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गिरिवर दास वैष्णव के गीत

सत्तावन के सत्यानाश

किस्सा आप लोगन ला,
एक सुनावत हौ भाई।
अट्टारह सौ सन्‍्तावन के,
साल हमर बड़ दुखदाई।
बादसाह बिन राज हमर,
भारत मां वो दिन होवत रहिस।
अपन नीचता से पठान मन,
अपन राज ला खोवत रहिस।
इन ला सबो किसिम से,
नालायक अंगरेज समझ लेईन।
तब विलायती चीज लान,
सुन्दर-सुन्दर इन ला देहन।
करिस खुशामद खूब रात दिन,
इन ला ठग के मिला लेइस।
और जमीन लेके थोड़े से,
कीमत ला चौगुन देइस।
कपड़ा लत्ता रंग रंग के,
घड़ी-घड़ी दे ललचाइस।
तब बेटा से बाप अऊ,
भाई से भाई लड़वाइस।
कूट नीत करके उन ला,
उन्हीं लोगन में धंसवाइस।
सेना भर मा फूट डाल,
दिल्ली के गद्दी हथियाइस।
बना कम्पनी दस बारा झन,
राज इहां के करे लगिन।
मारपीट ठग-ठग के रुपिया
पैसा घर मा भरे लगिन।
बना बना के कानून हमर,
व्यापार बन्द करवा देइन।
आपुस मा कटके मर जाहव,
कहि हथियार लुटा लेइन।
तब हिन्दू और मुसलमान मन,
दांत पीस के बदल गइन।
खोज-खोज के अंगरेज ला,
काट-काट के कुढ़ों दे हिन।
कुछ दिन गये बाद बलवा,
हिन्दुन मन बन्द करिन भाई।
तब सलाह कर गोरी सेना,
हिन्दूस्थान उमड़ आई।
लाखों ला सूली देवा देइन,
लाखों ला फांसी चढ़ा देइन।
लाखों घर आगी लगा देइन।
लाखों के घर ला लुटा देइन।
गोली से लाखों उड़ा उड़ा,
कतकों ला जिन्दा गड़ा देइन।
खड़ा करा के तोपों के,
मुहड़ा मा सबला चुका देइन।
मुसलमान हिन्दुन के मुरदा,
से धरती ला पटा देइन।
बड़े-बड़े ला दे जिमीदारी,
अपन डहर झट मिला लेइन।
भारत भर मा मार काट,
खून के नदिया बहा देईन।
पराधीनता के बेड़ी बस,
ओही दिन पहिरा देईस।
अपन दुख ला हमला देके,
हमर सुख ला ले लेईस।
पोकला फांसी रहिन ओमन,
तैसे अब हमला बना देईस।
दाना दाना बर फिफिया के,
गली-गली मां घुमा देईस।

देश के दीनता

हमर देश हर दिन के दिन,
कैसे ररुहा होवत जाथे।
सात किरोड़ एक जुवार,
खाके रतिहा भूखे सो जाथे।
का होगे कुछ गत नईपावन,
चिन्ता सब के जिव आगे।
ऊपर मा सब बने दीखथ,
अन्तस मा घूना खागे।
दौड़-दौड़ के लकर लकर,
बिन खाये पिये कमाथन गा।
तभो ले चिन्ता श्रम नइ होवे,
दुख दूना हम पाथन गा।
खेत बनाथन घर सिरजाथन,
अपन डहर ले सब करथन
कोनों काम नहीं बाकी
जेला हम आजनहीं धरथन।
जूता लात खात मालिक घर,
कर कर बनी देत हन प्रान।
भर पेट तभो ले मिलय नहीं,
खाये बर हमला हे भगवान।
मजदूर किसान अभी भारत के,
एक संगठन नइकरिहव।
थोरिक दिन मा देखत रहिहौ,
बिन मौत के तुम मरिहौ।
राज करैया राजा हर तो,
अब व्यापार करै लगिस।
सबो चीज ला लूटव तीरव,
अत के ध्यान धेर लगिस।
येकर नीयत निचट गड़गे,
अब हमार केवा माचिस।
जत का रहिस सबोला लेगे,
ईहां हमर बर का बांचिस।
भुखमर्रा हम भयेन दिनों दिन,
सब व्यापार अपन लैलिस।
राजनीति के धरम छोड़ के,
अपन देश ला भर डारिस।
भुखमर्रा हम भयेन हहां,
गुलछर्र वहां उड़े लागिस।
रोजगार नौकरी मिलै नहीं,
तन ढांके बर कपड़ा नइये।
आधा पेठ एक जुवार खाके,
रुख तर लाखो रहियथें।
छप्पन के दुकाल मा नब्बे,
लाल भूंख मा मरे रहिन।
छेहत्तर के साल बहत्तर,
लाख मारिन जरजूड़ बहिन।
भूकम्प बिहार बिहार भईस तेमा,
दस लाख मरिन सब घर धसगे।
हरसाल मरत है लैका बावन,
लाख देश के सब कहर ढरगे।
ओही चिल्लायत मा राजा हर,
सब्बो ला पूंछत रहिथे।
जेला काम नैइ मिलै तेला,
साठ रुपै महिना देथे।
हमर देश के कंगालन,
भूखम मा मरे परे रहिथें।
पुछवैया तक नहीं इहां के,
रो रो के सब दुख सहिधें।
हमरदेश के सब विकास ला,
कुछ बरोबर नैइ समझे।
जूता घूंसा हुद्दा थप्पड़,
हंटर मुटका दे खीझैं।
कान धरा के उठवाथें,
अउ कान धरा के बैठाथें।
सूबर कुत्ता साले पाजी,
कहि, किह दुरगत करवाथे
मजदूर किसान विलायत भरके,
ला हावै सब्बो अधिकार।
तनखा भर राजा ला देथे।
फौज खजाना उंकरे भार।
सब किसान मजदूर विलायत,
भर के सुमता कर लेइन।
असटम ऐटवर्ड राजा ला,
सिंघासन ले उठा देइन।
ऊन हूँ मन किसान नोहे का,
टूठन मुंड उंकर हावै।
कहै कहै उंकर सब
चाहे जइसे करवावै।

गिरिवर दास वैष्णव