हमर भारत भुइया के माटी म सबो धरम सबो जाति के मनखे मन रइथे। अउ सबो धरम के मनखे मन अपन अपन तिहार ल अब्बड़ सुग्घर ढंग ले मनाथे। फेर हमर भारत भुईया म एक ठन अइसन तिहार हे जेन ल सबो धरम के मनखे मन मिलजुल के मनाथे। ओखर नाव होरी तिहार। होरी तिहार के नाव ल सुनते साठ मन म अब्बड़ उलास अउ खुशी के माहुल ह अपने आप बन जाथे। होरी तिहार ह कौमी एकता के तिहार आय। होरी तिहार ह अपन संग अब्बड़ अकन तिहार मन ल समेटे हे। हिन्दू धरम म होरी तिहार के अब्बड़ महत्व हवय। हिन्दू धरम म होरी तिहार ल होलिका अउ परम् भगत प्रहलाद ले जोड़ के देखे जाथे। होरी के पहिली दिन होले जलाए के परम्परा हवय। अर्थात अधरम म धरम के जीत होईस तेखर सेती होलिका दहन के बिहान दिन लोगन मन खुसी मनाथे अउ रंग गुलाल खेलथे। होलिका ल धार्मिक ग्रन्थ म सात्विक जिनगी के दुरगुन बताये गे हवय।
ये तिहार के वरनन हमर हिन्दू धर्म के धारमिक पुस्तक मन म मिल जाथे। शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव जब अपन तपसिया करत रइथे त देवता मन शिव जी ल जगाए बर कामदेव ल के सहारा लेथे। जब कामदेव के द्वारा भगवान के तपसिया ल भंग करे जाथे त शिव जी अपन तीसर आखी ल खोल देथे जेखर सेती काम देव ह भस्म जो जाथे। काम देव जेन दिन भस्म होथे वहू दिन फागुन पूर्णिमा के दिन रइथे। काम के भावना के प्रतीकात्मक रूप जला के सच्चा भक्ति ले होली तिहार मनाथे। तेखर बाद म भगवान शंकर के बिहाव राजा हिमालय के बेटी पार्वती ले होथे अउ ओखर बेटा कार्तिक ह ताड़कासुर के वध करथे।
बाल रूप जब भगवान श्रीकृष्ण के वध के आस लागये कंस ह पूतना ल गोकुल भेजथे। उल्टा श्रीकृष्ण जी के ह राक्षसी पूतना के वध कर देथे। वहू दिन फागुन पुन्नी के दिन रइथे। होरी तिहार ह राधा अउ किसन के पबरित परेम ले घलो जुड़े है। बसन्त ऋतु में एक दूसर के ऊपर रंग लगाना श्री कृष्ण लीला के अंग आय।
भारत मे एक झन राजा जेखर नाव पृथु रिहिस। ओखर समय म एक झिन ढुंढी नाव राक्षसी रिहिस। भगवान ले वरदान पाये राक्षसी राज के जम्मो लइका मन अपन आहार मान के खावय। मोला देवता, मनुष्य, अस्त्र, शस्त्र नई मार सकय अउ न ही मोर ऊपर कुहर,बरसा,जाड़ के कोनो परभाव पड़य ये वरदान ढूंढी ल भगवान शंकर कोति ले मिले रहय। ढूंढी ल केवल लइका मन ले मर सकत रिहिस। अइसन दानव ले मुक्ति पाये बर राजा पृथु के राज पुरोहित ह ओखर उपाय बताईस की फागुन महीना के पुन्नी दिन जब न तो बहुत जादा गरमी अउ न तो जाड़ रइथे ओ समय म हमर राज के जम्मो लइका मन एक जगा सकलाके एक एक ठन लकड़ी, छेना धरके आही अउ मन्त्र जाप करत बरत आगी के परिक्रमा करही त ढुंढी राक्षसी ह मर जाही। अउ होईस घलो इसनेच जब राक्षसी ह आगी के तीर म आईस त ओखर उही कर विनास होंगे।
आधुनिक इतिहास म देखन त विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ म मउजूद ईसा ले तीन सौ बछर जुन्ना एक ठन आलेख म ये तिहार के अब्बड़ सुग्घर वरनन हवय। इसने ढंग ले भारत के यात्रा करईया मुस्लिम विदेसी यात्री साहित्यकार अलबरूनी अपन पुस्तक म होरी तिहार के उत्साह मंगल ल जबर समझाए हे। मुगल के समे म अकबर के संग जोधाबाई अउ जहाँगीर के संग नूरजहाँ के होली मनाये के परमान आज घलो मिलथे। इतिहास म वरनन हवय की शाहजहां के जमाना म होरी तिहार ल ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी(रंग के फुहार)के नाव ले जाने जाय। अइसन ढंग ले होली तिहार ल धारमिक मान्यता मिले हवय। ये तिहार ल जम्मो मनखे मन भाईचारा के भावना ले मनाथे।
दीपक कुमार साहू
मोहदी मगरलोड
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