सुन-सुन रसिया !
आंखी के काजर लगय हंसिया
चंदा ल रोकेंव, सुरुज रोकेंव
रोकंव कइसे उमर ला
चुरुवा भर-भर, पियैव ससन भर
गुरतुर तोर नजरला
मोर मन बसिया!
तोर आँखी के काजर लगय हंसिया।
सुन-सुन रसिया!
गिनत-गिनत दिन, महिना, बच्छर
मोर खियागे अंगरी
रद्द देखते-देखत बैरी
आँखी भइगे झेंझरी
बैरी अपजसिया!
तोर आँखी के काजर लगय हँसिया।
सुन सुन रसिया!
तोर बिन जिनगी ह मोला लागय
जइसे जल बिना तरिया
सांसा के आरी ह चीरे करेजा
सपना ह बन गे फरिया
बैरी परलोखिया !
तोर आँखी के काजर लगय हँसिया।
सुन सुन रसिया।
हरि ठाकुर