रूख राई ल झन काटो , जिनगी के अधार हरे ।
एकर बिना जीव जन्तु , अऊ पुरखा हमर नइ तरे ।
इही पेड़ ह फल देथे , जेला सब झन खाथन ।
मिलथे बिटामिन शरीर ल , जिनगी के मजा पाथन ।
सुक्खा लकड़ी बीने बर , जंगल झाड़ी जाथन ।
थक जाथन जब रेंगत रेंगत, छांव में सुरताथन ।
सबो पेड़ ह कटा जाही त , कहां ले छांव पाहू ।
बढ़ जाही परदूसन ह , कहां ले फल ल खाहू ।
चिरई चिरगुन जीव जंतु मन , पेड़ में घर बनाथे ।
थके हारे घूम के आथे , पेड़ में सब सुरताथे ।
झन उजारो एकर घर ल , अपन मितान बनाओ ।
सबके जीव बचाये खातिर, एक एक पेड़ लगाओ ।
महेन्द्र देवांगन “माटी”
पंडरिया
(छत्तीसगढ़ )
मो नं — 8602407353
Email – mahendradewanganmati@gmail.com
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