गीत

बादर गीत: हरि ठाकुर

भरगे ताल तरैया, भेया भरगे ताल तरैया
झिमिर झिमिर जस पानी बरसे
महके खेत खार के माटी
घुड़र घुड़र जस बादर गरजै
डोलै नदिया परबत घाटी
नांगर धरके निकलिन घर से, सबै किसान कमैया॥
इतरावत है नदिया, लागिस
झड़ी गजब रे ! सावन के
बादर सेना घुमड़िन जइसे
राम लखन अउ रावन के
पानी बादर के भाटों के घर के राम रखैया ॥
‘फूले लागिस धरती हरियर
लुगरा भुइंया पहिने नाचिस
अउर जोगिनी बरिस रात मां
जइसे सिता गइस माचिस
खोंदरा में चुचुवात खुसरे हवें गरीब चिरैया
कब सुकुवा उथे अउ बुड़थे
गम नहीं कभू मिल पावे
संझा अस लगथै बिहान अऊ
कमल कमल न खिल पावै।
बादर चिचियावत हय दिन भर बनगै कहाँ! परैया।

हरि ठाकुर

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