गरमी अब्बड़ बाढ़त हे, कइसे दिन ल पहाबो।
गरम गरम हावा चलत हे, कूलर पंखा चलाबो।।
घेरी बेरी प्यास लगत हे , पानी दिनभर पियाथे ।
भात ह खवाय नही जी, बासी गट गट लिलाथे।
आमा के चटनी ह, गरमी म अब्बड़ मिठाथे।
नान नान लइका मन, नून मिरचा संग खाथे।
पेड़ सबो कटा गेहे, छाँव कहा ले पाबो।
पानी सबो सुखा गेहे, प्यास कइसे बुझाबो।।
चिरई चिरगुन भटकत हे, चारा खाय बर तड़पत हे।
पेड़ सबो कटा गेहे, घोसला बनाय बर तरसत हे।
प्रिया देवांगन “प्रियू”
पंडरिया (कवर्धा )
छत्तीसगढ़