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कविता

जै छत्‍तीसगढि़या किसान अउ खुश रहा

जै छत्‍तीसगढि़या किसान

तै कभू नई करे विराम
जम्मो दिन तैं करे हस काम
हो गेहे अब तैं सियान
जै छत्‍तीसगढि़या किसान।

अपन मेहनत लगाके
पनपुरवा अउ बासी खाके
उपजावत हस तैं हर धान
जै छत्‍तीसगढि़या किसान।




जम्मो झन बर घर बनाए
अपन परिवार ला कुंदरा मा सुताए
तोला नई मिलिस बढ़िया मकान
जै छत्‍तीसगढि़या किसान।

मजुरी करके लईका पढ़ाए
मेहनत के तैं पाठ सिखाए
नौकरी लगाए बर लइका के तोर
कोनो नई दिहिस धियान
जै छत्‍तीसगढि़या किसान।

बॉसगीत ला गाके
सबके सुते भाग जगाके
उपजवात हस तैं हर धान
जै छत्‍तीसगढि़या किसान।

खुश रहा

नानकुन जिनगी हावय
जम्मो झन खुश रहा।
मनखे मन तिर मा नई हे
ओ मन ला सोंच के खुश रहा।
कोनो नई पतियावय तू मन ला
तभो ले खुश रहा।




जे गँवा गे हे कन्हु करा
ओकर याद मा खुश रहा।
काली ला कोन देखे हावय
तुमन आज खुश रहा।
मया ला जोहत हा काबर
मया ला सोंच के खुश रहा।
काबर खोजत हावा आने मन ला
कभू तो अपन ले खुश रहा।
नानकुन जिनगी हावय भई बहिनी मन
जम्मो झन खुश रहा।

कोमल यादव
खरसिया, रायगढ़
मो.न. 9977562133

7 replies on “जै छत्‍तीसगढि़या किसान अउ खुश रहा”

बहुत बढ़िया कविता हे सर मोला बहुत पसंद आइस

सही में किसान मन बड़ मेहनत करथे ज़ी

बहुत मस्त रचना हे जी बहुत बढ़िया सही में किसान हा बेस्ट हे

जय जोहर बहुत ख़ूब खुश रहा अउ जै जोहार

बहुत बढ़िया सर जी अइसन अउ कोनो रचना होही ता सुनावा

बजरंग यादवsays:

एही बात ल समझे ळ चाही सरकार तको ल बहुत बढ़िया कविता कोमल यादव जी

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