेती हमन ला दुसर के दुख ला देख के ओला दुरिहा करे के प्रयास करना चाही जेखर से हमर जीवन सुखी हो सकय। जब तक कोनो एक जीव हमर आगू म दुखी हावय हमन ला संपूर्ण सुख नई मिल सकय। सियान बिना धियान नई होवय। तभे तो उॅखर सीख ला गठिया के धरे म ही भलाई हावय। सियान मन के सीख ला माने म ही भलाई हावय।
रश्मि रामेश्वर गुप्ता
बिलासपुर