रायपुर, छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग और बिलासपुर संभाग सहित ज्यादातर उत्तरी इलाका पिछले दो दशक से से मानव-हाथी द्वंद की समस्या से ग्रसित है. यहां जंगली हाथियों के द्वारा किये जा रहे उत्पात की खबरें आये दिन समाचारों की सुर्खियां बनती है. हर दिन हाथी जंगली इलाके के गांवों में पहुंचकर जन धन को नुकसान पहुंचा रहे हैं. गांवों में जंगली हाथियों का झुंड पहुंचकर घरों को तहस नहस कर रहे हैं और फसलों के साथ साथ घरों में रखे गये अन्न को नुकसान पहुंचा रहे हैं. कई स्थानों पर हाथियों द्वारा कुचले जाने से मनुष्यों की मृत्यू की खबरें छत्तीसगढ़ में आम बात हो गई है. इस समस्या से निजात दिलाने के लिये छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय,जो स्वयं हाथी प्रभावित इलाके से आते हैं बेहद संवेदनशील हैं. मुख्यमंत्री बनने के बाद विष्णुदेव साय ने हाथी की समस्या से आम जन को निजात दिलाने के लिये लगातार पहल कर रहें हैं और उन्होंने वन विभाग के अधिकारियों को इस समस्या के समाधान के लिये सार्थक प्रयास करने के निर्देश दिये हैं.
छत्तीसगढ़ के जंगलों से हाथियों का रिश्ता बहुत पुराना है. हजारों कही-सुनी कहानियों और ऐतिहासिक प्रमाणों के अलावा बिलासपुर जिले के ब्रिटिश गजेटियर भी इस बात की मुद्रित गवाही देता है कि औरंगजेब के समय तक मुगल शासक बिलासपुर क्षेत्र से हाथियों की खरीददारी किया करते थे. इसके अलावा तुमान, पाली, मल्हार जैसे ऐतिहासिक महत्व के स्थानों की खुदाई में ऐसे सिक्के भी मिले हैं, जिसमें प्रतीक के रूप में हाथियों का अंकन है.. इतिहास में भी इस बात का जिक्र मिलता है कि खिलजी वंश से लेकर मुगल शासन काल तक हाथियों की आपूर्ति छत्तीसगढ़ से ही की जाती थी… यहां के हाथी को ही प्रशिक्षित करके सेना में भेजा जाता था.. इस बात का भी पुख्ता प्रमाण है कि 1930 के त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन में भी रसद लेकर यहां से हाथी गए थे.
छत्तीसगढ़ के जंगल हाथियों के लिए पसंद का रहवास शुरू से ही रहा है, मगर हाथियों का ऐसा आतंक और हाथी मानव द्वंद्व ऐसा पहले कभी नहीं रहा जैसा कि इन दिनों दिखाई दे जाता है..मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के मार्गदर्शन में राज्य सरकार द्वारा मानव हाथी द्वंद को रोकने लगातार जन जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है.. सरगुजा से ‘‘हमर हाथी हमर गोठ’’ रेडियो कार्यक्रम का प्रसारण कर हाथियों के विचरण की जानकारी स्थानीय लोगों को दी जा रही है..मुख्यमंत्री साय के निर्देश पर राज्य सरकार द्वारा स्थानीय जनों को अपनी ओर हाथियों की सुरक्षा के प्रति संवेदनशील बनाने गज यात्रा अभियान चलाया जा रहा है. साथ ही ‘‘गज संकेत एवं सजग एप’’ के माध्यम से भी हाथी विचरण की जानकारी दी जा रही है.
छत्तीसगढ़ में 1950 में तिमोर पिंगला में हाथी आखरी बार देखा गया था उसके बाद हाथी दिखे 1980 में उसके पीछे का कारण ओपन कास्ट माइनिंग की वजह से झारखंड, बिहार और उडीसा में बड़े पैमाने पर जंगलों का कट जाना बताया जाता है..सच तो ये है कि यदि हाथी छत्तीसगढ़ को अपने रहने के लिए उपयुक्त स्थान पाते हैं तो ये छ.ग. का सौभाग्य है.. अजब संयोग है कि रहवास के लिए स्थल चयन को लेकर हाथी और मानव में बहुत समानता पाई जाती है.. जिस जगह को मानव अपने रहने के काबिल पाता है ठीक वही जगह हाथियों को अपने लिए जचता है. जल की उपलब्धता वाला घना हरा जंगल यदि मनुष्य को रास आता है तो हाथियों की भी यही पहली पसंद है.. पहाड़ी की तराई यदि मनुष्यों को पसंद है तो हाथी भी रह जाने के लिए ऐसी ही जगहों की खोज में होता है…आंख बंद कर के इस बात की घोषणा की जा सकती है कि वो स्थान प्राकृतिक संसाधनों से सुसज्जित होगा, जहाॅ हाथी जा बसते हैं.
हाथी अपने रहने के लिए उन्हीं स्थानों का चयन करता है, जहाॅ हरियाली बिखरी पड़ी हो क्योंकि यही हरियाली हाथियों के उदरपर्ति में भी सहयोगी होता है..संयोग से ऐसी ही हरियाली मनुष्य भी अपने लिए ढूंढता है.. इंसान और हाथियों के बीच की इसी समानता ने एक हकूक की लड़ाई को भी जन्म दे दिया है.. मानव हाथी द्वंद्व को रोकने की जो सफल कोशिश छत्तीसगढ़ की साय सरकार ने की है वैसा पहले नहीं हो पाया था. उनकी सरकार आने के बाद ऐसे हादसों में बहुत कमी देखी गई है.
तमोर पिंगला अभयारण्य के पास स्थित घुई वन रेंज के हाथी राहत और पुनर्वास केंद्र रामकोला वन्यजीव संरक्षण और प्रबंधन के लिए छत्तीसगढ़ वन विभाग की प्रतिबद्धता का उदाहरण है.. हाथी राहत और पुनर्वास केंद्र रामकोला 4.8 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है जो हाथियों की विशेष देखभाल और प्रबंधन के लिए समर्पित है.. यह छत्तीसगढ़ का एकमात्र हाथी राहत और पुनर्वास केंद्र है.. मानव हाथी द्वंद्व के पीछे और भी बहुत सी वजहें हैं ,जो काम कर रही है.. जैसे वनों का घटता क्षेत्रफल, पेड़ पौधों और घांस का लगातार कम होना, फलदार वृक्षों की कमी, जंगली फलों का मानव के द्वारा दोहन, वनों में लगती आग वगैरह… शाकाहारी हाथियों और मनुष्य के खान पान की एकरूपता के अलावा हाथी भारतीय इंसानों से धार्मिक आस्थाओं के चलते भी जुड़ा हुआ है. स्वभाव से हाथी विशालकाय, शक्तिशाली, सामाजिक और शांति प्रिय प्राणी होता है, लेकिन अपनी शांति भंग करने वालो को वह बक्शता भी नहीं है.. इंसानों के द्वारा खेदा किए जाने वाला हाथी का एक छोटा सा बच्चा अपने यौवन काल में भी उस दर्द को भूला हुआ नहीं होता और जब भी पहला मौका मिलता है वो इंसानों को कुचलकर इसका बदला ले लेता है.. राज्य की साय सरकार पूरी दानिशमंदी के साथ इस समस्या का समाधान खोज रही है.