बादर
नवां छवाये मांदर !
धातिन् तिनंग
तीन दहांदा
पानी बरसे
गादा-गादा
हर-हर चले
खेत म नांगर!
मोती-जइसे
बरसे पानी
भीजे कुरिया
भीजे छानी
रूख तरी छैहावय
साम्हर !
आल्हा-भोजली
जंगल गावे
बेंगचा-झिंगरा
तान मिलावे
नाचत हे
धूंका-ढुलबांदर
होगे अब
अंधियार के पारी
छिंटकत हावे
कोला-बारी
रात के हॉथ म
करिया-काजंर।
रवीन्द्र कंचन
छत्तीसगढ़ी भाषा के लेखक और साहित्यकार Chhattisgarhi language writers and litterateurs Ravindra Kanchan